पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बैंक भी कदम बढ़ाएं
Environmental Protection : क्लाइमेट रिस्क हॉराइजन नाम की एक संस्था ने पिछले दिनों कुल 35 बैंकों का गहन विश्लेषण करते हुए यह पाया कि भारतीय बैंकों को जलवायु परिवर्तन के जोखिम से निपटने के लिए अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा.
Environmental Protection : जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए संकट का असर सिर्फ पर्यावरण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अब देश की अर्थव्यवस्था और खासकर बैंकिंग सेक्टर के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है. हाल के अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन बैंकों के लिए सबसे बड़ा उभर रहा जोखिम है, क्योंकि कोयला परिचालित परियोजनाओं के बने रहने में बैंकों की बड़ी भूमिका है.
गौर करने की बात है कि जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील कई क्षेत्र- जैसे कृषि, बुनियादी ढांचा और ऊर्जा, वित्तपोषण के लिए बैंकिंग क्षेत्र पर बहुत अधिक निर्भर हैं. क्लाइमेट रिस्क हॉराइजन नाम की एक संस्था ने पिछले दिनों कुल 35 बैंकों का गहन विश्लेषण करते हुए यह पाया कि भारतीय बैंकों को जलवायु परिवर्तन के जोखिम से निपटने के लिए अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना पड़ेगा. इन 35 बैंकों में से मात्र तीन-चार बैंक ही इस दिशा में अपने कदम आगे बढ़ा रहे हैं. इनमें यस बैंक, आइडीएफसी फर्स्ट बैंक, और एचडीएफसी बैंक शामिल हैं.
पर्यावरण पर काम करने वाली इस संस्था ने अपनी रिपोर्ट में कोयला बहिष्करण नीति, अपने उत्सर्जन (एमिशन) के बारे में पारदर्शिता की नीति, वित्तपोषित उत्सर्जन के बारे में जानकारी, जलवायु जोखिम प्रबंधन, जलवायु परिदृश्य विश्लेषण और नेट शून्य लक्ष्य जैसे कुल 10 मानदंडों पर बैंकों को स्थान दिया है. इसने पाया कि इनमें से यस बैंक, आइडीएफसी बैंक और एचडीएफसी बैंक अग्रणी प्रदर्शनकर्ता के रूप में सामने आये. सर्वे में शामिल कुछ दूसरे बैंक जैसे-आरबीएल और फेडरल बैंक के पास हालांकि कोयला निष्कासन से संबंधित नीति है और उन्होंने 2030 से 2033 के बीच कोयले से चलने वाली परियोजनाओं का वित्तपोषण बंद करने की प्रतिबद्धता जतायी है.
इसी वर्ष 28 फरवरी को भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए जलवायु-संबंधी वित्तीय जोखिमों पर केंद्रित एक दिशा-निर्देश जारी करके भारत की स्थायी वित्तीय प्रथाओं की ओर यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाने का संकेत दिया था. कोयले से दूरी वैसे तो एक छोटा कदम प्रतीत होता है, लेकिन पर्यावरण को बचाये रखने के लिहाज से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है. वास्तविकता यह है कि कोयला अब न तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है और न ही यह आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी है. क्लाइमेट रिस्क हॉराइजन की यह रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बैंकों को अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है. रिपोर्ट में विस्तार से यह बताया गया है कि आरबीएल और फेडरल बैंक ने कोयला वित्तपोषण को रोकने की नीति कर तरह अपनायी है. उल्लेखनीय है कि इन बैंकों ने क्रमशः 2030 और 2033 तक कोयले से जुड़ी परियोजनाओं की फंडिंग बंद करने का वादा किया है. दूसरी ओर, 35 में से सिर्फ छह बैंक ऐसे हैं, जिन्होंने आने वाले वर्षों में नेट जीरो के लक्ष्य तय किये हैं.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये बैंक फाइनेंस किए गये उत्सर्जन का खुलासा आखिर कब करेंगे. यह रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ तीन बैंक ही अभी तक अपने द्वारा वित्तपोषित कार्बन उत्सर्जन के आंकड़े सार्वजनिक कर पाये हैं. जाहिर है, अपने देश में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बैंकों का यह रवैया बहुत उत्साहजनक नहीं दिखायी देता. जबकि भारत से इतर दुनिया भर में हम यह देखते हैं कि जलवायु परिवर्तन के नुकसान से अवगत तमाम कंपनियां जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभावों और उसके जोखिमों का आकलन कर रही हैं. बैंकिंग और वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनियां भी इससे अलग नहीं हैं.
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्बन न्यूट्रैलिटी के मामले में भी बैंकों ने अपने रवैये में कमोबेश बदलाव किया है. इस क्षेत्र के कुछ बैंकों ने कार्बन न्यूट्रैलिटी का लक्ष्य रखा है : उदाहरण के लिए, एचडीएफसी बैंक ने 2031-32 तक कार्बन न्यूट्रल बनाने का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बैंक अपने उत्सर्जन, ऊर्जा और पानी की खपत कम करने पर काम कर रहे हैं. ऐसे ही आइसीआइसीआइ बैंक ने वित्त वर्ष 2032 तक स्कोप 1 और स्कोप 2 उत्सर्जन में कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य रखा है. क्लाइमेट रिस्क हॉराइजन ने अपनी रिपोर्ट में रिजर्व बैंक से इस दिशा में स्पष्ट दिशा-निर्देश की मांग की है. इसके साथ उसने हरित परियोजनाओं के लिए सरकार समर्थित गारंटी, टैक्स इंसेंटिव और सब्सिडी की सिफारिश की भी की है, ताकि बैंकों के लिए ग्रीन लेंडिंग आसान हो सके.
जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से चरम मौसम की घटनाएं देश को प्रभावित करती रहती हैं, और पूरी दुनिया कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था को स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ती जा रही है, ऐसे में, बैंकिंग उद्योग दो परस्पर जुड़े उद्देश्यों पर एक साथ काम कर रहा है. अपनी रणनीति और संचालन पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले असर का पता लगाने के साथ-साथ वह अपने ग्राहकों और समुदायों को इस जटिल और तेजी से बदलते बाजार की गतिशीलता से निपटने में मदद करने का प्रयास कर रहा है. अपने यहां पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बैंकों द्वारा उठाये जाने वाले कदम फिलहाल भले ही उतने महत्वपूर्ण न नजर आते हों, लेकिन धीरे-धीरे बैंकिंग क्षेत्र इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं. जाहिर है, पर्यावरण बचेगा, तभी हमारी अर्थव्यवस्था भी बचेगी. (ये लेखिका के निजी विचार हैं.)