16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

तमिलनाडु में अन्ना द्रमुक के सामने अस्तित्व का संकट

तमिलनाडु में 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे. यदि विभिन्न धड़ों में सुलह कराने और उनके विलय के लिए कोशिश कर रही शांति समिति असफल रहती है

तमिलनाडु की राजनीति में कभी अग्रणी दल रहे अन्ना द्रमुक को अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ रहा है. इसकी स्थापना 1972 में एमजी रामचंद्रन द्वारा की गयी थी, जिसे जयललिता के समर्थ नेतृत्व में विस्तार मिला. उनकी मृत्यु के बाद पार्टी तीन धड़ों में टूट गयी और इस बार के लोकसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नहीं मिल सकी. जयललिता के बाद ईके पालनिस्वामी चार साल मुख्यमंत्री रहे, उनके साथ पार्टी के अधिकतर सदस्य और निर्वाचित प्रतिनिधि थे. उनके पास पार्टी का आधिकारिक चुनाव चिह्न- दो पत्तियां- भी था. उन्होंने हाल में चेन्नई में जिला स्तर के पार्टी सदस्यों की बैठक आयोजित की, जिसमें उन्होंने चुनावी हार के बारे में उनकी राय सुनी. जो लोग 2021 के बाद पालनिस्वामी को छोड़कर चले गये थे, अब वे सभी धड़ों का विलय चाहते हैं.

छोड़कर जाने वाले नेताओं में थेवर जाति के बड़े नेता ओ पन्नीरसेल्वम, टीटीवी दिनाकरण और शशिकला प्रमुख हैं. पालनिस्वामी ताकतवर गौंडर जाति से आते हैं. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में पालनिस्वामी समूह को बड़ा झटका लगा और इसके कई उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गयी. नगरपालिका, नगर निगम से लेकर विधानसभा, लोकसभा तक के लगातार दस चुनावों में एमके स्टालिन के द्रमुक से पालनिस्वामी हारते रहे हैं. अन्ना द्रमुक राज्य में गौंडर और थेवर जातियों के संगठनों तक सीमित रह गयी है.

यह पार्टी सिमटती जा रही है. तमिलनाडु के राजनीतिक मैदान का बड़ा हिस्सा आज या तो द्रमुक के प्रभाव में है या भाजपा के. लोकसभा चुनाव में मतदान के रुझान स्पष्ट इंगित करते हैं कि मतदाता दूसरी पार्टियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. एमजी रामचंद्रन और जयललिता के समर्थकों ने हाल में ‘शांति समिति’ का गठन किया है, जिसके माध्यम से सभी धड़ों से संपर्क कर एक साथ विलय का प्रयास किया जा रहा है. समर्थक एक मजबूत नेतृत्व चाहते हैं, जो अन्ना द्रमुक के चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक का सामना कर सके. लेकिन लगभग सभी चारों धड़े अलग-अलग समय पर द्रविड़ संस्कृति का गुणगान करते हैं तथा स्टालिन का समर्थन करते हैं. राज्य की लगभग आठ द्रविड़ पार्टियां हिंदुत्व और भाजपा के वर्चस्व का विरोध करना चाहती हैं. तमिलनाडु में नरम हिंदुत्व विचारधारा को लाने का श्रेय एमजी रामचंद्रन और जयललिता को जाता है. जयललिता ने राम मंदिर निर्माण और अनुच्छेद 370 हटाने का पूर्ण समर्थन किया था.

विचारधारा के इन अलग-अलग रूपों से पालनिस्वामी और पन्नीरसेल्वम को द्रविड़ राजनीति के विरुद्ध मदद मिल रही है. लेकिन पार्टी के तीन करोड़ समर्थक स्टालिन और द्रमुक से राजनीतिक रूप से उसी तरह लड़ना चाहते हैं, जिस तरह जयललिता लड़ती थीं और अक्सर द्रमुक को परास्त करती थीं. जातिगत राजनीति से क्षुब्ध होकर बहुत से समर्थक अन्ना द्रमुक से अलग हो रहे हैं. इस निरंतर पलायन ने पार्टी के भविष्य पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है. गौंडर खेमा जहां पार्टी से अलग हो गया, वहीं थेवर खेमा पार्टी में बना रहा. इस तरह अन्ना द्रमुक आंतरिक रूप से केवल विचारधारा संबंधी संकट का सामना नहीं कर रही है, वहां जाति वर्चस्व भी है. सभी खेमे एक-दूसरे पर जाति वर्चस्व बढ़ाने का आरोप लगाते हैं.

तमिलनाडु में 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे. यदि विभिन्न धड़ों में सुलह कराने और उनके विलय के लिए कोशिश कर रही शांति समिति असफल रहती है, तो पालनिस्वामी खेमे से पांचवें विभाजन के साथ समर्थकों के एक और पलायन की गंभीर आशंका जतायी जा रही है. पालनिस्वामी खेमे से ऐसी आवाजें उठनी शुरू हो गयी हैं कि एसडीपीआइ और एनटीके जैसी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया जाए. सीमान के नेतृत्व वाला एनटीके धड़ा भी द्रविड़ विचारधारा से संबद्ध है. वे श्रीलंका में चल रहे तमिल ईलम आंदोलन के कड़े समर्थक हैं तथा लिट्टे के दिवंगत नेता प्रभाकरण को बहुत सम्मान देते हैं. ऐसे में क्या पालनिस्वामी उनके साथ जाना पसंद करेंगे? इस पृष्ठभूमि में अगर बिना किसी पूर्वाग्रह के विश्लेषण किया जाए, तो अन्ना द्रमुक का भविष्य मुश्किल दिखता है. यदि सभी समूहों द्वारा तौर-तरीके में बदलाव नहीं हुआ, तो पार्टी में फिर एक टूट हो सकती है. ऐसी स्थिति में नया गुट द्रमुक या भाजपा के साथ जायेगा.

क्या अन्ना द्रमुक की मौजूदा स्थिति में नयी दिल्ली की भी कोई भूमिका है? इसका जवाब हां है. यह रणनीति जयललिता के निधन के तुरंत बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्तावित की थी. लेकिन पालनिस्वामी जिद पर अड़े रहे थे. यदि लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रस्ताव को मान लिया जाता, तो द्रमुक के खाते में राज्य की सभी सीटें नहीं जातीं और पालनिस्वामी के नेतृत्व वाली पार्टी केंद्र सरकार का हिस्सा होती. इसलिए 2026 बहुत अहम है. अभी पालनिस्वामी के साथ 66 विधायक और राज्यसभा के छह सांसद हैं. यदि इस बार भी वे अपनी जिद पर अड़े रहे, तो द्रमुक की फिर जीत सुनिश्चित है. उस स्थिति में डॉ रामदास की पीएमके, वासन की तमिल मनिला कांग्रेस, सीमन की एनटीके जैसी तमिलनाडु की आठ छोटी पार्टियों की स्थिति भी बद से बदतर हो जायेगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें