आर्थिक वृद्धि के वैकल्पिक सूत्र

हम असली सवाल कब पूछेंगे? देश एक भयावह संकट की तरफ बढ़ता जा रहा है. हर दिन कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेज इजाफा हो रहा है. चार दशक बाद पहली बार आर्थिक वृद्धि की रफ्तार शून्य से नीचे जाने की संभावना है.क्या हम सिर्फ आशंका व्यक्त करेंगे और आंकड़े गिनते रहेंगे? या फिर हमदेश के सामने एक स्पष्ट योजना रखकर काम करने का संकल्प दिखायेंगे ? वित्तमंत्री के कथित पैकेज का पिटारा खुलने के बाद हम जैसे कुछ लोगों नेतय किया कि सिर्फ विरोध नहीं, हम इसका विकल्प भी तैयार करेंगे.

By योगेंद्र यादव | May 30, 2020 11:14 AM
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योगेंद्र यादव

अध्यक्ष, स्वराज इंडिया

yyopinion@gmail.com

हम असली सवाल कब पूछेंगे? देश एक भयावह संकट की तरफ बढ़ता जा रहा है. हर दिन कोरोना संक्रमितों की संख्या में तेज इजाफा हो रहा है. चार दशक बाद पहली बार आर्थिक वृद्धि की रफ्तार शून्य से नीचे जाने की संभावना है.क्या हम सिर्फ आशंका व्यक्त करेंगे और आंकड़े गिनते रहेंगे? या फिर हमदेश के सामने एक स्पष्ट योजना रखकर काम करने का संकल्प दिखायेंगे ? वित्तमंत्री के कथित पैकेज का पिटारा खुलने के बाद हम जैसे कुछ लोगों नेतय किया कि सिर्फ विरोध नहीं, हम इसका विकल्प भी तैयार करेंगे. इसलिए 28 अर्थशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों और मेरे जैसे कार्यकर्ताओं ने मिलकर सात सूत्रीय योजना सामने रखी है.पहला सूत्र है ‘दस दिन में घर वापसी, बिना देर, बिना शर्त, बिना खर्च.’केंद्र और राज्य सरकार मिलकर यह जिम्मेदारी उठायें कि जो मजदूर अपने घरजाना चाहते हैं, उन्हें दस दिन के भीतर पहुंचाया जाये.

दूसरा सूत्र है’देश कोरोना के मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों के साथ खड़ा है’. कोरोना के लक्षणों से पीड़ित हर मरीज को फ्री टेस्ट से लेकर जरूरत पड़ने पर कोरेंटिन, अस्पताल, आइसीयू और वेंटिलेटर तक की मुफ्त सुविधा उपलब्ध करायी जाये. खासतौर पर स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों और उनके परिवारों को पूरी सुरक्षा दी जाये. तीसरा सूत्र है, ‘कोई भूखा न सोये, छह महीने तक हर परिवार को पूरा राशन’. यहां हमारा प्रस्ताव है कि अगले छह महीने तक सभी,राशन कार्ड धारकों और जिनके पास राशन कार्ड नहीं भी हैं, को प्रति माह,प्रति व्यक्ति 10 किलो अनाज, डेढ़ किलो दाल, आधा किलो चीनी और 800 ग्राम खाने का तेल मुफ्त दिया जाये. हमने अर्थव्यवस्था के लिए भी कुछ सूत्र दिये हैं.

चौथा सूत्र है, ‘हर हाथ को काम, हर परिवार को इस साल 200 रुपये दिहाड़ी की गारंटी’. इसके तहत गांव में मनरेगा को 100 दिन से बढ़ाकर 200 दिन करना और शहरों में प्रति व्यक्ति कम से कम 100 दिन की रोजगार गारंटी देना शामिल है. नौकरी पेशा और स्वरोजगार में लगे लोगों के लिए पांचवां सूत्र है, ‘कोई न हो खाली हाथ,सैलरी रुकने और काम-धंधा बंद होने पर सरकारी मदद’. हमारा प्रस्ताव है कि छंटनी के शिकार कर्मचारियों, फसल नष्ट होने के शिकार किसानों, धंधा चौपटहोने के शिकार रेहड़ी-पटरी या छोटे दुकानदारों आदि को सरकार द्वारा नकद मुआवजा दिया जाये. छठा सूत्र है, ‘अर्थव्यवस्था सुधरने तक सूदखोरी बंद,तीन महीने के लिए किसान, छोटे व्यापारी और हाउसिंग लोन पर ब्याज नहीं’.

