केंद्रीय बजट से मध्य वर्ग की उम्मीदें
वर्ष 2023-24 में 140 करोड़ से अधिक लोगों में से सिर्फ 2.79 करोड़ लोगों ने ही आयकर दिया है, यानी देश की आबादी के 1.97 फीसदी लोगों ने ही आयकर दिया है.
पूरे देश के साथ-साथ क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की निगाहें 23 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश होने वाले 2024-25 के पूर्ण बजट पर हैं. वैश्विक ब्रोकरेज कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय बजट में राजस्व व्यय के मुकाबले पूंजीगत खर्च पर जोर रहेगा और इससे मध्य वर्ग को लाभ हो सकता है. इसमें 2047 तक विकसित भारत के लिए खाका और राजकोषीय मजबूती के लिए मध्यम अवधि की योजना भी पेश की जा सकती है. वित्त मंत्री बजट के माध्यम से मध्य वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाकर मांग में वृद्धि कर अर्थव्यवस्था को गतिशील करने की रणनीति पर आगे बढ़ते हुए दिख सकती हैं. मध्य वर्ग को राहत देने की मांग, विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद, लगातार तेज हुई है.
सरकार ने विगत वर्षों में जहां गरीब लोगों के लिए कई राहतों का ऐलान किया, वहीं कॉरपोरेट जगत पर भी उसने ध्यान दिया. लेकिन राहत पाने में सबसे अधिक कर देने वाला मध्य वर्ग पीछे छूट गया. बीते लोकसभा चुनाव में मध्य वर्ग की नाराजगी भी दिखी है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा है कि मध्य वर्ग देश के विकास का चालक है और यह वर्ग कैसे कुछ बचत बढ़ा सके तथा इस वर्ग के लोगों की जिंदगी कैसे आसान बनायी जा सके, इस परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ा जायेगा.
इस बजट के समय वित्त मंत्री के पास आयकर संबंधी मजबूत परिदृश्य मौजूद है. पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले करदाताओं की संख्या और कर प्राप्ति में बड़ी वृद्धि हुई है. वित्त वर्ष 2023-24 में आयकर रिटर्न रिकॉर्ड आठ करोड़ के स्तर को पार कर चुका है और पिछले 10 वर्षों में रिटर्न भरने वाले दुगुने से अधिक हुए हैं. आयकर विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2013-14 में आयकर संग्रह करीब 2.38 लाख करोड़ रुपये था. वर्ष 2019-20 में यह 10.5 लाख करोड़ रुपये हो गया. कोरोना काल के कारण यह 2020-21 में घटकर 9.47 लाख करोड़ रुपये हो गया. आयकर संग्रह 2021-22 में 14.08, 2022-23 में 16.64 और 2023-24 में 19.58 करोड़ रुपये हो गया.
ऐसे में सीतारमण आयकर के नये और पुराने दोनों स्लैब की व्यवस्थाओं के तहत करदाताओं व मध्य वर्ग को अभूतपूर्व राहतों से लाभान्वित कर सकती हैं. खास तौर से वेतनभोगी वर्ग को लाभान्वित करने के भी विशेष प्रावधान बजट में दिख सकते हैं. इसके तहत मानक कटौती सीमा को 50,000 से बढ़ाकर एक लाख रुपये तक किया जा सकता है. ज्ञातव्य है कि 2018 में मानक कटौती की सीमा 40 हजार रुपये थी, जिसे 2019 में बढ़ाकर 50 हजार रुपये किया गया था. मानक कटौती वह राशि है, जिसे वेतनभोगी करदाता अपनी कर योग्य आय में से बिना कोई सबूत दिये घटा सकता है. टीडीएस के कारण वेतनभोगी नियमानुसार ईमानदारी से आयकर चुकाते हैं और आमदनी को कम बताने की गुंजाइश नगण्य होती है.
