एआइ को पारदर्शी और समावेशी बनाने पर जोर
जीपीएआई शिखर सम्मलेन में डाटा निजता और सुरक्षा के अलावा निजी संस्थाओं द्वारा डाटा के स्वामित्व और सीमित उपयोग को सुनिश्चित करने के भी प्रयास हो रहे हैं. एआई नियमन और प्रचालन की सबसे प्रमुख वैश्विक संस्था में मुख्य नेतृत्व की भूमिका मिलना एआई और वैश्विक समायोजन में भारत की बढ़ती कुशलता का परिचायक है.
पिछले वर्ष 30 नवंबर को ओपेन एआइ द्वारा चैट जीपीटी के अनावरण के बाद काफी कम समय में कृत्रिम मेधा (एआइ) का उपयोग और प्रचलन तेजी से बढ़ा है. निश्चित तौर पर एआइ के अधिकांश वर्तमान अनुप्रयोग लाभकारी उद्देश्यों पर केंद्रित हैं, पर हाल में दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए एआइ के उपयोग के कई उदाहरण सामने आये हैं. किसी भी तकनीक के दुरुपयोग की संभावना भी बढ़ती जाती है और एआइ इससे अलग नहीं है. एआइ का उपयोग मानवता के कल्याण और विकास के लिए हो, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास हो रहे हैं. एआइ का सुरक्षित, विश्वसनीय, रचनात्मक और कल्याणकारी उपयोग कर एआइ उपकरणों को पारदर्शी और समावेशी बनाने के उद्देश्य से ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (जीपीएआइ) की स्थापना जून 2020 में की गयी थी. मंगलवार 12 दिसंबर, 2023 को जीपीएआइ द्वारा नयी दिल्ली के भारत मंडपम में आयोजित तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया. भारत 2024 में ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का नेतृत्व करेगा.
पिछले तीन शिखर सम्मेलन का आयोजन क्रमशः मॉन्ट्रियल, पेरिस और टोक्यो में किया गया था. जीपीएआइ भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जर्मनी, इजराइल, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम और फ्रांस जैसे 29 देशों का एक वैश्विक गठबंधन है. यह एआइ के निर्माण और प्रचलन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान, उद्योग, नागरिक समाज, सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और शिक्षा जगत से जुड़े बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों को एक मंच पर लाता है. वर्तमान शिखर सम्मेलन एआइ में प्रगति और सफलताओं पर केंद्रित है, विशेष रूप से सामाजिक भलाई के लिए इसकी क्षमता पर. शिखर सम्मलेन में 150 से अधिक एआइ स्टार्टअप के प्रदर्शन के अलावा कार्यशालाएं, उद्योग विशेषज्ञों की बैठकें, सार्वजनिक क्षेत्र के अनुप्रयोगों में जिम्मेदार एआइ को आगे बढ़ाने पर अनुसंधान संगोष्ठी, स्टार्टअप्स के लिए गेमचेंजर पुरस्कार जैसे कई कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं.
हालिया रिपोर्टों के अनुसार एआइ का उपयोग विनाशकारी जैव हथियार डिजाइन करने में हो सकता है. इस साल 40 हजार विभिन्न संभावित घातक अणुओं का सुझाव देने के लिए एक एआइ उपकरण का इस्तेमाल हुआ था. एआइ के इस्तेमाल से मानव हस्तक्षेप के बिना लक्ष्य का चयन और हमला करने वाले स्वायत्त हथियार बनाये जा सकते हैं. कार्यों को स्वचालित करने, डेटा का विश्लेषण करने और कमजोरियों की पहचान करने के लिए साइबर हमलों में एआइ का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. इसके जरिये संवेदनशील डाटा और सूचना का प्रवाह विभिन्न देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमा के आर-पार होने का जोखिम बढ़ गया है, जिसे रोकना आवश्यक है. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने उद्घाटन भाषण में एआइ आधारित उपकरणों के आतंकियों के हाथ में पड़ने के खतरे, साइबर सुरक्षा और डाटा चोरी की घटनाओं में वृद्धि की संभावना से आगाह किया और एआई के नैतिक उपयोग के लिए एक संस्थागत तंत्र बनाने की सलाह दी. उन्होंने एआइ को 21वीं सदी के विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया होने के साथ ही विनाश का प्रमुख सामान भी बताया. प्रधानमंत्री मोदी ने एआइ का इस्तेमाल सामाजिक और समावेशी विकास के लिए करने का आह्वान किया.
कृषि और चिकित्सा जैसे आधारभूत क्षेत्रों में एआइ का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. माइक्रोसॉफ्ट एआइ संचालित रोबोट विकसित करने के लिए कृषि कंपनियों के साथ साझेदारी कर रहा है. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन एआइ का उपयोग कर कीट और बीमारी प्रतिरोधी फसलें विकसित करने के लिए शोध में निवेश कर रहा है. आइबीएम वॉटसन का उपयोग अस्पतालों द्वारा चिकित्सकीय छवियों का विश्लेषण कर कैंसर की सटीक पहचान करने के लिए किया जा रहा है. शोधकर्ता डीपमाइंड के अल्फाफोल्ड से प्रोटीन संरचनाओं की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जिससे नयी दवाओं और उपचारों का विकास हो सकता है. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने अपने संबोधन में कहा कि एआइ पर काम काफी लंबे समय से चल रहा था, लेकिन पिछले 18 महीनों में एआइ क्षेत्र में तीव्र विकास हुआ है. उन्होंने समावेशी विकास के लिए एआइ की क्षमता के उपयोग में भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया और एआइ के उपयोग से चिकित्सा जैसे आम नागरिक सेवाओं को सुलभ बनाने और सटीक तकनीकों द्वारा कृषि में सुधार के प्रयासों की चर्चा भी की. जीपीएआइ शिखर सम्मलेन में डाटा सुरक्षा के अलावा निजी संस्थाओं द्वारा डाटा के स्वामित्व और सीमित उपयोग को सुनिश्चित करने के भी प्रयास हो रहे हैं. एआइ नियमन और प्रचालन की सबसे प्रमुख वैश्विक संस्था में मुख्य नेतृत्व की भूमिका मिलना प्रौद्योगिकी, एआइ और वैश्विक समायोजन में भारत की बढ़ती कुशलता का परिचायक है. आशा है कि जीपीएआइ सामाजिक और समावेशी विकास के लिए एआइ के उपयोग को सुनिश्चित करने में सफल होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)