पर्यावरण बने प्राथमिकता

भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को स्वस्थ भूमि और जैव-विविधता की आवश्यकता अपेक्षाकृत अधिक है.

By संपादकीय | June 4, 2024 7:41 AM
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धरती का तापमान बढ़ना आज विश्व के समक्ष सबसे बड़ा संकट है, जिसका तात्कालिक समाधान नहीं किया गया, तो मानव समेत तमाम जीवों का अस्तित्व निश्चित ही खतरे में पड़ जायेगा. इस संकट के प्रभाव के गंभीर परिणाम हमारे सामने आने लगे हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण अतिवृष्टि, सूखा, बाढ़, बेमौसम व औचक बरसात, चक्रवात, आंधी, वनों में आग, भू-स्खलन, ग्लेशियरों में बर्फ पिघलना, समुद्र का तापमान बढ़ना और समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी आदि जैसी समस्याएं सघन हो रही हैं.

विश्व पर्यावरण दिवस, जो हर साल पांच जून को मनाया जाता है, के अवसर पर इस वर्ष का मुख्य विषय ‘भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखा निरोध’ है. पर्यावरण का समुचित संरक्षण नहीं होने तथा भूमि की उर्वरा को बनाये रखने के प्रति समुचित संवेदनशीलता की कमी से भारत समेत कई देश भूमि क्षरण की समस्या का सामना कर रहे हैं. बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई, भूजल के अत्यधिक दोहन तथा रासायनिक खेती के कारण भूमि क्षरित हो रही है.

इससे मरुस्थलीकरण भी बढ़ रहा है. अपने संदेश में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने रेखांकित किया है कि मानवता भूमि पर निर्भर है, फिर भी समूचे विश्व में प्रदूषण, जलवायु अव्यवस्था और जैव-विविधता के ह्रास से स्वस्थ भूमि मरुभूमि में तथा जीवंत पारिस्थितिकी मृत क्षेत्र में परिवर्तित हो रही हैं. पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न प्रयासों के साथ-साथ इस ओर समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है. दुनियाभर में तीन अरब से अधिक लोग भूमि क्षरण से प्रभावित हैं.

साथ ही, पीने योग्य पानी का तंत्र भी तबाह हो रहा है. भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को स्वस्थ भूमि और जैव-विविधता की आवश्यकता अपेक्षाकृत अधिक है. इस संबंध में भारत सरकार की ओर से प्रयास किये जा रहे हैं, पर इस प्रक्रिया में हम सभी की भागीदारी आवश्यक है. कम पानी एवं खाद की आवश्यकता वाले तथा अधिक पौष्टिक मोटे अनाजों को बढ़ावा देना बहुत जरूरी पहल है. स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनेक देश आगे बढ़ रहे हैं, जिनमें भारत भी शामिल है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में यह संकल्प रखा था कि हमारा देश 2070 तक कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य के स्तर पर लाने के लिए प्रतिबद्ध है. स्वच्छ ऊर्जा के अधिक उत्पादन से जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता भी घटेगी, जिनके खनन, वितरण, ऊर्जा उत्पादन और उपभोग से पारिस्थितिकी को भारी नुकसान होता है. जिस प्रकार हम प्रकृति से स्वच्छ ऊर्जा हासिल कर रहे हैं, उसी तरह हमें वर्षा जल के संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिए. पर्यावरण बचाने के लिए व्यक्तिगत और स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर तक साझा प्रयासों की आवश्यकता है.

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