इन दिनों पाकिस्तान अभूतपूर्व बाढ़ की चपेट में है. देश का एक-तिहाई हिस्सा जलमग्न है. इस प्रलयकारी बाढ़ में अब तक 11 सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. अधिकारियों का मानना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है. आकलनों की मानें, तो कम-से-कम 3.3 करोड़ लोग इस आपदा से प्रभावित हैं. इस वर्ष मानसून में वहां कई क्षेत्रों में सामान्य से बहुत अधिक बारिश हुई है.
लगातार मूसलाधार बरसात से स्थिति बिगड़ती जा रही है तथा इससे राहत एवं बचाव कार्य भी बाधित हो रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की गुहार लगायी है. पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि इस आपदा से 10 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है. बताया जा रहा है कि 7.20 लाख पशु भी मारे गये हैं तथा लगभग 35 सौ किलोमीटर सड़क, 149 पुल, 170 दुकानें और 9.50 लाख घर तबाह हो चुके हैं.
भारत समेत कई देशों ने पाकिस्तानी सरकार को सांत्वना दी है तथा मदद का वादा किया है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी बाढ़ की तबाही पर अपना दुख व्यक्त किया है. एक तो पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बहुत समय से खराब है और महंगाई भी चरम पर है. राहत और बचाव के लिए आवश्यक संसाधनों का भी अभाव है.
सड़कों और पुलों के बहने से भी प्रभावित लोगों तक पहुंच पाना बेहद मुश्किल है. इन कारणों ने त्रासदी को और गंभीर बना दिया है. पाकिस्तानी सरकार वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत से सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों का आयात करना चाहती है ताकि महंगाई से राहत मिल सके तथा बाढ़ से तबाह हुई फसलों की कुछ भरपाई हो सके.
इसे आसान करने के लिए इन चीजों को शुल्क मुक्त करने का भी प्रस्ताव है. तीन वर्ष पहले पाकिस्तान ने अनुच्छेद 370 के मसले को बहाना बनाते हुए भारत से व्यापार संबंधों को सीमित कर दिया था. भारत ने विभिन्न देशों, विशेषकर पड़ोसी देशों, की हमेशा मदद की है. कई देशों को कोरोना टीके और अन्य मेडिकल साजो-सामान भेजा गया है. अफगानिस्तान को गेहूं और दवाइयां दी गयी हैं. श्रीलंका को नगद सहयोग के साथ खाद्य पदार्थ और ईंधन मुहैया कराया गया है.
पड़ोसी देशों के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए अनेक कोशिशें हो रही हैं. लेकिन पाकिस्तान का रवैया हमेशा ही निराशाजनक रहा है. भारत को अस्थिर करने के प्रयासों के उसके रुख से दक्षिणी एशिया को बहुत नुकसान पहुंचा है. यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में है. इसके लिए भारत और पड़ोसी देशों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करना होगा. इसके लिए परस्पर विश्वास का वातावरण बनाना होगा.