भारत की अधिकांश बिजली कोयला जला कर उत्पादित होती है. यह कोयला बिजली संयंत्रों तक रेल और सड़क से पहुंचाया जाता है. भारत में कोयले की सालाना मांग करीब एक अरब टन है. अनुमान है कि यह 2030 तक डेढ़ अरब टन हो जायेगा. सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने 2021-22 में 622 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया था. वास्तव में, इस कंपनी के खदानों से बीते साल 662 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति हुई थी, क्योंकि उसके पास पहले भंडारण था.
कोयले को बंदरगाहों से संयंत्रों तक ढुलाई करने में रेलवे ने भी नया कीर्तिमान बनाया है. देश में निजी खदान भी कोयला उत्पादित करते हैं. कुछ खादानों के कोयले का इस्तेमाल इस्पात एवं एल्युमीनियम उत्पादन में होता है. इसके बावजूद देश को 200 मिलियन टन से अधिक आयातित कोयले पर निर्भर रहना पड़ता है, जो इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से आता है. इन कोशिशों के बाद भी कोयले की कमी है, जिससे ऊर्जा का अभाव हो जाता है.
वर्तमान में सौर विद्युत उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है. सौर ऊर्जा की वर्तमान क्षमता निर्धारित लक्ष्य से अधिक है, लेकिन वास्तविक उत्पादन कम है, क्योंकि सूरज रात को यानी आधा समय नहीं निकलता तथा दिन में उत्पादित बिजली को रात में इस्तेमाल करने के लिए भंडारित करने का कोई उपाय नहीं है. इसके लिए बैटरी भंडारण की क्षमता में बहुत अधिक बढ़ोतरी करनी होगी, जो अभी बेहद महंगा है.
दूसरा उपाय हाइड्रोजन आधारित ईंधन बैटरी का है, जो सूरज से उत्पादित ऊर्जा को संग्रहित कर सकती है. यह एक बहुत बड़ी तकनीकी संभावना है, जिस पर रिलायंस जैसी कंपनियां भारी निवेश कर रही हैं. जब तक यह सब नहीं होता है, भारत को कोयला आधारित बिजली पर निर्भर रहना होगा और कमी का भी सामना करना होगा. बीते अक्तूबर में भी करीब 1.2 अरब यूनिट बिजली की कमी हुई थी.
मौजूदा कमी बिजली संयंत्रों में कोयला न होने के कारण पैदा हुई है, या तो ढुलाई के लिए समुचित रेल बोगियां नहीं थीं या जरूरी मात्रा में कोयला खनन नहीं हुआ. सभी स्रोतों को मिला कर भारत की ऊर्जा क्षमता 400 गीगावाट है, जिसमें 51 फीसदी उत्पादन अकेले कोयले से होता है. कोयला संयंत्र 24 घंटे चल सकता है, पर सौर या पवन ऊर्जा संयंत्र नहीं. भारत ने 2021-22 के दौरान लगभग 1500 अरब यूनिट बिजली पैदा की थी.
फिर भी जाड़े में मांग बढ़ने से अक्तूबर में 1.2 अरब यूनिट की कमी हो गयी थी. अब यह कमी अत्यंत गंभीर हो गयी है. अप्रैल, 2022 के अंतिम सप्ताह में ऊर्जा कमी दो अरब यूनिट से अधिक हो गयी. यह देश के अधिकांश हिस्से में अभूतपूर्व गर्मी की वजह से हुई है, जब तापमान 43 डिग्री से अधिक पहुंच गया. रोजाना के स्तर पर मांग 200 गीगावाट से अधिक हो गयी है. यह मांग अगले दो-तीन माह तक बनी रहेगी, क्योंकि गर्मी जुलाई के अंत तक (कम से कम उत्तर और पश्चिम भारत में) बनी रह सकती है.
