जी-20 से भारत ने दिखायी नेतृत्व क्षमता
भारत को लेकर पहले ये सवाल भी उठाये जाते थे कि वह एक ऐसा देश है, जो सवाल करना तो जानता है, मगर समाधान नहीं सुझा पाता. भारत ने अपनी उस छवि को बदलने की कोशिश की है और उसमें जी-20 ने भी एक बड़ी भूमिका निभायी है. भारत ने इस सम्मेलन से दर्शाया है कि वह मुश्किल मसलों का भी सामना करने के लिए तैयार है.
जी-20 के दिल्ली शिखर सम्मेलन की दो बड़ी उपलब्धियां रहीं. इसमें पहली उपलब्धि घोषणापत्र का जारी होना है, क्योंकि एक दिन पहले तक कहा जा रहा था कि इस पर सहमति नहीं हो पायेगी. इसकी वजह यह थी कि यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर दुनिया विभाजित है और पिछले एक साल में स्थिति और खराब ही हुई है. बाली में जी-20 के पिछले सम्मेलन में भी यह संकट आया था और तब भी भारत की कोशिश से ही घोषणापत्र आ पाया था.
इस बार दिल्ली सम्मेलन में रूस और चीन के राष्ट्रपतियों के नहीं आने से लगभग मान लिया गया था कि सहमति नहीं हो पायेगी. कई जगह मीडिया में इसके नाकाम रहने की भविष्यवाणी कर दी गयी थी, जिसे भारत ने आखिरी लम्हों में बदल डाला. सम्मेलन में न केवल अचानक से सहमति बनी, बल्कि इसके दस्तावेज कई घंटे पहले जारी हो गये, जबकि ऐसी शिखर बैठकों में अंतिम लम्हों तक सौदेबाजी होती रहती है. मुझे लगता है कि भारत ने पिछले कई महीनों से सहमति बनाने और उसे बरकार रखने की और जी-20 की बैठकों में घोषणापत्र जारी होने की परंपरा को जारी रखने की कोशिश की, जिससे यह संभव हो पाया.
दिल्ली में यूक्रेन जैसे टकराव वाले मुद्दे पर समन्वय बनाना और सर्वसम्मति से घोषणापत्र का जारी करवा पाना यह दर्शाता है कि भारत ने अपनी इस नेतृत्व क्षमता को साबित किया कि वह समय आने पर अलग-अलग धड़ों को जोड़ सकता है. दिल्ली सम्मेलन की दूसरी बड़ी उपलब्धि इस घोषणापत्र में शामिल की गयी बातें हैं, जो बहुत महत्वाकांक्षी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से कहते रहे थे कि भारत छोटे-मोटे प्रयास नहीं करना चाहता, वह एक बड़ा और महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करना चाहता है, ताकि समावेशी तरीके से वैश्विक शासन का एक एजेंडा तैयार हो सके. उस दिशा में भारत को काफी कामयाबी मिली है. वह चाहे अफ्रीकी यूनियन को जी-20 में शामिल करने का फैसला हो, चाहे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिये लोगों तक लाभ पहुंचाने की बात हो, चाहे वह टेक्नोलॉजी के विनियमन की बात हो, चाहे वह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के साझा लक्ष्यों के पालन की बात हो, जिसमें दुनिया पीछे चल रही है, या चाहे वह वैश्वीकरण की प्रक्रिया में छूट गये दुनिया के कई हिस्सों को शामिल करने की बात हो- भारत ने इन सभी विषयों पर व्यावहारिक समाधान पेश किये.
जलवायु परिवर्तन के मसले पर भारत की पहल से वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन बना. ऐसे ही कनेक्टिविटी के बारे में भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा हुई. इस दस्तावेज में अलग-अलग विषयों के बारे में जो 73 सिफारिशें शामिल की गयी हैं, वह इस बात का उल्लेख कर रही हैं कि वैश्विक शासन का एजेंडा विकासशील देशों को मध्य में रखकर तैयार करना होगा. भारत की यह एक बड़ी उपलब्धि रही कि, उसने ना केवल ग्लोबल गवर्नेंस का एक बहुआयामी एजेंडा दिया, बल्कि यह भी मजबूती से बताया कि ग्लोबल गवर्नेंस का एजेंडा ग्लोबल साउथ को केंद्र में रखकर ही तैयार किया जाना है.
