बाढ़ और असम की अर्थव्यवस्था
अनुमान है कि बाढ़ में सालाना 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. राज्य में इतनी मूलभूत सुविधाएं खड़ी करने में दस साल लगते हैं यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है.
पंकज चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
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असम के 32 जिलों के 5,424 गांव पानी में डूबे हैं और लगभग 47.72 लाख लोग इससे सीधे प्रभावित हुए हैं. मौत का आंकड़ा 80 पार कर गया है. अभी तक एक लाख हेक्टेयर खेती नष्ट होने की बात सरकार मानती है. अगस्त तक राज्य में यहां-वहां पानी ऐसे ही विकास के नाम पर रची गयी संरचनाओं को उजाड़ता रहेगा. हर साल राज्य के विकास में जो धन व्यय होता है, उससे ज्यादा नुकसान दो महीने में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियां कर जाती हैं. असम के कुल क्षेत्रफल 78,438 वर्ग किमी में से 56,194 वर्ग किमी ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में है और बाकी 22,244 वर्ग किमी का हिस्सा बराक नदी की घाटी में है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक, असम का कुल 31,500 वर्ग किमी हिस्सा बाढ़ प्रभावित है, यानी असम के क्षेत्रफल का करीब 40 फीसदी हिस्सा बाढ़ प्रभावित है, जबकि देशभर का 10.2 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ प्रभावित है. अनुमान है कि इसमें सालाना कोई 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. राज्य में इतनी मूलभूत सुविधाएं खड़ी करने में दस साल लगते हैं, यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है.
असम में प्राकृतिक संसाधन, मानव संसाधन और अच्छी भौगोलिक परिस्थितियां होने के बावजूद समुचित विकास न होने का कारण ब्रह्मपुत्र की बाढ़ है. बारिश में हर साल यह पूर्वोत्तर राज्यों में गांव-खेत बरबाद करती रही है. वहां के लोगों का सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन इसी नदी के चहुंओर थिरकता है, सो तबाही को भी वे प्रकृति की देन ही समझते रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों से जिस तरह से ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों में बाढ़ आ रही है, वह हिमालय के ग्लेशियर क्षेत्र में मानवजन्य छेड़छाड़ का ही परिणाम है. सरकारों का ध्यान बाढ़ के बाद राहत कार्यों व मुआवजा पर रहता है. यह दुखद है कि आजादी के 75 साल बाद भी हम बाढ़ नियंत्रण की मुकम्मल योजना नहीं दे पाये हैं. यदि बाढ़ से हुए नुकसान व बांटी गयी राहत राशि को जोड़ें, तो पायेंगे कि इतने धन में एक नया सुरक्षित असम खड़ा किया जा सकता था.
बाढ़ के रौद्र होने का मुख्य कारण इसके पहाड़ी मार्ग पर अंधाधुंध जंगल कटाई माना जा रहा है. बारिश की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं, लेकिन जब पेड़ कम हुए, तो ये बूंदें सीधी ही जमीन से टकराने लगीं. इससे जमीन की ऊपरी मिट्टी पानी के साथ बह रही है. बहाव में अधिक मिट्टी होने से नदी उथली हो गयी है और थोड़ा पानी आने पर ही इसकी जलधारा बिखर कर बस्तियों की राह पकड़ लेती है. ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां, उनकी कोई 48 सहायक नदियां और उनसे जुड़ी असंख्य सरिताओं पर सिंचाई व बिजली उत्पादन परियोजनाओं के अलावा इनके जल प्रवाह को आबादी में घुसने से रोकने की योजनाएं बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. असम की अर्थव्यवस्था का मूल आधार खेती ही है, और बाढ़ का पानी हर साल लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसल को नष्ट कर देता है.
ऐसे में किसान कभी भी कर्ज से उबर ही नहीं पाता है. ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह की दिशा कहीं भी, कभी भी बदल जाती है. परिणामस्वरूप जमीन का कटाव भी होता रहता है. यह क्षेत्र भूकंप ग्रस्त है. जमीन खिसकने की घटनाएं भी यहां की खेती को प्रभावित करती हैं. असम में मई से सितंबर तक बाढ़ रहती है और इसकी चपेट में तीन से पांच लाख हेक्टेयर खेत आते हैं. खेती के तरीकों में बदलाव और जंगलों के बेतरतीब दोहन जैसी मानव-निर्मित दुर्घटनाओं ने जमीन के नुकसान के खतरे को दुगना कर दिया है.
राज्य में नदी पर बने अधिकतर तटबंध व बांध साठ के दशक में बनाये गये थे. अब वे बढ़ते पानी को रोक पाने में असमर्थ हैं. उनमें गाद भी जम गयी है, जिसकी नियमित सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है. पिछले साल पहली बारिश के दवाब में 50 से अधिक स्थानों पर ये बांध टूटे थे. इस साल पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेड़ टूटने से पानी गांव में फैलने की खबर है. कई बार मिट्टी के कारण उथले हो गये बांध में जब पानी लबालब भर कर चटकने की कगार पर पहुंचता है, तो गांव वाले अपना घर-बार बचाने के लिए मेड़ तोड़ देते हैं. उनका गांव तो थोड़ा बच जाता है, पर करीबी बस्तियां जलमग्न हो जाती हैं. बराक नदी गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेधना नदी प्रणाली की दूसरी सबसे बड़ी नदी है.
इसमें उत्तर-पूर्वी भारत के कई सौ पहाड़ी नाले आकर मिलते हैं, जो पानी की मात्रा व उसका वेग बढ़ा देते हैं. ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंधन के लिए दिसंबर, 1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गयी थी. केंद्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई सालों से काम कर रहा हैं. इन महकमों ने अभी तक जो भी कुछ किया है, उससे कागज पर संतुष्टि हो सकती है, लोगों तक उनका काम नहीं पहुंचा हैं. असम को सालाना बाढ़ से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध व तटबंधों की सफाई तथा नये बांधों का निर्माण जरूरी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)