George Soros : भारत में नहीं चला सोरोस का एजेंडा
George Soros : सोरोस का मॉडल पारदर्शी है. वह उन देशों में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की नींव रखते हैं, जिन्हें वह बंद समाज मानते हैं. और इस तरह वह उन देशों की सामाजिक-राजनीतिक माहौल को बाधित करते हैं. इससे पहले चीन, रूस और तुर्किये उनके निशाने पर थे.
George Soros : भाजपा और कांग्रेस के झगड़े में इस बार ड्रैगन सेंट जॉर्ज पर भारी पड़ रहा है. जॉर्ज सोरोस की डाका डालने की आदत 1992 में पहली बार सामने आयी थी, जब उन्होंने ब्रिटिश पाउंड पर बाजी लगायी, एक अरब अमेरिकी डॉलर का मुनाफा कमाया और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को घुटने पर ला दिया. इस बार 94 वर्षीय हंगेरियन-अमेरिकी अरबपति व्यापारी, निवेशक, परोपकारी और उदारवादी राजनीतिक कार्यकर्ता के निशाने पर नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार है.
संसद में कामकाज ठप
भगवा संगठन जोर-शोर से आरोप लगा रहा है कि कांग्रेस के साथ साठगांठ कर सोरोस भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं. हालांकि उसके आरोप अब तक बेअसर ही रहे हैं, लेकिन इसके जरिये लगभग सप्ताह भर से संसद में कामकाज ठप करने में वह सफल रहा है. सोरोस का 25 अरब डॉलर से अधिक की संपत्ति पर नियंत्रण है, जिनमें छह ओपन सोसाइटी फाउंडेशन भी शामिल हैं. उनकी व्यक्तिगत संपत्ति आठ अरब डॉलर से अधिक है. भारत में उस पर लग रहे राजनीतिक आरोप का कारण उसके फाउंडेशन द्वारा देश में 18 अरब डॉलर की फंडिग करना है.
सोरोस भाजपा के निशाने पर ऐसे ही नहीं हैं. उन्होंने भारत के घरेलू मामले में न केवल निरंतर दखल दिया है, बल्कि नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमले भी किये हैं. लाखों डॉलर का निवेश कर करोड़ों डॉलर कमाने वाले सोरोस दरअसल विभिन्न देशों में सत्तारूढ़ पार्टियों को उपकृत करने का काम करते हैं. कांग्रेस, उसके पुराने नेताओं और रिटायर हो चुके अनेक नौकरशाहों ने सोरोस के आतिथ्य का लाभ उठाते हुए अपने वैश्विक एजेंडों को आगे बढ़ाया है.
सामाजिक-राजनीतिक माहौल को बाधित करते हैं सोरोस
सोरोस का मॉडल पारदर्शी है. वह उन देशों में ओपन सोसाइटी फाउंडेशन की नींव रखते हैं, जिन्हें वह बंद समाज मानते हैं. और इस तरह वह उन देशों की सामाजिक-राजनीतिक माहौल को बाधित करते हैं. इससे पहले चीन, रूस और तुर्किये उनके निशाने पर थे. चूंकि भारत में कांग्रेस की सरकारें और सोरोस वैचारिक रूप से एक-दूसरे के अनुकूल रहे हैं, लिहाजा इस निर्लज्ज व्यापारी ने कांग्रेस के नेताओं को शायद ही कभी निशाना बनाया. इसके बजाय अपने संगठनों के जरिये उन्होंने इन नेताओं को वैश्विक फोरमों में उपकृत ही किया.
भाजपा ने सोनिया गांधी पर सोरोस से संबंधित ऐसे ही एक अंतरराष्ट्रीय फोरम के लिए काम करने का आरोप लगाया है. पिछले सप्ताह संसद में भाजपा और विपक्ष के बीच का टकराव पूरी तरह सोरोस पर केंद्रित रहा. कांग्रेस द्वारा भाजपा पर अडानी को बचाने के आरोप पर भाजपा ने यह कहते हुए पलटवार किया कि सोरोस विपक्ष की प्रेरणा हैं. संसद में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आरोप लगाते हुए कहा, ‘इस देश को अस्थिर करने के लिए सोरोस ने अरबों डॉलर का निवेश किया है. और कांग्रेस चूंकि उसकी कठपुतली है, इसलिए वह सोरोस की भाषा बोलते हुए देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है. इसकी निंदा की जानी चाहिए. देश जानना चाहता है कि सोनिया गांधी का कांग्रेस से क्या रिश्ता है.’ उनके कई सहयोगियों ने उनका समर्थन किया और सोनिया गांधी के परिवार के सोरोस से रिश्तों के बारे में सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा.
