Ethics in medical world :चिकित्सकों को भगवान का रूप माना जाता है. अस्पताल पहुंचकर या डॉक्टर के सामने जाकर रोगी आश्वस्त हो जाता है कि वह स्वस्थ हो जायेगा. चिकित्साकर्मियों ने अपने इस दायित्व का निर्वाह भी बहुत अच्छी तरह से किया है, जैसा कि हमने कोरोना महामारी के दौर में देखा था. लेकिन ऐसी शिकायतें भी अक्सर सामने आती हैं कि चिकित्सक और अस्पताल दवा और मेडिकल साजो-सामान बनाने वाली कंपनियों से नगदी, आभूषण, महंगी चीजें, यात्रा आदि लेते हैं और इसके बदले उनके उत्पादों की बिक्री में सहयोग करते हैं. कौन-सी दवा लेनी है या कौन-सा सामान इस्तेमाल करना है, इसका फैसला तो रोगी या उसके परिजन नहीं ले सकते हैं. वे डॉक्टर या अस्पताल का सुझाव मानने के लिए बाध्य होते हैं.
चूंकि उन्हें डॉक्टरों पर भरोसा होता है, तो वे बतायी गयी दवा या उपकरण खरीद लेते हैं. उपहारों के बदले मेडिकल उपकरण बिकवाने के अनैतिक व्यवहार पर रोक लगाने के उद्देश्य से फार्मास्यूटिकल विभाग ने एक निर्देश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि उपकरण बनाने वाली कंपनियां मार्केटिंग व्यवहार से संबंधित इस संहिता को अपने वेबसाइट पर लगायेंगी तथा इस संबंध में शिकायत दर्ज कराने की व्यवस्था करनी होगी. कंपनियों को सैंपल वितरण, सम्मेलनों पर खर्च आदि का ब्यौरा भी मुहैया कराना होगा. इस निर्देश में कहा गया है कि कंपनियां विदेशों में चिकित्साकर्मियों के लिए सम्मेलन आयोजित न करें, उन्हें होटल, भाड़ा या अनुदान न दिया करें.
यह भी प्रावधान किया गया है कि जब तक किसी उपकरण को नियामक प्राधिकरण से अनुमति नहीं मिल जाती, उसका प्रचार नहीं किया जा सकता है. मंजूरी से पहले ही कंपनियां उनके बारे में बताने लगती हैं तथा उनकी बिक्री बढ़ाने के उपाय किये जाने लगते हैं. उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के प्रारंभ में फार्मास्यूटिकल विभाग ने दवा कंपनियों के लिए इसी तरह की नियमावली जारी की थी. साल 2022 में एक दवा कंपनी पर यह आरोप लगा था कि उसने महामारी के दौरान अपनी एक दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को एक हजार करोड़ रुपये के उपहार बांटे थे.
यद्यपि सरकार द्वारा सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के प्रयास हो रहे हैं, अनेक उपकरणों के दाम भी तय किये गये हैं, अस्पताल में सघन चिकित्सा कक्ष में भर्ती को लेकर निर्देश दिये गये हैं, पर निरंतर निगरानी संभव नहीं है. उपहार लेने की गलत परिपाटी को डॉक्टरों और कंपनियों को ही रोकना होगा. मरीजों को बहुत अधिक खर्च अपनी जेब से करना पड़ता है. कुछ बीमारियों में तो इतना खर्च हो जाता है कि परिवारों पर गरीबी का साया मंडराने लगता है. इन मुश्किलों को जेहन में रखा जाना चाहिए.