हाथरस जैसी किसी भी दुखद घटना पर रोष और क्षोभ स्वाभाविक है, लेकिन इसकी अभिव्यक्ति में हमें मानवीय मूल्यों, संवेदनशीलता और कानूनी मर्यादाओं का अवश्य ध्यान रखना चाहिए. इस प्रकरण में सोशल मीडिया के जरिये पीड़िता की पहचान जाहिर करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग ने राजनीति और सिनेमा से जुड़े कुछ लोगों को नोटिस दिया है. कानूनी प्रावधान स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करते हैं कि बलात्कार की पीड़िता की पहचान किसी भी माध्यम से सार्वजनिक नहीं की जानी चाहिए.
सर्वोच्च न्यायालय ने दिसंबर, 2018 के आदेश में तो यह भी कहा है कि किसी पीड़िता की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद भी उसका नाम और चेहरा उजागर नहीं किया जाना चाहिए. इससे संबंधित कानून के उल्लंघन पर दंड का प्रावधान भी है.
कानूनी व्यवस्था होने तथा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा अनेक बार निर्देश जारी करने के बाद भी सामाजिक कार्यों और राजनीति से जुड़े अनेक लोग पीड़िता के बारे में अखबारों, टेलीविजन चैनलों एवं सोशल मीडिया के द्वारा बताते रहते हैं. ऐसा करने में कुछ गणमान्य और लोकप्रिय लोग भी पीछे नहीं रहते. उसके बाद आम लोग, समर्थक और प्रशसंक भी उनकी बातों को आगे बढ़ाते रहते हैं. ऐसे भी उदाहरण हैं, जब मीडिया से भी ऐसी गलती हुई है.
सूचना संजाल के वर्तमान दौर में ऐसी बातें कुछ अधिक ही तेजी से फैल जाती हैं और बाद में उसे सुधारने का भी असर नहीं होता है. ऐसे ही कानूनी प्रावधान अवयस्कों के लिए भी हैं. उनका भी उल्लंघन किया जाता है. पहचान नहीं बताने के कानूनों की जरूरत इसलिए है कि पीड़िता को सामाजिक भेदभाव, अपमान और प्रताड़ना से बचाया जा सके क्योंकि दुर्भाग्य से हमारे समाज में अभी भी ऐसे तत्व बड़ी संख्या में हैं, जो किसी अपराध या यंत्रणा के शिकार हुए व्यक्ति से संवेदना जताने की जगह उनके प्रति दुर्भावना रखते हैं तथा उन्हें समाज से अलग करने की कोशिश करते हैं.
ऐसी प्रवृत्तियों की वजह से पीड़िताओं के लिए पहले की तरह सामान्य जीवन बीता पाना दूभर हो जाता है. कभी जब अखबार और कुछ चैनल होते थे, तो पहचान जाहिर होने के कुछ समय बाद बहुत से लोग घटनाओं को भूल जाते थे, लेकिन आज के डिजिटल युग में जो पहचान सार्वजनिक हो जाते हैं, उन्हें हटाना लगभग असंभव है तथा गाहे-बगाहे वे सामने भी आते रहते हैं.
हमारी पहली और एकमात्र चिंता अपराधियों को सजा दिलाने तथा पीड़िता को आश्वस्त करने की होनी चाहिए. हमें कोशिश करनी चाहिए कि महिलाओं और बच्चों के साथ भयावह अपराध न हों. लोगों को जागरूक करने तथा शासन-प्रशासन की मुस्तैदी पर हमारा ध्यान होना चाहिए. किसी पीड़िता का नाम बताने या जानने या उसकी तस्वीर देखने से ऐसा नहीं होगा. हमारी तरह पीड़िता भी एक मनुष्य है और उसका आत्मसम्मान उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना किसी और का. समाज में व्यापक स्तर पर ऐसी संवेदनशीलता बनाने के लिए हमें प्रयासरत होना चाहिए.
Posted by : pritish Sahay