साल-दर-साल आती बाढ़ के सबक
नदी के किनारों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं और उनके आसपास इमारतें खड़ी होती जा रही हैं. इससे नदी के प्रवाह में दिक्कतें आती हैं और जब भी अच्छी बारिश होती है, बाढ़ आ जाती है.
उत्तर भारत में भारी बारिश ने तबाही मचा रखी है. दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में कई स्थानों पर लगातार बारिश से बाढ़ की परिस्थिति बन गयी है. हिमाचल और उत्तराखंड में भारी बारिश और भूस्खलन से कई लोगों की मौत हो गयी है. पर्वतीय राज्यों से ऐसे कई वीडियो सामने आये हैं, जिनमें उफनती नदियों की वजह से तटबंध टूट गये हैं और मकान ताश के पत्तों की तरह बिखरते दिख रहे हैं. पानी के तेज बहाव में कारें बहती नजर आ रही हैं.
भारी बारिश के कारण उत्तरी राज्यों के कई शहरों में सड़कें तालाब जैसी नजर आ रही हैं और पानी घरों के अंदर घुस गया है. कई स्थानों पर तो बहुमंजिली इमारतों का एक फ्लोर का बड़ा हिस्सा तक पानी में डूब गया है. और तो और, देश की राजधानी दिल्ली को भी बाढ़ का प्रकोप झेलना पड़ रहा है. बारिश ने दिल्ली में बीते 40 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. पहाड़ों पर हुई भारी बारिश के कारण यमुना में आयी बाढ़ ने दिल्ली को अस्त-व्यस्त कर दिया है.
दिल्ली के कई इलाकों में पानी भर गया है और हजारों लोगों को बाहर निकाला गया है. दिल्ली और आसपास के स्कूल बंद हैं और यमुना से सटे रास्तों पर आवाजाही पर प्रतिबंध है. एनडीआरएफ की टीमें दिन-रात बचाव और राहत कार्य में जुटी हैं और हर बार की तरह सराहनीय कार्य कर रही हैं. आदर्श स्थिति तो यह है कि हम अपनी ऊर्जा सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप में नष्ट न करें, बल्कि लोगों को संकट से उबारने में पूरी ताकत लगे और इस मसले पर कोई राजनीति न हो, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. सबसे अहम बात यह है कि इस समस्या का कोई स्थायी समाधान ढूंढने की सामूहिक कोशिश होती हुई भी नजर नहीं आ रही है.
उत्तर भारत के अनेक शहरों में बाढ़ जैसी स्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं. यह सच है कि अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद हम अभी तक बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं. हम बिहार में साल-दर-साल बाढ़ का प्रकोप झेलते आये हैं और अब यह सामान्य बात बन कर रह गयी है. यदि बाढ़ के कारणों पर गौर करें, तो इसकी सबसे बड़ी वजह है अनियोजित और अनियंत्रित विकास.
दिल्ली में यमुना के किनारे बड़ी संख्या में बस्तियां बन गयीं. पर्यावरणविदों के विरोध के बावजूद एशियाई खेलों के लिए खेल गांव बना दिया गया और एक विशालकाय मंदिर बनाने की अनुमति दे दी गयी. यह सब निर्माण उस स्थान पर किया गया, जहां बारिश के दौरान हर साल पानी पहुंचता था. पिछले कुछ वर्षों से बारिश सामान्य से कम थी, तो कुछ नहीं हुआ, लेकिन ज्यों ही थोड़ी ज्यादा बारिश हुई कि यमुना के किनारे बसी बस्तियों में पानी घुस गया.
यह कहानी कमोबेश हर शहर की है. मुझे तो याद नहीं कि बारिश का मौसम हो और असम में बाढ़ की खबर न आए. बिहार की कहानी तो अलग ही है. यहां बिना बारिश के बाढ़ आ जाती है. नेपाल में ज्यादा बारिश हो अथवा उत्तराखंड में, उसका खामियाजा बिहार की जनता को झेलना पड़ता है. समुचित जल प्रबंधन के अभाव में बाढ़ पूरे देश के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है. बाढ़ न केवल जनजीवन को प्रभावित करती है, बल्कि राज्य व देश की अर्थव्यवस्था को भी खासा नुकसान पहुंचाती है.
