मेनका गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री
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पहली बार 1970 के दशक में पहचाना गया घातक कैनाइन पारवो वायरस (सीपीवी) अब महामारी बन चुका है. चूंकि सरकार वैक्सीन देने से इंकार करती है और सरकारी अस्पताल पारवो के मामलों का उपचार नहीं करते हैं, पशु कल्याण आश्रय भरे हुए हैं. पिल्लों की मृत्यु दर बहुत अधिक है. एक सामान्य वर्ष में गली के झुंड में केवल एक बच्चा ही बच पाता है. बाकी कुचल दिये जाते हैं, भूख से मर जाते हैं, जहर देकर मार दिये जाते हैं या प्लास्टिक की थैलियों में फेंक दिये जाते हैं. इस साल यह संभावना भी नहीं है.
पालतू जानवरों की दुकानों और कुत्तों के प्रजननकर्ताओं द्वारा बेचे जानेवाले अधिकांश पिल्लों को पारवो होता है. यदि पिल्ले को मां द्वारा पोषित किया गया होता, तो वह एक प्रतिरक्षा विकसित कर लेता, जिसके कारण उसके छोटे शरीर को वायरस से लड़ने में मदद मिलती. कोई पालतू जानवरों की दुकान पिल्लों का टीकाकरण नहीं करती है और वे अलग-अलग प्रजननकर्ताओं से होनेवाले पिल्लों को एक पिंजरे में डालते हैं. कुत्तों को अत्यधिक गंदी स्थितियों में पाला जाता है. इस कारण उनमें कम प्रतिरक्षा होती है और वे सीपीवी के पहले शिकार होते हैं. पूरा पिल्ला व्यापार अवैध है और बिना रसीद के नकदी में किया जाता है.
पारवोवाइरीडे के जीन्स परिवार से कैनाइन पारवो वायरस (सीपीवी-2ए और सीपीवी-2बी) के दो प्रमुख स्ट्रेन हैं. यह संक्रमित मल, उल्टी, रक्त, स्पर्श, सतहों, कपड़ों आदि से फैलता है. पिल्लों के अलावा टीका न लगाये गये कुत्ते असुरक्षित हैं. यह छोटी आंत और रक्त प्रवाह के अलावा बोन मैरो पर भी हमला करता है, जिससे सफेद रक्त कोशिकाओं की गिनती खतरनाक रूप से कम होती है.
यह शरीर को सेप्सिस से लड़ने के लिए जरूरी एक चीज से वंचित करता है. यदि आपके पास पारवो से ग्रसित पिल्ला है, तो आप तुरंत पशु चिकित्सक के पास जाएं. चिकित्सक को केवल आइवी फ्लूड (दिन में दो बार 50 मिलीलीटर), उल्टी रोकने की तथा दस्त रोकने की दवाओं के साथ अक्सर वायरस से लड़ने के लिए अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को समय मुहैया करवाने के लिए सीडेटिव और द्वितीयक संक्रमणों से लड़ने के लिए एंटीबायोटिक्स देना है.
फ्लूड चिकित्सा लोपरामाइड, मेट्रोनिडाजोल के साथ एंटीबायोटिक सीफोटाॅक्सिन, सिफलाजोलिन, एमपीसीलीन, जेंटामाइसीन, तमिलफ्लू जैसे दवाओं के साथ संवर्धित हो सकती है. तरल पदार्थ पिलाने और पोषण वाला शोरबा खिलाने का घरेलू उपचार हमेशा एक युवा के लिए पर्याप्त नहीं होता है. नौ सप्ताह के पिल्ले को गंभीर रूप से डिहाइड्रेटेड होने में केवल एक या दो दिन लगते हैं. उसके मसूड़े भी पीले पड़ जायेंगे. उसे इंट्रावेनस फ्लूड और इलेक्ट्रोलाइट्स चाहिए तथा वह भी तुरंत.
हाइड्रेशन ही है, जो आपके पिल्ले को जीवित रखने में मदद कर सकता है. उस पर ध्यान दें. अपने पिल्ले को गर्म रखें और हर आधे घंटे में तरल पदार्थ दें. यदि वह खुद नहीं पीता, तो आपको तरल पदार्थ सिरींज से देना होगा. सादा पानी न दें क्योंकि उसे जीवित रहने के लिए इलेक्ट्रोलाइट्स की आवश्यकता होती है और सादे पानी से उसके शरीर में पहले से मौजूद इलेक्ट्रोलाइट्स के बाहर निकलने से उसके बचने की संभावना कम हो सकती है. संक्रमण से लड़ने के लिए उसे कैलोरी की भी आवश्यकता होगी. यदि वह इसे हजम कर सकता है, तो आप चिकन या सब्जियों का शोरबा थोड़ा नमक मिला कर दे सकते हैं (सोडियम उसे पानी को रोके रखने में मदद करेगा) और इसमें थोड़ा पिल्लों के दूध रिप्लेसर मिला सकते हैं (हां, गाय का दूध नहीं).
दस्त के लिए कोपेक्टेट दिया जा सकता है. यह आमतौर पर वजन (मिलीग्राम प्रति किलोग्राम) के अनुसार दिया जाता है. उसे त्वचा के जरिये तरल पदार्थों की भी आवश्यकता हो सकती है. किसी ने सुझाव दिया है कि आप दिन में एक बार उबले हुए और बारीक पिसे हुए अंडे की जर्दी दें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें. भोजन करने के एक घंटे बाद तक पानी देने से बचें. अंडे का सफेद हिस्सा न दें, वरना पिल्ला उल्टी कर देगा. तीन से छह दिन आमतौर पर सबसे अधिक नाजुक होते हैं.
यदि आप इन दिनों को पार पाने में उसकी मदद कर सकते हैं, तो वह ठीक होने की राह पर है. जब कुत्ता पित्त को रोकने लगते हैं तो संभवतः उसकी हालात में सुधार हो रहा है. उसके मल में खून की कमी एक और संकेत है. पारवो से ठीक होने में कई हफ्ते लगते हैं. सीपीवी से बचनेवाला कोई जीव हफ्तों, यहां तक कि महीनों तक वायरस निकालता रहेगा. यही कारण है कि पशु अस्पतालों/क्लीनिकों और पशु आश्रयों में संक्रमित जानवरों और संगरोध वार्डों को सख्ती से अलग-अलग किया जाना महत्वपूर्ण है. यह छह महीने से अधिक समय तक जमीन में रह सकता है.
सीपीवी रोगियों वाले आश्रयों, क्लीनिकों और घरों में क्रॉस संदूषण को रोकने के लिए सख्त स्वच्छता प्रोटोकॉल बनाये रखना चाहिए. यदि आप गली के पिल्लों के झुंड को खाना खिला रहे हैं, तो किसी भी पारवो-संबंधी लक्षणों की मौजूदगी के लिए सतर्क रहें. किसी सीपीवी रोगी को हैंडल करने के बाद हाथ धोयें, उसे अन्य कुत्तों से दूर रखें. बीमारी का मुकाबला करने का सुनहरा नियम समय पर और नियमित टीकाकरण है. पिल्लों को छह से 16 सप्ताह की उम्र के बीच 3-4 सप्ताह के अंतराल पर कम-से-कम तीन पारवो के टीके की आवश्यकता होती है. कुछ पशु चिकित्सक इस प्रोटोकॉल में बदलाव भी करते हैं.
(ये लेखक के िनजी विचार हैं़)