प्रसांता दास, प्रमुख, यूनिसेफ झारखंड
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राकेश और शेखर (परिवर्तित नाम) ने अपने भविष्य का सुनहरा सपना देखा था. लेकिन कोरोना संकट में उनके पिता और बड़े भाई की नौकरी छूट गयी और इन दोनों भाइयों को अपने परिवार की सहायता के लिए पढ़ाई छोड़कर गैरेज में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. ऐसे और भी बहुत सारे बच्चे हैं, जो ऐसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं. भारत में लाॅकडाउन के कारण 15 लाख स्कूल बंद हुए हैं, जिसका प्रभाव 24.70 करोड़ बच्चों पर पड़ा है, (इनमें 11.90 करोड़ सिर्फ लड़कियां हैं), जो प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा से जुड़े हैं.
इसके अलावा, देश के 13.70 लाख आंगनबाड़ी केंद्रों में प्री-स्कूल शिक्षा प्राप्त कर रहे 2.85 करोड़ बच्चों पर भी इसका असर पड़ा है. यह संख्या उन 60 लाख लड़के एवं लड़कियों से अलग है, जो कोविड-19 संकट से पहले ही स्कूल छोड़ चुके हैं. झारखंड में वर्तमान में लगभग 47 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में कक्षा (1-12) में नामांकित हैं, जो 21 मार्च, 2020 के बाद से स्कूल बंद होने के कारण पढ़ाई से वंचित हैं. कई महीने से स्कूल बंद हैं.
इसका प्रभाव न केवल बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है, बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा है क्योंकि यह कोई नियमित बंदी नहीं है. घूमने-फिरने पर प्रतिबंध से उनके खेल एवं मनोरंजन तथा दोस्तों के साथ संवाद में कमी आयी है. वर्तमान आर्थिक संकट तथा स्कूलों में चलने वाली मिड-डे मील, टीकाकरण तथा कृमि उन्मूलन जैसी सेवाओं के बाधित होने का असर भी उन पर पड़ा है. इसका प्रभाव विशेष रूप से गरीब परिवारों, अनुसूचित जाति एवं जनजाति समुदाय के बच्चे, एकल माता-पिता वाले तथा नशे की समस्या से पीड़ित परिवार के बच्चों तथा दिव्यांग बालक-बालिकाओं पर पड़ा है.
ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच भी बड़ी समस्या है. हालांकि झारखंड में सरकार द्वारा डिजिटल शिक्षण सामग्री साझा की जा रही है, लेकिन इसकी पहुंच काफी कम है, जिसका कारण इंटरनेट कनेक्टिविटी तथा सेवाओं की निरंतरता की समस्या है. स्मार्ट फोन का उपयोग पढ़ाई के वास्तविक साधन के रूप में नहीं हो सकता. ग्रामीण बच्चों को, विशेषकर दूरदराज के बच्चों को जहां पहुंच और कनेक्टिविटी के मुद्दे से जूझना पड़ रहा है, वहीं शहरी झुग्गियों के बच्चों के सामने दूसरी चुनौतियां हैं, जैसे- परिवार के कई सदस्यों के साथ छोटे घरों में रहना और यदि वे कंटेनमेंट जोन में हैं, तो प्रतिबंधों का सामना करना. दूसरे राज्यों में रहनेवाले झारखंड के कई परिवार वर्तमान संकट के कारण वापस लौटे हैं. इन परिवारों के बच्चों को यहां शिक्षा के लिए भाषा और सिलेबस की समस्या का सामना करना पड़ सकता है.
बच्चों तक सीखने की सामग्री पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने बड़ी संख्या में शिक्षकों तथा रिसोर्स पर्सन्स के साथ व्हाट्सप ग्रुप का एक नेटवर्क बनाया है, जिसमें 12 लाख से अधिक छात्र जुड़े हैं. इस ग्रुप से हर दिन डिजिटल सामग्री साझा की जाती है. शिक्षा विभाग के साथ मिलकर यूनिसेफ इस पर काम कर रहा है तथा शिक्षण सामग्री का चयन करने में सरकार का सहयोग कर रहा है. झारखंड शिक्षा विभाग डिजिटल शिक्षा संसाधनों के राष्ट्रीय मंच के उपयोग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है. हमने इंटरनेट कनेक्टिविटी के मुद्दे सामने आने के बाद बच्चों के लिए शैक्षिक सामग्री तक पहुंच के दायरे को बढ़ाया है. दूरदर्शन पर उपयोगी कार्यक्रमों के प्रसारण के अलावा कक्षाओं के अनुरूप शिक्षण सामग्री भी प्रस्तुत की जा रही है.
बच्चों की शिक्षा में मदद करने के लिए संयुक्त प्रयास से बेहतर तरीका और हो नहीं सकता. यूनिसेफ ने झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद के साथ मिलकर प्रमुख सामाजिक संगठनों के साथ अलायंस किया है. इसके माध्यम से हम दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचने की कोशिश करते हैं. कई ऐसी शैक्षणिक गतिविधियां हैं, जो बच्चे स्वतंत्र रूप से या सीमित सहयोग के साथ कर सकते हैं, जैसे बच्चों को पाठ्यपुस्तक से कहानी पढ़ने या घर के लिए बजट बनाने के लिए कहा जा सकता है. बड़ों की कहानी के माध्यम से बच्चों को सीखने में योगदान दिया जा सकता है या बच्चों को खुद कहानी आदि लिखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
घर के बड़ों से बच्चों का संवाद तथा उनके बचपन के अनुभवों के बारे में जानना बच्चों में यह समझ विकसित कर सकता है कि इतिहास केवल महत्वपूर्ण तिथियों या लोगों के बारे में नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के अनुभवों का एक हिस्सा है. परिवारों में खेले जानेवाले खेल परिवारों के सदस्यों के बीच संबंधों को मजबूत करते ही हैं, बल्कि ये बच्चों के मानसिक एवं सामाजिक विकास के लिए भी अच्छे हैं. इस प्रकार परिवार बच्चे की सीखने की यात्रा में अहम हिस्सा बन सकता है.
कोरोना महामारी ने हमें एक महत्वपूर्ण अंतदृष्टि दी है कि न केवल बच्चों के साथ, बल्कि उनके समुदाय और परिवार के साथ भी जुड़ने और काम करने की आवश्यकता है, ताकि घर पर बच्चों को सीखने हेतु बेहतर वातावरण का निर्माण सुनिश्चित किया जा सके. मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि माता-पिता और शिक्षकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे बच्चों के साथ नियमित रूप से बात करें और उनके मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)