वेतनभोगी वर्ग की राहत की अपेक्षा इसलिए भी न्यायसंगत है कि इस वर्ग द्वारा दिया गया कुल आयकर पेशेवरों और कारोबारी करदाताओं के वर्ग द्वारा चुकाये गये आयकर से काफी अधिक होता है. बजट में आयकर से संबंधित विभिन्न छूटों में वृद्धि की जा सकती है. अभी धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये की छूट मिलती है. इसके तहत ईपीएफ, पीपीएफ, एनएससी, जीवन बीमा, बच्चों की ट्यूशन फीस और होम लोन का मूलधन भुगतान शामिल हैं. मकानों की बढ़ती कीमत को देखते हुए धारा 80सी के तहत 2.5 लाख से तीन लाख की छूट दी जा सकती है. इसी तरह सरकार इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80डी के तहत कर कटौती की सीमा बढ़ा सकती है. सरकार 80डी के तहत स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर छूट बढ़ा सकती है ताकि करदाता स्वास्थ्य बीमा को लेकर प्रेरित हों. इसके साथ-साथ वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष सीमा बढ़ाने से लोगों को स्वास्थ्य बीमा कराने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) में योगदान की वार्षिक सीमा को मौजूदा 1.5 लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख रुपये किया जा सकता है.
देश में कर सुधारों से आयकर संग्रहण में आशातीत वृद्धि हुई है. लेकिन अभी आयकर के दायरे में इजाफा किये जाने की बड़ी संभावनाएं हैं. जहां 2024-25 के बजट से वित्त मंत्री आयकर राहत संबंधी उपहार सौंप सकती हैं, वहीं वे बजट में आयकर के दायरे का विस्तार करने की नयी रणनीति का ऐलान कर सकती हैं. यह भी महत्वपूर्ण है कि बड़ी संख्या में उद्योग-कारोबार सेक्टर में कार्यरत रहते हुए कमाई करने वाले लोग महंगी व विलासिता की वस्तुओं का उपभोग करते हैं. पर्यटन के लिए विदेश यात्राएं करने वालों में से बड़ी संख्या में लोग या तो कर न देने का प्रयास करते हैं या फिर बहुत कम कर देते हैं. विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक पिछले एक वर्ष में करीब 24 लाख लोगों ने 10 लाख रुपये से महंगी कारें खरीदीं, करीब 25 लाख लोगों ने 50 लाख रुपये से अधिक कीमत के घर खरीदे, 2022 में करीब 2.16 करोड़ लोग पर्यटन के लिए विदेश गये. लेकिन ऊंची कमाई के बाद भी कई लोग आयकर नहीं देना चाहते.
वर्ष 2023-24 में 140 करोड़ से अधिक लोगों में से सिर्फ 2.79 करोड़ लोगों ने ही आयकर दिया है, यानी देश की आबादी के 1.97 फीसदी लोगों ने ही आयकर दिया है. आयकर का पूरा बोझ दो फीसदी से भी कम आबादी के द्वारा उठाया जा रहा है. साथ ही, कुल आयकर रिटर्न का करीब 70 फीसदी हिस्सा शून्य आयकर देयता श्रेणी में है. ऐसे में आयकर संग्रहण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में महज 11.7 फीसदी ही है. यह जर्मनी में 38, जापान में 31, ब्रिटेन में 25, अमेरिका में 25 और चीन में 18 फीसदी है. स्थिति यह है कि अमेरिका की 60 फीसदी और ब्रिटेन की 55 फीसदी आबादी आयकर चुकाती है. दुनिया की कई छोटी-छोटी अर्थव्यवस्थाओं में संग्रहित किये जाने वाले आयकर का उनकी जीडीपी में बड़ा योगदान है. अतएव, हम उम्मीद करें कि इस बार वित्त मंत्री बजट से ऐसे लोगों को चिह्नित करने की नयी रणनीति के साथ दिखाई देंगी, जिससे वास्तविक आमदनी का सही मूल्यांकन हो सके, लोगों के वित्तीय लेन-देन के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त हो सके तथा जो वास्तविक कमाई से कम पर आयकर देते हैं, उन्हें भी चिह्नित कर अपेक्षित आयकर चुकाने के लिए बाध्य किया जा सके. निश्चित रूप से इससे देश में टैक्स संग्रहण बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)