कोयले के अभाव का यह हाल है कि संयंत्रों का भंडार खतरनाक रूप से बहुत कम रह गया है. घरेलू और आयातित कोयले पर निर्भर संयंत्रों में सात दिन तक का ही कोयला बचा हुआ है. इस कारण, समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए रेलवे ने अभूतपूर्व कदम उठाया है. यात्री रेलगाड़ियों को रद्द कर उन्हें खदानों से संयंत्रों तक कोयला पहुंचाने में लगाया जा रहा है. मई के अंत तक के लिए 21 गाड़ियों की 753 खेपों को रद्द कर दिया गया है.
यदि गर्मी से राहत नहीं मिली, तो ऐसे और उपायों की दरकार होगी. यदि कुल कमी 2.5 अरब यूनिट से अधिक हुई, तो फिर बिजली आपूर्ति में कटौती करनी होगी. देश के कुछ हिस्सों में कई घंटों तक बिजली गुल रहने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है. स्वाभाविक रूप से महानगरों और बड़े शहरों में ऐसा नहीं होगा और संकट को छोटे शहरों व गांवों को भुगतना होगा.
कोयला संकट का यह मतलब भी है कि एल्युमीनियम, स्टील, कपड़ा, कागज, लोहा और कुछ खाद उत्पादकों को कोयला नहीं मिल सकेगा, जिससे उनका उत्पादन प्रभावित हो सकता है. कोयले की ढुलाई, रेलगाड़ियां, कटौती की योजना आदि के साथ संकट से निकलने की यह प्रक्रिया बहुत जटिल है. यह स्थिति यूक्रेन युद्ध के कारण भी गंभीर हो गयी है. रूस से गैस मुहैया न होने या उसका बहिष्कार होने से यूरोप और अमेरिका में कोयले की खपत अधिक होगी.
ऑस्ट्रेलियाई कोयले की कीमत आम तौर पर सौ डॉलर प्रति टन होती है, पर यूक्रेन युद्ध के कारण दाम 440 डॉलर तक पहुंच गये हैं और आपूर्ति में भी बाधाएं हैं. यूरोप में घरों को गर्म रखने के लिए इस्तेमाल होनेवाली प्राकृतिक गैस और अन्य ईंधनों के दाम भी बहुत अधिक बढ़ गये हैं. ऐसे में कोयला आधारित ऊर्जा बढ़ी कीमतों पर भी सस्ती पड़ रही है. साल 2021 में कोयले की वैश्विक मांग नौ फीसदी तक बढ़कर लगभग आठ अरब टन पहुंच गयी. यह अब तक की सर्वाधिक मांग है. इस साल मंदी की आशंकाओं के बावजूद मांग में और दो फीसदी बढ़त का अनुमान है.
भारत में भी कोयला महंगा हुआ है. सो, हमारे सामने दो चुनौतियां हैं- बिजली कटौती और दाम में बढ़ोतरी. बिजली एक्सचेंजों में 12 रुपये प्रति यूनिट दर है, जो अमूमन तीन-चार रुपये होती है. ऊर्जा के लिए कोयले पर बहुत अधिक निर्भरता का एक चिंताजनक परिणाम धरती के बढ़ते तापमान और कार्बन उत्सर्जन को शून्य के स्तर तक ले जाने के लक्ष्य से संबंधित है. जब तक हम सौर ऊर्जा और हाइड्रोजन जैसे विकल्पों के सस्ते और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, तब तक दुनिया को परमाणु ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना पड़ सकता है.
फ्रांस और जापान जैसे देश मुख्य रूप से परमाणु ऊर्जा पर निर्भर हैं. मौजूदा स्थिति में परमाणु ऊर्जा के विस्तार पर लगी रोक की फिर से समीक्षा करने की आवश्यकता है. भारत को भी परमाणु विस्तार के विकल्प को खुला रखना चाहिए. अभी हालत यह है कि तेल और अन्य चीजों के कारण वस्तुओं की मुद्रास्फीति चिंताजनक स्थिति में है और उसमें ऊपर से अब कोयले की कमी हो गयी है तथा बिजली भी महंगी हो गयी है. ऐसा लगता है कि इस बार गर्मी कुछ अधिक ही गर्म होगी.