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पहली लॉजिस्टिक नीति

हमारे देश में अलग-अलग क्षेत्रों में संसाधन हैं, पर विकास की गति में अंतर है. लॉजिस्टिक से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार से हर जगह विकास की संभावनाएं पैदा होंगी.

देश के सर्वांगीण विकास के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार आधारभूत आवश्यकता है. इसके साथ ही सामानों की सुरक्षित और तीव्र ढुलाई भी बहुत जरूरी है. इसे सुनिश्चित करने के लिए अंततः देश के पास एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक पॉलिसी निर्धारित कर दी गयी है. यह नीति लंबे समय से हो रहे विचार-विमर्श के बाद साकार हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेखांकित किया है कि यह नीति आठ सालों के काम का नतीजा है.

इससे सभी क्षेत्रों को लाभ मिलेगा और, जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में आह्वान किया था, देश को 2047 में एक विकसित राष्ट्र बनाने के प्रयास में इससे बड़ी मदद मिलेगी. लॉजिस्टिक में वे तमाम चीजें शामिल होती हैं, जो औद्योगिक उत्पादन और वितरण में सहायक होती हैं, जैसे- योजना बनाना, भंडारण करना, कामगारों और अन्य संसाधनों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना,

उत्पादित वस्तु को बाजार तक ले जाना आदि. हमारे देश में अभी तक कोई स्पष्ट नीति नहीं होने के कारण जीडीपी में लॉजिस्टिक के खर्च की हिस्सेदारी 14 से 18 फीसदी है, जबकि अच्छी अर्थव्यवस्थाओं में यह आंकड़ा आठ प्रतिशत के आसपास होता है. इस नीति के ठीक से अनुपालन होने से 2030 में हम उस स्तर पर आ सकते हैं. इस नीति का दूसरा लक्ष्य लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक में भारत को शीर्ष के 25 देशों में शामिल करना है.

आज हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. आगे विकास की राह सुगम हो, हम विकसित राष्ट्र बनें और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की महत्वपूर्ण उपस्थिति हो, ऐसे उद्देश्यों को साकार करने के लिए लॉजिस्टिक पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. इससे संसाधनों की ढुलाई का खर्च कम होगा तथा व्यापक तौर पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे. हमारे देश में अलग-अलग क्षेत्रों में संसाधन हैं, पर विकास की गति में अंतर है.

लॉजिस्टिक से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार से हर जगह विकास की संभावनाएं पैदा होंगी. तकनीकी इस्तेमाल से इस नीति को लागू करने में आसानी होने की उम्मीद है. कई चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें अगर जल्दी बाजार में नहीं पहुंचाया जाए, तो खराब हो जाती हैं. ढुलाई के खर्च में बढ़ोतरी से दामों पर भी असर होता है. इसके सबसे बड़े भुक्तभोगी ग्रामीण लोग और शहरी निम्न आय वर्ग व गरीब होते हैं.

कुछ हद तक इसके समाधान की उम्मीद की जा सकती है. यह नीति अभी लागू हो रही है और समय के साथ इसमें समुचित संशोधन भी होंगे. लेकिन अभी प्रारंभिक चरण में संबंधित कौशल विकास और मझोले उद्यमों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.

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