हाल में सीएमआइइ नामक संस्था ने अपनी एक विज्ञप्ति में कहा है कि भारत में कोविड के प्रकोप और लॉकडाउन के कारण रोजगार को भारी धक्का लगा है. संस्था का कहना है कि 2020-21 के दौरान वास्तविक जीडीपी में 6.6 प्रतिशत की गिरावट हुई. हालांकि 2021-22 में अर्थव्यवस्था में 8.95 प्रतिशत का उछाल आया है, लेकिन अब भी वास्तविक जीडीपी 145.2 लाख करोड़ रुपये से बढ़ कर मात्र 147.7 लाख करोड़ रुपये तक ही पहुंच पायी है, यानी यह अभी भी कोविड पूर्व की जीडीपी के आसपास ही है.
संस्था का कहना है कि जीडीपी बढ़ने के बावजूद रोजगार में गिरावट के बाद अभी तक वापसी नहीं हो पायी है. सीएमआइइ के अनुसार, 2021-22 में रोजगार 40.18 करोड़ तक ही पहुंचा, जबकि यह 2019-20 में 40.89 करोड़ था. बेरोजगारी, जो 2019-20 में 3.29 करोड़ थी, 2021-22 में 3.33 करोड़ तक पहुंच गयी यानी मात्र चार लाख की वृद्धि हुई.
संस्था का निष्कर्ष यह है कि हालांकि रोजगार में 71 लाख की कमी, पर बेरोजगारी का मात्र चार लाख बढ़ना इस बात का द्योतक है कि बेरोजगार होनेवाले लोगों ने अब रोजगार की आस छोड़ दी है. कुछ समय से कुछ कारणों से राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा देश में रोजगार संबंधी आंकड़े प्रकाशित नहीं हो रहे हैं.
ये आंकड़े अधिक विश्वसनीय होते हैं. स्वभाविक यही है कि सरकारी आंकड़ों के अभाव में सीएमआइइ जैसी संस्थाओं के आंकड़ों को मीडिया में स्थान मिलता है, पर दुर्भाग्य से सीएमआइइ के आंकड़ों पर प्रश्नचिह्न लगते रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि सीएमआइइ के बेरोजगारी और श्रम शक्ति के आकार संबंधी आंकड़े अन्य संकेतकों से मेल नहीं खाते. इसलिए उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता.
मनरेगा कानून हर ग्रामीण बेरोजगार को हर वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता है. यदि कोई व्यक्ति कहीं शहर/गांव आदि में आकस्मिक रोजगार पा भी रहा है, तो भी यदि वह 100 या उससे कम दिन बेरोजगार रहता है, तो वह मनरेगा के अंतर्गत रोजगार प्राप्त कर सकता है. इसका मतलब यह है कि यदि बेरोजगारी बढ़ती है, तो मनरेगा की मांग भी बढ़ती है.
उदाहरण के लिए 2020-21 में शहरों में लॉकडाउन और आर्थिक गतिविधियों के ह्रास के कारण रोजगार घटा और लोग गांवों की ओर पलायन कर गये, तो उन दिनों मनरेगा लाभार्थियों की संख्या सात करोड़ तक हो गयी, जो लॉकडाउन से पूर्व पांच करोड़ ही थी. रोचक यह है कि जिस कालखंड में सीएमआइइ की रिपोर्ट बेरेाजगारी बढ़ने की बात कर रही है, उस कालखंड (2021-22) में पिछले साल की तुलना में 6.55 प्रतिशत कम मानव दिवसों के रोजगार की मांग की गयी.
कहा जा सकता है कि कोरोना कालखंड के दौरान गांवों की ओर लौटे लोग वापस शहरों में रोजगार पा चुके थे. अप्रैल, 2021 में 2.62 करोड़ लोगों ने ‘मनरेगा’ के अंतर्गत काम मांगा था, जबकि इस वर्ष अप्रैल 2022 में मात्र 2.33 करोड़ लोगों ने ही उसके तहत काम की अपेक्षा की. विश्लेषकों का मानना है कि मनरेगा में रोजगार की मांग में गिरावट शहरी क्षेत्रों में रोजगार बढ़ने के कारण है. यह आंकड़ा सीएमआइइ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के उलट है, जो कहती है कि लोग रोजगार की आस छोड़ कर श्रमशक्ति से ही बाहर हो गये हैं.
सीएमआइइ का कहना है कि यदि 2022-23 में 7.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि भी हो, तो भी बेरोजगारी दर बढ़ेगी ही, लेकिन हमें समझना होगा कि अर्थव्यवस्था में कोरोना के बाद होनेवाली रिकवरी कोई सामान्य रिकवरी नहीं है. इस रिकवरी में अर्थव्यवस्था में कुछ मूलभूत परिवर्तन अपेक्षित हैं और सभी संकेतक इन बदलावों की ओर संकेत कर रहे हैं.
पिछले वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में जीएसटी संग्रह का मासिक औसत 1.42 लाख करोड़ रहा. इस वित्तीय वर्ष के पहले माह में 1.68 लाख करोड़ रुपये का अभूतपूर्व जीएसटी संग्रहण निश्चित ही अर्थव्यवस्था में उठाव की ओर इंगित कर रहा है. मार्च, 2022 में 7.7 करोड़ ई-वे बिल सृजित हुए, जो फरवरी में सृजित 6.8 करोड़ बिलों से 13 प्रतिशत से ज्यादा थे. देश में सेमी-कंडक्टरों की कमी के चलते आॅटो मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीकॉम समेत कई उद्योग प्रभावित हुए हैं. फिर भी बढ़ता जीएसटी राजस्व अर्थव्यवस्था में मैनुफैक्चरिंग में उठाव की ओर संकेत कर रहा है.
आत्मनिर्भर भारत नीति के चलते स्वरोजगार पर भारी बल दिया जा रहा है. नरेंद्र मोदी सरकार में प्रारंभ से ही आयात पर निर्भरता कम करते हुए ‘मेक इन इंडिया’ पर बल दिया गया है. वर्ष 2018 से चीन से आयात घटाने के लिए कई उत्पादों पर संरक्षणात्मक आयात शुल्क लगाये गये हैं. भारत से अब बड़ी मात्रा में मोबाइल फोन निर्यात होने लगे हैं. भारत सरकार द्वारा 16 प्रकार के उत्पादों के देश में निर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन योजना शुरू की गयी है.
मैनुफैक्चरिंग, स्टार्ट अप और उद्यमिता को बढ़ावा देने के प्रयासों के परिणाम दिख रहे हैं. लेकिन सीएमआईई की विज्ञप्ति में 2014 के आंकड़ों के आधार पर आकलित रोजगार की लोच को आधार बना कर 2022 के लिए रोजगार के आंकड़ों की कल्पना की जा रही है, जो हास्यास्पद है. भारत सरकार को जल्द रोजगार के आंकड़ों का सही चित्र प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि सही जानकारी मिल सके.