किसी अन्य नीति की तरह नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी सरकार की नहीं, बल्कि देश की नीति है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कथन इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि तीन दशक से भी अधिक समय के अंतराल के बाद शिक्षा नीति में परिवर्तन हुआ है. इस अवधि में देश और दुनिया में बड़े फेर-बदल हो चुके हैं और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए शैक्षणिक प्रणाली में बदलाव जरूरी था. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई को लंबे विचार-विमर्श के बाद तैयार कस्तूरीरंगन समिति की सिफारिशों पर आधारित नयी नीति के मसौदे को मंजूरी दी थी.
कोरोना संकट से पैदा हुई स्थितियों के बावजूद शासन और समाज को इसके प्रावधानों और उद्देश्यों से परिचित कराने के लिए लगातार कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. इसी क्रम में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने राज्यपालों और उपराज्यपालों की बैठक को संबोधित किया, जिसमें शिक्षा मंत्रियों और अधिकारियों की भागीदारी भी रही. नीति की तैयारी के समय आम लोगों, शिक्षाविदों और प्रशासकों से राय ली गयी थी. अब इस नीति को अमल में लाने की चुनौतियां हैं.
इसमें सबसे अहम भूमिका शिक्षकों की है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने इस संबंध में देशभर के शिक्षकों से सलाह मांगी है. यह समझा जाना चाहिए, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी रेखांकित किया है, कि शिक्षा नीति में सरकार का दखल और असर न्यूनतम होना चाहिए तथा उससे शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों के जुड़ने से उसकी प्रासंगिकता और व्यापकता का विस्तार होता है. सरकार को समुचित निर्देशन और संसाधन की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए तथा शिक्षा से संबद्ध लोगों को उसके उद्देश्य को पूरा करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए.
इस तरह से जो सहभागिता बनेगी, वही नीति की सफलता का आधार बनेगी. इस नीति में अध्ययन की जगह सीखने पर बल दिया गया है, ताकि आकांक्षाओं को साकार करने में शिक्षा बड़ी भूमिका निभा सके. मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर के विख्यात संस्थानों की इकाई देश में स्थापित करने तक इस नीति का दायरा बहुत बड़ा है. ऐसे प्रावधानों से उच्च कोटि की शिक्षा का द्वार सभी के लिए खुल जायेगा तथा हमारी सांस्कृतिक विविधता भी बरकरार रहेगी. आज वैश्विक स्तर पर शिक्षण और कौशल का महत्व पहले से कहीं अधिक है.
जो देश इन क्षेत्रों में अग्रणी रहेंगे, उनका आर्थिक विकास भी हो सकेगा और वे दुनिया में ज्यादा असरदार साबित होंगे. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने देश को ज्ञान-अर्थव्यवस्था बनाने का संकल्प लिया है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति इस दिशा में एक ठोस कदम है. इस विमर्श में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का यह संदेश भी हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि देश में ऐसे विद्यार्थी बनें, जो राष्ट्रीय गौरव को आगे ले जाने के साथ वैश्विक कल्याण को भी अपनी दृष्टि और विचार में रखें. इस नीति को सफलीभूत करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिल कर प्रयासरत होने की आवश्यकता है.