G20 summit 2024 : पिछले वर्ष भारत ने जी-20 समूह के अध्यक्ष के नाते जी-20 सम्मेलन आयोजित किया था. कई मायनों में वह सम्मेलन अभूतपूर्व था. खासतौर पर वैश्विक स्तर पर चल रहे विवादों, संघर्ष और युद्ध के वातावरण के बावजूद आम सहमति से घोषणा पत्र जारी किया गया था. भारत से पूर्व इंडोनेशिया ने इसकी अध्यक्षता संभाली थी, लेकिन तब अंतिम घोषणापत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस की आलोचना की गयी थी.
भारत में जी-20 सम्मेलन बहुत धूमधाम से आयोजित किया गया. इसकी न सिर्फ भौतिक तैयारियां, बल्कि बौद्धिक तैयारियां भी पूरी गंभीरता से की गयी थीं. वर्ष 2023 के सम्मेलन में भारत द्वारा रूस के बारे में कुशलतापूर्वक न केवल विवादास्पद भाषा से बचा जा सका, बल्कि विश्व के समक्ष उपस्थित मुद्दों, खासतौर पर बहुपक्षीय विकास बैंकों समेत वैश्विक वित्तीय संस्थानों में पूंजीगत संरचना में बदलाव, क्रिप्टो करेंसी, वैश्विक ऋण संबंधी समस्याओं का प्रबंधन, मौसम परिवर्तन से जुड़े वित्तीयन के मुद्दे आदि-सभी पर खुली चर्चा का मार्ग भी प्रशस्त हुआ. ‘वसुधैव कुटुंबकमं’ के आधार पर ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य’ के ध्येय वाक्य ने वैश्विक स्तर पर चल रहे विवादों, संघर्षों, समस्याओं, मुद्दों को जैसे एक सूत्र में पिरो दिया था.
जी-20 सम्मेलन भारत से प्रेरित
ब्राजील की राजधानी रियो में संपन्न जी-20 सम्मेलन में इन विषयों को आगे ले जाने की एक विशेष चुनौती थी, इसलिए इसमें हुई चर्चाओं और सहमतियों को उस आलोक में भी देखना महत्वपूर्ण है. सम्मेलन की थीम थी ‘एक न्यायपूर्ण विश्व और एक धारणीय ग्रह’. ब्राजील के राष्ट्रपति लुला ने कहा भी कि यह सम्मेलन पिछले वर्ष की भारत की अध्यक्षता से प्रेरित रहा. सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति ने सदस्य राष्ट्रों को अपने पर्यावरण लक्ष्यों को बढ़ाने का आह्वान किया. सम्मेलन के घोषणापत्र में पर्यावरण वित्त पर गतिरोध खत्म करने की जरूरत पर बल दिया, पर उसके समाधान के बारे में स्पष्ट मार्गदर्शन देने में यह घोषणापत्र विफल रहा. पर्यावरण वित्त पर यह गतिरोध लगातार बना हुआ है, जो न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग और मौसम परिवर्तन जैसे अत्यंत गंभीर मुद्दों पर विकसित देशों की संवेदनहीनता भी दर्शाता है.
हालांकि सम्मेलन का घोषणापत्र यह कहता है कि पर्यावरणीय वित्त को सभी स्रोतों से अरबों से खरबों डॉलर तक तेजी से और पर्याप्त रूप से बढ़ाना जरूरी है, पर इसके बारे में ठोस रणनीति या संवेदनशीलता कहीं दिखाई नहीं देती. यह चिंतनीय है कि जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने संबंधी भी कोई बात घोषणापत्र में नहीं आ पायी. दरअसल जीवाश्म ईंधन का उपयोग समाप्त करने पर पूरा विश्व एकमत नहीं है. हालांकि दुबई में आयोजित कॉप-28 सम्मेलन में देशों ने जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को कम करने संबंधी सहमति दर्शायी है, लेकिन पर्यावरण से जुड़े कार्यकर्ताओं को यह लगता है कि जी-20 घोषणापत्र में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग के बारे में बात न आने से कॉप-29 में यह मुददा कमजोर पड़ जाएगा.
भारत में 10 साल में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए
सम्मेलन के पहले सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘भारत ने 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रहे, 55 करोड़ लोग फ्री हेल्थ बीमा का लाभ उठा रहे, किसानों को 20 बिलियन डॉलर (168 हजार करोड़ रुपये) दिए गए. भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान दे रहा है.’