यह हमारे देश की सच्चाई है कि हमारे हर शहर का एक मास्टर प्लान होता है, लेकिन उसका अस्तित्व केवल कागजों तक सीमित होता है. कागजों में यह भी दर्ज होता है कि शहर के कौन-से निचले इलाके हैं और उनके लिए पानी निकासी का रास्ता क्या होगा. शहर की एक पूरी जल निकासी व्यवस्था होती है, लेकिन यह योजना कभी लागू नहीं होती है. अगर सभी शहरों में पानी की निकासी की व्यवस्था ठीक कर दी जाए, तो जलजमाव की 90 फीसदी समस्या का समाधान हो जायेगा.
बाढ़ के लिए कुछ हद तक हम-आप भी दोषी हैं. अगर हम अपने आसपास देखें, तो पायेंगे कि नदी के किनारों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं और उसके आसपास इमारतें खड़ी होती जा रही हैं. इससे नदी के प्रवाह में दिक्कतें आती हैं और जब भी अच्छी बारिश होती है, बाढ़ आ जाती है. दिल्ली का उदाहरण हमारे सामने है. शहरों में बाढ़ आने का एक अन्य कारण होता है- जल निकासी व्यवस्था पर जरूरत से ज्यादा दबाव.
नाले की एक क्षमता होती है कि उसमें कितना पानी जा सकता है. बाद में कई अनाधिकृत और अधिकृत बस्तियां बसने लगती हैं, जिनसे नालों में जो पानी जाता है, वह उस क्षमता से बहुत अधिक होता है. नतीजतन, पानी नालों से ऊपर आकर सड़कों पर बहने लगता है. नदियों और नालों से गाद निकालने का काम तो वर्षों पहले ही बंद ही कर दिया गया है. गाद न निकाले जाने से नदी-नालों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे अधिक बारिश में वे ओवरफ्लो करने लगते हैं. हमारे देश में ज्यादातर शहरों में नाले नदियों में जाकर गिरते हैं. कई नदियों एक दूसरे में मिलने के बाद समुद्र में जाकर मिलती हैं.
जलवायु परिवर्तन की भी इसमें बड़ी भूमिका है. उत्तर भारत में तो जरूरत से ज्यादा बारिश हो रही है, लेकिन बिहार-झारखंड में पर्याप्त बारिश नहीं हो रही है. दरअसल, देश के मौसम का मिजाज बिगड़ गया है. कभी गरमी, तो कभी बारिश का कहर देश के कई इलाकों को झेलना पड़ रहा है, लेकिन इस विषय में हम तभी सोचते हैं जब समस्या हमारे सिर पर आ खड़ी होती है. समस्या केवल कम या अधिक बारिश की नहीं है. बारिश होती भी है, तो हम जल संरक्षण नहीं करते हैं.
जो हमारे तालाब हैं, उनको हमने पाट दिया है. शहरों में तो उनके स्थान पर बहुमंजिले अपार्टमेंट्स और मॉल खड़े हो गये हैं. नतीजा यह हुआ कि शहरों का जलस्तर तेजी से घटने लगा. जिन शहरों में कभी बहुत कम गहराई पर पानी उपलब्ध होता था, वहां जलस्तर दो सौ फीट तक पहुंच गया. बिहार के तालाबों में सैकड़ों किस्म की मछलियां होती थीं, वह खत्म हो गयीं. गांवों में जल संरक्षण के उपाय हमने कब के छोड़ दिये हैं. बस्ती के आसपास जलाशय- तालाब, पोखर आदि बनाये जाते थे, लेकिन हमने अपने आसपास के तालाब मिटा दिये और जल संरक्षण का काम छोड़ दिया. इस सबका नतीजा हम सबके सामने है.