सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्यम हमारी अर्थव्यवस्था के आधार हैं. सकल घरेलू उत्पादन में इनका योगदान लगभग 60 फीसदी तक है तथा कार्यबल का करीब 90 फीसदी इसी सेक्टर में कार्यरत है. कोरोना महामारी से पैदा हुई स्थितियों का सबसे अधिक नकारात्मक असर भी इन्हीं उद्यमों पर हुआ है. इसीलिए केंद्र सरकार के व्यापक आर्थिक पैकेज में इन्हें प्राथमिकता देना एक जरूरी पहल है. इन उद्यमों को समुचित मात्रा में पूंजी मुहैया कराने के साथ सरकार ने इनकी परिभाषा में भी बदलाव किया है.
साल 2006 के कानून के मुताबिक, 25 लाख तक के निवेश के उद्यम को सूक्ष्म, 25 लाख से पांच करोड़ तक के निवेश के उद्यम को छोटा तथा पांच से दस करोड़ के निवेश के उद्यम को मध्यम आकार का उपक्रम माना जाता है. सेवा क्षेत्र के इन उद्यमों में निवेश का दायरा पांच करोड़ तक था. अब नयी परिभाषा में इसे बढ़ाकर सौ करोड़ तक कर दिया गया है. इस बदलाव से अब अधिक संख्या में उद्यमों को ऋण उपलब्ध हो सकेगा तथा उन्हें अपना विस्तार कर पाने का अवसर मिलेगा. इससे न केवल आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी की संभावनाएं बढ़ेंगी, बल्कि आत्मनिर्भरता के सूत्र को साकार करने में भी ये उपक्रम अधिक योगदान दे सकेंगे. कंपनियों के वर्गीकरण में भी इससे लाभ मिलेगा.
अभी तक यह भी होता रहा है कि विदेशों, खासकर चीन, से सस्ते सामान आयात कर कई उपक्रम वास्तविक उत्पादन में लगे उद्यमों को कड़ी चुनौती देते थे और वे विभिन्न छूटों व योजनाओं का भी फायदा लेते थे. अब सरकार वस्तु एवं सेवाकर के आंकडों के आधार पर टर्नओवर का आकलन कर सकेगी, जिससे लाभकारी योजनाओं को उन कंपनियों तक पहुंचाना आसान होगा, जो घरेलू उत्पादन बढ़ाने में लगे हुए हैं. महामारी पर काबू पाने के साथ अभी सरकार की मुख्य चुनौती अर्थव्यवस्था को संभालना है. इसके बिना बढ़ती बेरोजगारी और अनिश्चितता की स्थिति से उबर पाना मुश्किल है.
इसीलिए, जैसा कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा है, सरकार की प्राथमिकता छोटे और मझोले उद्यमों को बचाना है. उल्लेखनीय है कि संगठित क्षेत्र के उत्पादन, वितरण और बिक्री के बाद की सेवाओं में भी असंगठित क्षेत्र और छोटे उद्यम बहुत अधिक योगदान देते हैं. ऐसे में लॉकडाउन की पाबंदियों में जैसे-जैसे छूट मिलती जायेगी, आर्थिक गतिविधियां पटरी पर आने लगेंगी. इसी के साथ आमदनी, मांग और आपूर्ति के जरूरी सिलसिले की गति भी सामान्य होने लगेगी. हालांकि बड़ी संख्या में कामगारों का उत्पादन केंद्रों से पलायन बेहद चिंताजनक और दुखद है, पर यह संतोष की बात है कि प्रवासी कामगारों का बड़ा हिस्सा अभी भी शहरी केंद्रों में है. पूंजी की उपलब्धता और अन्य छूटों के साथ जब कामकाज शुरू होगा, तो वे फिर से उत्पादन और सेवा के काम में जुट जायेंगे. तब अन्य कामगार भी गांवों से लौटने लगेंगे. नये सरकारी पैकेज और नियमन से देश के उद्यमी हौसले को बहुत बल मिला है.