प्रधानमंत्री के भाषण में पिछले सम्मेलन की थीम ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य’ का जिक्र आया और उन्होंने इसे इस सम्मेलन के लिए भी उतना ही प्रासंगिक बताया. यही नहीं, उन्होंने जी-20 सम्मेलन में अफ्रीकी यूनियन को शामिल करने की बात भी रखी. समझना होगा कि यह जी-20 के लिए एक मील का पत्थर था. उन्होंने कहा कि युद्ध के कारण दुनिया में खाद्य, तेल और उर्वरक का संकट पैदा हुआ है और विकासशील राष्ट्रों पर इसका असर सबसे ज्यादा हुआ है.
किसी भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का नेतृत्व केवल सम्मेलन तक सीमित नहीं रहता. सम्मेलन के साथ-साथ यह एक अवसर भी होता है कि अन्य मुल्कों के साथ महत्वपूर्ण मुददों पर बातचीत हो, कुछ अनसुलझे मुददे सुलझाये जाएं, मित्र देशों के साथ अपनी प्रगाढ़ता बढ़ायी जाए और विभिन्न देशों के शासनाध्यक्षों के साथ सीधी बातचीत से देश के हितों को आगे बढ़ाया जाए. प्रधानमंत्री एवं प्रतिनिधिमंडल के विभिन्न सदस्यों ने इस मौके का बखूबी इस्तेमाल किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केवल ब्राजील के राष्ट्रपति ही नहीं, बल्कि इटली की प्रधानमंत्री जिर्योजिया मेलोनी के साथ मिलकर प्रतिरक्षा, सुरक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी जैसे मुददों पर बातचीत की गयी. अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन के साथ भी उनकी मुलाकात चर्चा में रही. इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कीर स्ट्रॉमर्र के साथ भी प्रौद्योगिकी, हरित ऊर्जा, सुरक्षा, नवाचार जैसे मुददों पर बातचीत हुई और इन मुददों पर मिलकर काम करने पर बल दिया गया. ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत को पुनः शुरू करने की बात भी की गयी. इसके अलावा फ्रांस, नॉर्वे, पुर्तगाल और इंडोनेशिया के नेताओं के साथ भी सार्थक द्विपक्षीय बातचीत हुई.
भारत-चीन संबंध बेहतर होने की उम्मीद बढ़ी
एक अन्य दिलचस्प बात यह कि भारत और चीन की द्विपक्षीय वार्ता हुई, जिसमें चीन के विदेश मंत्री के साथ भारत के विदेश मंत्री जयशंकर की बातचीत अच्छी रही. भारत-चीन सीमा पर दो विवादास्पद ठिकानों पर सेनाओं के पीछे हटने के फैसले के बाद यह पहली बार हुआ कि चीन के साथ सीमा विवादों पर कोई सरकारी बातचीत हुई. समझा जा सकता है कि इससे भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय संबंध बेहतर होंगे और इस क्षेत्र में स्थायित्व आएगा. गौरतलब है कि मई, 2020 से शुरू होते हुए पिछले चार साल से भारत और चीन के बीच सीमा पर तनातनी बनी हुई है.
ऐसा लगता है कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से अस्तित्व में आए जी-20 समूह का वैश्विक महत्व पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ता ही गया है. विभिन्न देश इस सम्मेलन में शासनाध्यक्षों की उपस्थिति द्वारा प्रदत्त अवसर को अत्यंत गंभीरता से विभिन्न मुद्दों के बारे में आम सहमति बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. जी-20 सम्मेलन हो या ब्रिक्स सम्मेलन, वैश्विक स्तर पर इनके बढ़ते महत्व को समझते हुए कूटनीति विशेषज्ञ इन्हें महत्वपूर्ण वैश्विक मंच मानने लगे हैं. इसके जरिये नए समीकरण भी बन रहे है. युद्ध, आर्थिक चुनौतियों और विभिन्न संघर्षों के समय इन मंचों का उपयोग विश्व शांति, पर्यावरणीय समस्याओं, राजकोषीय चुनौतियों, प्रौद्योगिकी से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए करना निस्संदेह वक्त की मांग है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)