बुजुर्गों की चिंता
हमारे देश में मृतकों में 60 साल से अधिक आयु के लोगों का प्रतिशत 53 है. यदि इसमें 45 से 59 साल उम्र के मरनेवालों को जोड़ दें, तो यह आंकड़ा 85 फीसदी हो जाता है.
दुनियाभर में कोरोना महामारी से हर उम्र के लोग त्रस्त हुए हैं, लेकिन बुजुर्गों पर उसका कहर अधिक है. उनकी शारीरिक क्षमता कमजोर होती है तथा बढ़ती उम्र के साथ अनेक तरह की बीमारियां भी उन्हें घेर लेती हैं. ऐसे में उनकी देखभाल और उनके उपचार की जरूरत बहुत अधिक बढ़ गयी है. आंकड़ों की मानें, तो कोविड-19 के संक्रमण से चीन में मरनेवालों में करीब 20 फीसदी लोगों की आयु 55 साल से ज्यादा थी. बाकी दुनिया में यह अनुपात 25 फीसदी रहा है. हमारे देश में मृतकों में 60 साल से अधिक आयु के लोगों का प्रतिशत 53 है. यदि इसमें 45 से 59 साल उम्र के मरनेवालों को जोड़ दें, तो यह आंकड़ा 85 फीसदी हो जाता है. इससे स्थिति की गंभीरता का अनुमान लगाया जा सकता है. लॉकडाउन में और उसके बाद सुरक्षा के लिए बुजुर्गों को आम तौर पर अपने घर की चहारदीवारी में सिमट कर रहना पड़ रहा है.
यह जरूरी भी है और मजबूरी भी, किंतु इससे उनकी समस्याओं में बढ़ोतरी ही हो रही है. चिंता व तनाव के माहौल, घूमना-फिरना न हो पाने और अन्य बीमारियों के असर जैसी वजहों से उनका मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. आकलनों के मुताबिक, लगभग 70 फीसदी ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी स्वास्थ्य समस्याएं कोरोना काल में बढ़ गयी हैं. एक हालिया सर्वे में पाया गया कि 65 फीसदी बुजुर्गों का मानना है कि लॉकडाउन व अन्य पाबंदियों के कारण उनकी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान में कमी आयी है क्योंकि उन्हें अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
टेलीविजन, कंप्यूटर और स्मार्ट फोन के अधिक उपयोग तथा घर की शांति में कमी से भी उन्हें परेशानी हो सकती है. लॉकडाउन में अस्पतालों ने अपनी सेवा में बड़ी कटौती की थी और ज्यादातर क्लीनिक भी बंद थे. अब भी कई जगहों पर पाबंदियों और अन्य वजहों से स्वास्थ्य सेवाएं सीमित रूप में ही उपलब्ध हैं. इस कारण भी बड़े-बूढ़े लोग परेशान हैं. अस्पतालों में जाने से कोरोना संक्रमण की आशंका भी है. एक अनुमान के अनुसार, कोरोना काल में 63 लाख लोग तपेदिक के शिकार हो सकते हैं और इससे 10 लाख मौतें हो सकती हैं. इनमें बड़ी तादाद बुजुर्गों की हो सकती है.
हमारे देश में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या लगभग 14 करोड़ है. इनमें से करीब 88 फीसदी परिवारों के साथ हैं. वहां संक्रमण समेत अनेक मुश्किलें हैं, पर देखभाल की संभावना भी है. लेकिन अकेले रह रहे पौने दो करोड़ बुजुर्गों की हालत बहुत अधिक दयनीय है. देश में ऐसे परिवारों की संख्या भी बहुत है, जिनमें अधिक आयु के लोग भी कुछ काम कर मामूली आमदनी जुटाते हैं. हालांकि राहत की कोशिशें लगातार जारी हैं, पर व्यापक स्तर पर पहलकदमी की दरकार है. संकट टलने के बाद भी बुजुर्गों को कई तरह के मदद की जरूरत होगी.