झारखंड में उच्च शिक्षा में सार्थक बदलाव की दिशा में पिछले एक वर्ष में हुए प्रयासों की कड़ी में शिक्षा और रोजगार के संबंध को मजबूत करने की जरूरत है. राज्य में उच्च शिक्षा में जाने वाले छात्र लगभग 20 प्रतिशत हैं. यहां बड़ी संख्या उन स्नातक युवाओं की है, जिन्हें डिग्री के मुताबिक रोजगार नहीं मिलता है. उद्योग जगत के लोग कहते हैं कि उन्हें सक्षम और कुशल उम्मीदवार नहीं मिलते हैं. शिक्षा व रोजगार के मुद्दे पर जनवरी के अंतिम सप्ताह में रांची के झारखंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में विश्वविद्यालय, इंडस्ट्री और सरकार के प्रतिनिधियों का दो दिवसीय मंथन हुआ. यह एक नयी और जरूरी पहल है क्योंकि झारखंड जैसे राज्य में, भरपूर प्राकृतिक संसाधन और उद्योगों का पुराना इतिहास होते हुए भी, आबादी का बड़ा हिस्सा रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करता है. ग्रामीण क्षेत्रों के जो युवा वोकेशनल कोर्स करते हैं, उन्हें भी उद्योग जगत की जरूरतों का अंदाज कम रहता है. क्या बदलती तकनीक के इस दौर में वोकेशनल कोर्स में अपेक्षित बदलाव होते हैं? सामयिक बदलाव नहीं होने से ऐसे पाठ्यक्रम अप्रासंगिक हो जायेंगे. शिक्षकों को भी स्वयं को परिष्कृत और परिमार्जित करते रहना होगा.
आज झारखंड में उच्च शिक्षा के लिए आने वालों में बड़ी संख्या उनकी है, जो अपने घर के पहले सदस्य हैं, जो विश्वविद्यालय तक पहुंचे हैं. राज्य में उच्च शिक्षा में लड़कियों की भागीदारी 40 प्रतिशत से अधिक है. यह अच्छा संकेत तो है, पर इसके साथ आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक चुनौतियां भी कम नहीं है. शिक्षकों की कमी भी बड़ी चिंता की तरफ इशारा करती है. यदि बाजार के कौशल मांग की जानकारी शिक्षकों व छात्रों को न हो, तो कई बार उनकी डिग्री उपयोग में नहीं आती है. दूसरी तरफ उद्योग जगत इस बात से चिंतित रहता है कि उसे प्रशिक्षित लोग आसानी से नहीं मिलते हैं. यदि उच्च शिक्षा संस्थान राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के संदर्भ में उद्योग जगत के साथ समन्वय कर अपने वोकेशनल कोर्स को नये तरह से संचालित करते हैं, तो निश्चित रूप से ‘डिमांड’ और ‘सप्लाई’ का अंतर कम होगा और युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध होंगे. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने उच्च शिक्षा संस्थानों को उदार पाठ्यक्रम बनाने और छात्रों को एक डिग्री को छोटे-छोटे चरणों में पूरा करने का अवसर दिया है. इसका उपयोग कर छात्रों की दक्षता को निखारने का जिम्मा संस्थान तभी निभा सकते हैं, जब उद्योग जगत के साथ उनका समन्वय बने. आज जरूरत है कि उद्योग जगत और शिक्षा संस्थानों के बीच निरंतर संवाद हो और साझेदारी से नये पाठ्यक्रम तैयार हों.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए युवाओं के विचार और भागीदारी का बड़ा अभियान शुरू किया है. इससे युवाओं को अपने सपनों का भारत बनाने की प्रेरणा तो मिल ही रही है, यह प्रयास एक मजबूत राष्ट्र के लिए सबके योगदान को भी सुनिश्चित करता है. विकसित भारत के लिए विकसित झारखंड का संकल्प राज्य के हर नागरिक को लेना होगा. शिक्षा जगत को सामाजिक समस्याओं का समाधान भी खोजना है और भारत को ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था भी बनाना है. उद्योग जगत और शिक्षण संस्थानों को नवाचार एवं