इनके अलावा जी-20 शिखर सम्मेलन से भारत को एक और बड़ी उपलब्धि हासिल हुई, जो एक घरेलू उपलब्धि है. भारत ने इस आयोजन की पूरी प्रक्रिया के जरिये अपनी कहानी को पूरी दुनिया तक पहुंचाया है. जैसे, आज सारी दुनिया में सार्वजनिक कार्यों में भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर की कामयाबी की चर्चा होती है और कई देश इसे अपनाना चाहते हैं. तो भारत ने अपनी विकास यात्रा की इस कहानी को इस सम्मेलन के माध्यम से दुनिया के सामने रखा है, जो भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि रही है. इसके साथ-साथ भारत ने देश के भीतर भी अपनी इस कहानी के बारे में सबके साथ संवाद स्थापित किया.
भारत ने जी-20 के लिए 60 से ज्यादा शहरों में 200 से ज्यादा बैठकें कीं. हालांकि, पहले इसे लेकर किये जा रहे खर्चों पर थोड़े सवाल भी उठे, लेकिन मुझे लगता है कि इस निवेश का फायदा ये हुआ कि भारत का हर हिस्सा भारत की विदेश नीति से जुड़ा. इससे युवा, व्यवसायी, कॉर्पोरेट सेक्टर, एनजीओ, सामाजिक संगठन, मीडिया, ऐकेडेमिया को जोड़ा जा सका, और इस अंदरूनी संवाद से भारत की उस छवि को लेकर स्पष्टता बनी, जो वह दुनिया के सामने पेश करना चाहता है. इस सम्मेलन की एक बड़ी उपलब्धि यह भी रही कि इससे भारत ने घरेलू और विदेश नीति के बीच के अंतर को पाटने में सफलता हासिल की.
भारत अपने लोगों को बता पाया कि आज देश के भीतर होनेवाली गतिविधियों का बाहर और बाहर की घटनाओं का असर भारत पड़ता है, जैसे यूक्रेन युद्ध जैसी घटना होती है, तो भारत में तेल, उर्वरक, खाने के सामानों की कीमतें बढ़ जाती हैं. ऐसे में भारत को यह बात समझाने में मदद मिली है कि अगर घरेलू समस्याओं का हल निकालना है तो वैश्विक नेतृत्व संभालना होगा.
जी-20 बैठक की मेजबानी भारत के लिए इस लिहाज से भी अहमियत रखता है कि इससे पहले भारत ने ऐसा बड़ा आयोजन 80 के दशक में किया था, जब दिल्ली में गुटनिरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन हुआ था, मगर तब उसमें गरीब और विकासशील देश जुटे थे, लेकिन जब दुनिया में किसी देश का कद बढ़ जाता है और उससे न केवल विकासशील देशों, बल्कि दुनिया के सारे देशों की अगुआई करने की अपेक्षा की जाने लगती है, जिनमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, अफ्रीका संघ, कनाडा, ब्राजील जैसे देश शामिल हों, तो उसका महत्व अलग हो जाता है.
ऐसे देशों के गुट का नेतृत्व करने के मायने अलग होते हैं, जो संसाधनों के धनी हैं और जो वैश्विक शासन के एजेंडा में बदलाव ला सकते हैं. भारत को लेकर पहले ये भी सवाल उठाये जाते थे, कि वह एक ऐसा देश है, जो सवाल करना तो जानता है, मगर वह समाधान नहीं सुझा पाता. भारत ने अपनी उस छवि को बदलने की कोशिश की है और उसमें जी-20 ने भी एक बड़ी भूमिका निभायी है. भारत ने इस सम्मेलन से दर्शाया है कि वह मुश्किल मसलों का भी सामना करने के लिए तैयार है.
जैसे, यूक्रेन का मसला बड़ा पेचीदा है, क्योंकि भारत के रूस के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन वह क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान का भी समर्थक है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में भारत ने जिस तरह से इस कूटनीतिक आयोजन को पूरा किया, अगुआई की और जिस तरह से उसे एक नतीजे तक पहुंचाया, वह भी भारत की छवि के हिसाब से एक बड़ा बदलाव है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
(बातचीत पर आधारित)