बुद्ध भारतीय मन को आंदोलित करने वाले पहले फकीर थे
पूर्णिमा के चांद के साथ बुद्ध का जुड़ाव जीवन का सहज प्रवाह है. उनका जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की घटनाओं का संबंध बैसाख पूर्णिमा के साथ जोड़ा जाता है
आत्म के भीतर बोध को जागृत करने की प्रक्रिया ही गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन का सारतत्व है. बोध और चिंतन को बुद्ध सर्वोपरि मानते हैं. वे अनुभव की यात्रा में अपने साथ संपूर्ण मानव समुदाय को सहयात्री बनाते हैं. कहते हैं कि आप किसी बात को इसलिए स्वीकार नहीं करो कि मैंने कहा है, बल्कि आप चिंतनशील, मननशील बनो. तत्पश्चात अनुभवजन्य ज्ञान को आत्मसात करो. वे अनुभव को प्राथमिक मानते हैं.
पूर्णिमा के चांद के साथ बुद्ध का जुड़ाव जीवन का सहज प्रवाह है. उनका जन्म, ज्ञान की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की घटनाओं का संबंध बैसाख पूर्णिमा के साथ जोड़ा जाता है. बुद्ध के जीवन के इन तीनों महत्वपूर्ण पड़ाव का पूर्णिमा के दिन घटित होना महज संयोग भी हो सकता है. इस घटना का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, तथापि इसका दार्शनिक महत्व लौकिक जीवन प्रत्ययों से जुड़कर आकार लेता है. पूर्णिमा का चांद पूर्णता का बोधक है, उसका आकार पूर्ण वर्तुल होता है.
बुद्ध के जीवन की ये तीनों घटनाएं भी वर्तुल रूप में पूर्णता को प्राप्त करती हैं. उसी प्रकार उनका जीवन अद्भुत पूर्णता का रहा है. दोनों में साम्य भाव है. हर पूर्णता शून्यता में ले जाती है, लेकिन शून्यता केवल अभाव या खालीपन का दर्शन नहीं है, यह समग्रता में शामिल होकर जीवन को पूर्ण बनाता है. बुद्ध का दर्शन समग्रता में मनुष्य के भीतर जीवन की खोज है. जैसा कि उपनिषदों में कहा गया है, पूर्ण से पूर्ण निकालने पर भी पूर्ण बचा रहता है. उसी प्रकार, बुद्ध के जीवन का पूर्ण बोध ही दृश्यमान जगत को आनंदित कर रहा है. यह विशेष दिवस प्रकाश और आनंद का आगार है, जहां से आप नवजीवन की यात्रा शुरू कर सकते हैं.
गौतम बुद्ध राहों के अन्वेषक थे. उन्होंने संपूर्ण मानव जाति को जीवन जीने हेतु नया दर्शन दिया. दर्शन प्रतिक्रिया से निष्पन्न नहीं होता, बल्कि यह जीवन के सहज प्रवाह का साक्षी होता है. बुद्ध भी उसी सहज प्रवाह के साक्षी थे, उसके साथ अन्वेषक भी. बुद्ध का आविर्भाव बहुत कुछ इन्हीं कारणों से हुआ था, जिन कारणों को लेकर उपनिषद लिखे गये. डॉ राधाकृष्णन ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय दर्शन’ में स्पष्ट रूप से इन बिंदुओं को रेखांकित किया है.
वे कहते हैं कि बौद्ध मत और उपनिषद दोनों ही वैयक्तिक अनुभूतियों की प्रामाणिकता पर जोर देते हैं. बुद्ध भी जीवन के इन्हीं सत्यों को अनुभूत कर रहे थे जो उनके आसपास घटित हो रहा था. उन्होंने अपनी वैयक्तिक अनुभूतियों को समष्टिगत कर जीवन जीने का नया दर्शन दिया, जहां अनुभूति की प्रामाणिकता, आत्मबोध, संवेदनशीलता और ग्रहणशीलता महत्वपूर्ण है. इसी कारण जिस सत्य को उपनिषदों में ब्रह्म कहा गया, उसी सत्य को बुद्ध ने धर्म कहा.
बुद्ध जीवन में घटित समस्याओं का निराकरण करने वाले दार्शनिक थे. वे जीवन सत्य को ही परम सत्य मानते थे. उनके यहां धर्म का लौकिक रूप आकार लेता है. बुद्ध का कर्म सिद्धांत भी लोक आधारित मूल्यों पर केंद्रित है. जो कहता है कि मनुष्य के अनुवांशिक संबंध नहीं, उसका परिवेश महत्वपूर्ण होता है. कोई भी मनुष्य श्रम और सम्यक प्रयासों के बल पर वर्तमान जीवन को बदल सकता है.
बुद्ध ने सनातन संस्कृति का संशोधित रूप आम जनमानस को सुपुर्द किया. समुद्र मंथन से जो अमृत रस प्राप्त हुआ वह बुद्ध के यहां ‘अहिंसा’ है. बौद्ध धर्म में अहिंसा एक सिद्धांत है, जो आपको कर्म करने की आजादी देता है. बुद्ध मंजिल के बजाय मार्ग की बात करते हैं. उनके यहां जीवन अनुशासनबद्ध है, जहां विचार या तर्क ही प्रबल है. कभी-कभी बुद्ध विचार से भी आगे का रास्ता तय करते हैं, जिसे वे विवेक के तौर पर परिभाषित करते हैं.
बुद्ध के दर्शन में जीवन सर्व स्वीकार्य भाव के साथ अवस्थित है. वे जीवन के सत्य को मूल मानते हैं. वे तर्कनिष्ठ व्यक्ति थे, जिस कारण संसार में घटित घटनाओं के आधार पर जीवन सत्य को ढूंढने का सफल उद्यम रचते हैं. मनुष्य का अस्तित्व ब्रह्मांड का सत्य है, उसी प्रकार मनुष्य जनित पीड़ा और दुख की अभिव्यक्ति भी सत्य है. बुद्ध प्रतिभा, चिंतन और मनन के माध्यम से दुख से निकलने के लिए रास्ता दिखाते हैं. ‘अप्प: दीपो भवः’ बौद्ध दर्शन का सूत्र वाक्य है. बुद्ध लगातार कोशिश करते हैं कि आप स्वयं ही अपना प्रकाश बनो, अपने अंदर की ऊर्जा को स्वयं ही जागृत करो.
भारतीय मन को आंदोलित करने वाले बुद्ध पहले फकीर हुए. न उनसे पहले, न बाद में, भारतीय जनमानस को उनसे ज्यादा तर्कनिष्ठ किसी ने बनाया. उन्होंने कहा कि धर्म की खोज उस रस की खोज है जिससे हम वंचित हो गये हैं, यह आपकी निजी संपदा है. वे निजत्व के सहारे धर्म को जीवित रखने की वकालत कर रहे थे. बुद्ध ने हमें जीवन रस की महत्ता से परिचित कराया. बुद्ध पूर्णिमा के दिन बुद्ध को स्मरण करना, केवल उनके नाम का स्मरण करना नहीं है, अपितु उनके माध्यम से जीवन में घटित आत्मबोध के साथ लयबद्ध होना और संगीत के साथ रागबद्ध होना है.