गगनयान का सफल परीक्षण
रोमांच से भरा यह घटनाक्रम दर्शाता है कि मानव को अंतरिक्ष लेकर जाना कितना जोखिम भरा अभियान है, जिसके लिए महत्वाकांक्षा और मजबूत इरादों के साथ उच्च कोटि के कौशल की जरूरत होती है.
गगनयान मिशन से जुड़े एक परीक्षण की सफलता के साथ भारत उस मंजिल के और निकट पहुंच गया है,जो देश के अंतरिक्ष इतिहास में मील का एक बड़ा पत्थर साबित होगा. गगनयान इसरो का वह महत्वाकांक्षी मिशन है, जिसमें भारतीय वैज्ञानिक भारत की ही जमीन और भारत में ही बने अंतरिक्ष यान से भारत के ही दो अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजेंगे. गगनयान के मानव अभियान के लिए 2025 का समय निश्चित किया गया है. उससे पहले कई तैयारियां जरूरी हैं, क्योंकि इसमें किसी भी चूक से केवल धन, साधन और श्रम ही नहीं, इंसानों की जान की भी क्षति हो सकती है. इसी लिहाज से शनिवार को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष स्टेशन से किया गया टेस्ट बहुत अहम था.
वैज्ञानिकों ने इस मिशन के लिए एक ऐसी व्यवस्था की है कि यदि उड़ान के दौरान कोई आपात स्थिति उत्पन्न हो, तो रॉकेट से जुड़ा वह हिस्सा अलग होकर नीचे लैंड कर सके जिसमें अंतरिक्ष यात्री सवार हों. फ्लाइट टेस्ट व्हीकल अबॉर्ट मिशन में यही टेस्ट किया गया. इसरो का रॉकेट टीवी-डी1 अंतरिक्ष में गया, और एक निश्चित ऊंचाई पर उससे जुड़ा क्रू एस्केप सिस्टम (सीइएस) उससे अलग हुआ, उसमें लगे पैराशूट खुले, और वह धीरे-धीरे बंगाल की खाड़ी में गिरा. वहां नौसेना की एक टीम ने सीइएस को निकाला और इसरो को सौंप दिया. टेस्ट से संतुष्ट इसरो चेयरमैन एस सोमनाथ ने कहा है कि अब अगले साल की शुरुआत में गगनयान का अगला अहम परीक्षण होगा,जिसमें एक मानवरहित गगनयान अंतरिक्ष जायेगा. शनिवार को गगनयान के परीक्षण में वैज्ञानिकों को एक अलग किस्म का भी अनुभव हुआ, जिनसे उनकी तैयारियों को और बल मिला है.
सुबह आठ बजे के लिए तय परीक्षण को मौसम खराब होने के कारण पहले साढ़े आठ बजे और फिर पौने नौ बजे दूसरी बार टालना पड़ा, लेकिन प्रक्षेपण से पांच सेकंड पहले यान में लगे कंप्यूटर को कोई गड़बड़ी दिखी और उसने इंजन बंद कर दिया. फिर वैज्ञानिकों ने उसे ठीक किया और आखिर 10 बजे प्रक्षेपण हुआ. रोमांच से भरा यह घटनाक्रम दर्शाता है कि मानव को अंतरिक्ष लेकर जाना कितना जोखिम भरा अभियान है, जिसके लिए महत्वाकांक्षा और मजबूत इरादों के साथ उच्च कोटि के कौशल की जरूरत होती है. दुनिया में आज तक केवल तीन देश- अमेरिका, रूस और चीन यह क्षमता हासिल कर सके हैं. भारत ऐसा चौथा देश बनने की राह में मजबूती से आगे बढ़ रहा है.