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फिलहाल सारी दुनिया में एआइ को लेकर जो सबसे बड़ी फिक्र जतायी जा रही है, वह नौकरियों की है. कहा जा रहा है कि यह लोगों की नौकरियां खा जायेगा.

पिछले कुछ समय से दुनियाभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआइ की खूब चर्चा हो रही है. पहली नजर में यह तकनीकी विषय लगता है, मगर इसका ताल्लुक केवल तकनीकी जगत से नहीं है. तमाम जानकारों का मत है कि एआइ एक ऐसी तकनीकी क्रांति है, जिसके प्रभाव से शायद ही कोई बच सकता है. इसकी तुलना कंप्यूटर से की जा सकती है. कंप्यूटर आरंभ में तकनीकी जानकारों के इस्तेमाल की चीज मानी जाती थी.

फिर वह उद्योग-धंधों, दफ्तरों, शिक्षण केंद्रों आदि में दिखने लगा. इंटरनेट के जन्म ने कंप्यूटरों की दुनिया में एक बड़ी क्रांति लायी. देखते-देखते पर्सनल कंप्यूटर और लैपटॉप से होता हुआ कंप्यूटर आज टैबलेट और हथेलियों में थामे जा सकने वाले स्मार्टफोन में सिमट चुका है. आज वह हर इंसान की जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है. उसकी मौजूदगी और प्रभाव को हम अपने आस-पास महसूस कर सकते हैं.

कुछ इसी तरह की बात अब एआइ को लेकर की जा रही है. फिलहाल सारी दुनिया में एआइ को लेकर जो सबसे बड़ी फिक्र जतायी जा रही है, वह नौकरियों की है. कहा जा रहा है कि यह लोगों की नौकरियां खा जायेगा. पिछले दिनों, केंद्रीय आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने इस डर को ‘बकवास’ बताया था, लेकिन यह एक वास्तविकता है कि एआइ को लेकर लोगों के मन में एक संदेह बसा है. इसे समुचित जागरूकता से ही मिटाया जा सकता है.

इसी दिशा में एक सराहनीय कदम उठाया गया है. केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 15 जुलाई को विश्व युवा कौशल दिवस के अवसर पर एआइ के बारे में एक नि:शुल्क ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ किया. एआइ फॉर इंडिया 2.0 नाम के इस कार्यक्रम के तहत नौ भारतीय भाषाओं में एआइ के बारे में युवाओं को प्रशिक्षण देकर कुशल बनाया जायेगा.

यह कार्यक्रम भारत सरकार के कौशल विकास या स्किल इंडिया अभियान तथा आइआइटी मद्रास और आइआइआइएम अहमदाबाद के एक स्टार्टअप जीयूवीआइ के संयुक्त प्रयास से शुरू किया जा रहा है. इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि प्रौद्योगिकी को ‘भाषा का बंधुआ’ नहीं होना चाहिए. भारत जैसे विभिन्न भाषाओं वाले देश में तकनीक की भाषा पर निर्भरता को समाप्त करना बहुत जरूरी है. एक आम भारतीय को यह कतई नहीं लगना चाहिए कि यदि वह खास तौर पर अंग्रेजी नहीं जानता, तो वह तकनीक की दुनिया में अलग-थलग पड़ जायेगा. अपनी भाषा में एआइ की समझ से न केवल बदलाव का डर दूर हो सकता है, बल्कि रोजगार के नये अवसर भी बन सकते हैं.

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