रचनात्मकता का परिवेश बनाना होगा तथा साथ कार्य करने की संस्कृति विकसित करनी होगी. राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा को कक्षा की चारदीवारी से बाहर निकलने का रास्ता देती है. नेशनल इनोवेशन एंड स्टार्टअप पॉलिसी फॉर स्टूडेंट्स एंड फैकल्टी, 2019 और झारखंड स्टार्ट-अप पाॅलिसी, 2023 भी इस दिशा में सहायक है. आज की जरूरत है कि हम अपनी प्राचीन ज्ञान परंपरा से सीखें और पाठ्यपुस्तकों से आगे भी सोचें. केंद्र सरकार ने नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल के अंतर्गत उद्योग जगत के लिए 36 सेक्टर स्किल डेवलपमेंट काउंसिल बनाये हैं, जिसका उद्देश्य उद्योग व जरूरी कौशलों के बीच सेतु बनाना है. इसकी एक भूमिका यह जानने की है कि बाजार में किस तरह के कौशल की मांग है और इसके लिए क्या शिक्षण-प्रशिक्षण जरूरी होगा. सेक्टर स्किल डेवलपमेंट काउंसिल अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक व दिव्यांग समूहों के कौशल जरूरतों का विशेष ध्यान रखता है.
झारखंड जैसे राज्य में स्वास्थ्य, पर्यटन, ऊर्जा, होटल, रिटेल, मार्केटिंग, सेल्स, डेरी, कृषि, वाहन और सेवा क्षेत्रों में भरपूर संभावनाएं उपलब्ध हैं. उद्योग जगत शिक्षण संस्थानों में इनोवेशन के केंद्र और स्थानीय छात्रों के लिए नवाचार और उद्यमिता के लिए छात्रवृत्ति की शुरुआत कर सकते हैं. शोध को बढ़ावा देने के लिए उद्योग जगत और दूसरे देशों में रह रहे स्थानीय लोग राज्य के विश्वविद्यालयों में शोध पीठ स्थापित कर सकते हैं. आज जरूरत है कि उच्च शिक्षा संस्थान विकसित भारत के लक्ष्य को ध्यान में रखकर अपनी नयी भूमिका को पहचान कर कार्य करें. क्या इंजीनियरिंग कॉलेज केवल बीटेक की डिग्री देने वाले होंगे या सही मायने में इंजीनियर बनाने वाले होंगे? देशभर में कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय हैं, फसलों से लेकर गाय, बकरी, मुर्गी सभी पर प्रयोग चलते रहते हैं, नयी प्रजाति भी आ रही हैं, लेकिन क्या व्यापक रूप से आम किसानों को यह खबर है कि कृषि में क्या नयी पौध/बीज है, जो पैदावार बढ़ाये? जापानी आम से लेकर ड्रैगन फ्रूट और मोटे अनाज का प्रचलन बढ़ रहा है, तो क्या उच्च शिक्षा संस्थानों को शिक्षा, कृषि, सामुदायिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में नये उद्यमी तैयार करने की शुरुआत नहीं करनी चाहिए? क्या सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालयों में शोध नहीं हो सकते? जो संस्थान नहीं जागे, वे विकास की दौड़ में पीछे छूट सकते हैं. परिश्रम के बिना केवल विचार करने से किसी कार्य की सिद्धि नहीं होती है, उसके लिए कार्य करना होता है. क्या सोते हुए शेर के मुंह में हिरन अपने आप आता है!
तेजी से बदलते परिवेश में उच्च संस्थानों को छात्रों और समाज के हित में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखनी होगी. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कैसे समाज को प्रभावित करेगा, उसका लाभ कैसे लिया जा सकता है, यह सोचना होगा. अकादमिक संस्थानों में हो रहे शोध एवं नवाचार का लाभ आम लोगों तक कम समय में कैसे पहुंचे, यह मार्ग बनाना होगा. आज की बदलती दुनिया में एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को एक-एक छात्र व नागरिक तक पहुंचाना होगा. यह कार्य उच्च शिक्षा संस्थानों की अग्रणी भूमिका के बिना संभव नहीं है.