हमने उम्मीद की थी कि अब विरोध की जगह केवल विकल्प होगा और सार्थक बहस चलेगी. यह प्रस्ताव रखने वालों में प्रो दीपक नय्यर, अभिजीत सेन, प्रणबबर्धन, ज्यां द्रेज सरीखे विश्वविख्यात अर्थशास्त्री और रामचंद्र गुहा,गोपाल गुरु और राजमोहन गांधी जैसे बुद्धिजीवी और हर्ष मंदर, अंजलि भारद्वाज, निखिल डे, बेजवाड़ा विल्सन और मुझ जैसे नाचीज कार्यकर्ता भी शामिल थे. मजे की बात तो यह है कि बहस तो हुई, लेकिन इन छह अति आवश्यक मुद्दों पर नहीं, बल्कि सातवें सूत्र पर, जिसमें लिखा था, ‘साधन का बंधन नहीं, कोई भी मिशन साधन के अभाव में न रुके’. इसमें एक जगह शब्दा वली ऐसी थी, जिससे यह आशंका हो सकती थी कि मानो हम हर तरह की निजी संपत्ति के सरकारी अधिग्रहण की बात कर रहे हों. जाहिर है, हमारी ऐसी कोई नीयत नहीं थी, इसलिए हमने तुरंत सुधार कर साफ लिख दिया कि हम इतना ही चाहते हैं कि सरकार राष्ट्रीय संकट का सामना करने के लिए टैक्स और सेस आदि से आगे बढ़कर कोई अन्य आपात विकल्प खोजे. लेकिन सरकार, विपक्ष और मीडिया इस कठिन सवाल का सामना नहीं करना चाहते.इस सवाल के तीन ही जवाब हो सकते हैं.

एक यह कि सरकार को घोषित पैकेज से ज्यादा कुछ और करने की जरूरत नहीं है, इसलिए और साधन जुटाने की जरूरत नहीं है. यह जवाब झूठा है, ऐसा खुद सरकार समर्थक मजदूर और किसान संघ भी बोल चुके हैं. सच यह है कि अर्थव्यवस्था की जरूरत के हिसाब से वित्तमंत्री का पैकेज ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है. इससे कुछ उद्योगपतियों को लोन मिल जायेगा, लेकिन न गरीबों को राहत मिलेगी और न ही अर्थव्यवस्था अपने पांव पर खड़ी होगी.दूसरा जवाब हो सकता है कि आवश्यक साधनों का इंतजाम सरकार बिना टैक्स लगाये कैसे कर सकती है. यह भी अर्द्धसत्य है. बेशक सरकार रिजर्व बैंक की तिजोरी से कुछ पैसा निकाल सकती है और कुछ अतिरिक्त नोट भी छाप सकती है.लेकिन रिजर्व बैंक पर डाका डालने का काम सरकार पिछले साल ही कर चुकी थी.ईमानदारी से सोचें तो तीसरा जवाब ही बचता है कि इतने बड़े संकट का सामनाकरने के लिए देश को तुरंत 10 से 15 लाख करोड़ रुपये जुटाने की जरूरत है.उसमें से दो से पांच लाख करोड़ रुपये सरकार रिजर्व बैंक की तिजोरी से और अपनी फिजूलखर्चियों को काटकर जुटा सकती है. बाकी अतिरिक्त धन कोई टैक्स लगाकर ही जुटाना पड़ेगा. यह कड़ा कदम केंद्र सरकार को ही उठाना पड़ेगा,क्योंकि राज्य सरकारों के पास शराब और पेट्रोल को छोड़कर आय का कोई बड़ा साधन नहीं है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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