आरोप पर कांग्रेस झुकी नहीं, आक्रामक दिखी
इस आरोप पर कांग्रेस झुकी नहीं. इसके बजाय वह आक्रामक दिखी. पार्टी के ‘राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने जवाबी हमला बोलते हुए कहा, प्रधानमंत्री से मेरे कुछ सवाल हैं : क्या आप एस जयशंकर से इस्तीफा लेंगे? क्या आप शमिका रवि से इस्तीफा मांगेंगे? क्या आप तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि से इस्तीफा मांगेंगे? और आगे क्या आप इस संदर्भ में जांच करायेंगे कि इन लोगों ने विदेशी ताकतों के साथ मिलकर देश को अस्थिर करने की, देश को नुकसान पहुंचाने की भीषण कोशिश किस तरह की? इन पर देश को अस्थिर करने के लिए जॉर्ज सोरोस से फंड लेने का आरोप है. हमें आपके जवाब का इंतजार है.’
पवन खेड़ा का आरोप है कि जयशंकर के बेटे सोरोस के फाउंडेशन से जुड़े हैं. हालांकि भाजपा ने इस आरोप का खंडन किया है. सोरोस ने दरअसल नरेंद्र मोदी पर 2019 में जोरदार हमला बोला था, जब उनके नेतृत्व में भाजपा केंद्र की सत्ता में लौटी थी. जनवरी, 2020 में वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम में सोरोस ने कहा था, ‘राष्ट्रवाद पीछे हटने के बजाय और मजबूत हुआ है. सबसे बड़ा और भयभीत करने वाला झटका भारत में लगा है, जहां लोकतांत्रिक तरीके से चुने गये नरेंद्र मोदी भारत को हिंदू राष्ट्रवादी देश बनाने की कोशिश में लगे हैं.
मतदाताओं ने सोरोस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया
वह कश्मीर जैसे अर्ध स्वायत्त मुस्लिम क्षेत्र में दंडात्मक कार्रवाई कर रहे हैं और वहां के लाखों मुस्लिमों की नागरिकता छीन लेने की धमकी दी है.’ फरवरी, 2023 में म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में मोदी, जिनपिंग और एर्दोगन सोरोस के निशाने पर थे. वहां अडानी का जिक्र कर मोदी पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा था, ‘मोदी इस मुद्दे पर खामोश हैं, लेकिन उन्हें संसद और विदेशी निवेशकों के सवालों के जवाब देने ही पड़ेंगे.’ अपने प्रशंसकों और अपनी वित्तपोषित संस्थाओं के बीच लोकतंत्र के उद्धारकर्ता की छवि वाले सोरोस की भविष्यवाणी थी कि अडानी का मुद्दा नरेंद्र मोदी को राजनीतिक रूप से कमजोर करेगा, जिसका नतीजा भारत में सांस्थानिक सुधारों के रूप में सामने आयेगा. उन्होंने कहा था, ‘मैं राजनीतिक रूप से नौसिखिया हो सकता हूं, लेकिन मुझे भारत में लोकतांत्रिक सुधारों की उम्मीद है.’ लेकिन इस देश के मतदाताओं ने मोदी को तीसरी बार चुनकर सोरोस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.
सत्ता में लौटने के बाद भाजपा ने सोशल मीडिया पर सोरोस पर जमकर हमला बोला है. सबसे तीखा हमला जयशंकर ने बोला. उन्हें माना कि अपना एजेंडा पूरा करने के लिए सोरोस विभिन्न संस्थाओं को भारी फंडिंग कर रहे हैं. भाजपा ने यह भी पाया है कि संसद में विपक्ष के आरोप वही हैं, जो आरोप सोरोस लगाते हैं. सोरोस के जरिये सरकार बनाने या गिराने का आरोप लगाना कुछ ज्यादा ही है. सरकार को अस्थिर करने के लिए साजिश का आरोप लगाना पार्टी या नेतृत्व की कमजोरी का ही प्रमाण है. मोदी इस देश के निर्विवाद नेता हैं. पहले गुजरात, फिर नयी दिल्ली में रहते हुए उन्होंने अनेक ‘वैश्विक आरोपों’ का मुकाबला किया है. किसी अकेले सोरोस में भारतीय राजसत्ता को खरोंच तक लगाने की क्षमता नहीं है, इसके लिए कई सोरोस को कई दशक लगेंगे. सोरोस पर आरोप लगाकर उन्हें व्यर्थ ही इतना ताकतवर बना दिया जा रहा है. सोरोस को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जिसने इंग्लैंड और थाईलैंड के केंद्रीय बैंकों को ध्वस्त कर डाला था. लेकिन सोरोस को यह दुख रहेगा कि अपनी अकूत धनराशि के जरिये वह नरेंद्र मोदी का वोट बैंक नहीं तोड़ पाये. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)