22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

स्वच्छता के संकल्प को दें निरंतरता

प्रधानमंत्री मोदी ने यह आह्वान किया कि देश को खुले में शौच से मुक्त बना कर और संपूर्ण स्वच्छता से हम गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं और उन्होंने यह कर दिखाया.

पद्मश्री अशोक भगत, सचिव, विकास भारती, झारखंड

स्वछता भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है. अगर हम स्वच्छता के इतिहास को देखें, तो यह हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता में भी परिलक्षित होता है. तब के नगरों की व्यवस्था ऐसी थी, जिसमें साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता था तथा नालियों और पेयजल की व्यवस्था उत्तम स्तर की थी. मौर्यकाल में चाणक्य द्वारा स्थापित शासन व्यवस्था में इसकी महत्ता को इस बात से जाना जा सकता है कि प्रथम बार गंदगी फैलानेवालों को दंड के रूप में शुल्क देना होता था.

हमारी संस्कृति के किसी भी समाज में स्वच्छता की पूरी व्यवस्था होती है. कई त्योहार, जैसे दीपावली, सरहुल, कर्मा, ओणम आदि भी स्वच्छता को ध्यान में रख कर ही मनाये जाते हैं. हमारे आदिवासी समाज साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं. उनके घरों की बसावट और चित्रकला से भी स्वच्छता का महत्व उजागर होता है.

आधुनिक समय में स्वच्छता को नया आयाम देने में महात्मा गांधी की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है. उनका स्वच्छता के प्रति लगाव इस कथन से परिलक्षित होता है कि अगर स्वतंत्रता और स्वच्छता में चयन करना पड़े, तो मैं स्वच्छता को चुनूंगा. स्वतंत्रता को टाला जा सकता है, पर स्वच्छता को नहीं. महात्मा गांधी का स्वच्छता के प्रति इस तरह का आग्रह एक घटना के कारण हुआ. उन्हें ज्ञात हुआ कि साबरमती आश्रम में पैखाना साफ करने का कार्य कैसे होता है? एक दिन साफ करनेवाला आदमी बीमार पड़ गया. बदले में उसका बच्चा उस कार्य को करने के लिए आया, पर उम्र कम होने के कारण वह भारी बाल्टी को उठा नहीं सका और रोने लगा.

रात के तीन बज रहे थे. रोने की आवाज गांधी जी के अनन्य भक्त और सहयोगी आचार्य कृपलानी जी ने सुनी और उससे इसका कारण पूछा. उन्होंने इस घटना की चर्चा गांधी जी से की. गांधी जी पूरी तरह से झंझारित हो गये. उन्होंने इस समस्या का निबटान महत्वपूर्ण आह्वान ‘टट्टी पर मिट्टी’ के रूप में किया. यह आह्वान पूर्ण रूप से वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित था. टट्टी पर मिट्टी डालने से शौच से बाह्य वायु, कीटाणु, जानवर आदि का संपर्क टूट जाता है, शौच खुले में भी नहीं रहता और हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रह पाते हैं.

स्वतंत्र भारत में भी स्वच्छता कार्यक्रम को प्रमुखता मिलती रही है. प्रथम पंचवर्षीय योजना में भी स्वच्छता का कार्यक्रम लिया गया था. वर्ष 1986 में इस कार्यक्रम को प्रमुखता दी गयी. इसमें समुदाय की भागीदारी नगण्य थी. समीक्षा के बाद इसे व्यापक बनाने के लिए सामुदायिक सहभागिता को बढ़ाने और प्रशिक्षण को शामिल किया गया और संपूर्ण स्वच्छता अभियान देश में लागू किया गया.

इसकी सफलता अपेक्षा के अनुकूल नहीं थी. फिर नियत प्रोत्साहन राशि के साथ निर्मल भारत अभियान चलाया गया. इस कार्यक्रम में सामुदायिक सहभागिता हेतु लाभुकों की भूमिका को चिह्नित किया गया और उनके चयन की प्रक्रिया को सुदृढ़ किया गया. फिर भी स्वच्छता व्यापक आंदोलन नहीं बन पाया. शौचालय युक्त घरों का आच्छादन मात्र 35 प्रतिशत था और इसका उपयोग मात्र आठ प्रतिशत आबादी द्वारा होता था.

फिर आया दो अक्तूबर, 2014 का दिन, जब ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के रूप में पूरे देश में कार्यक्रम चलाया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और इसे जन-जन का आंदोलन बना डाला. यह पहली बार हुआ, जब किसी प्रधानमंत्री द्वारा लालकिले की प्राचीर से आह्वान किया गया कि हमें स्वच्छता को अपनाना है. वे स्वच्छता के अभाव से होने वाले दुष्प्रभावों से अवगत थे. यूनिसेफ का आकलन है कि स्वच्छता के अभाव में देश के प्रति परिवार के प्रतिवर्ष 50 हजार रुपये बीमारी और कार्य दिवस न होने से खर्च होते हैं. दूसरा पहलू आत्मसम्मान और महिला सम्मान से जोड़ कर देखा गया. घर में शौचालय नहीं होने के कारण महिलाओं के विरुद्ध होनेवाले अपराधों का हिसाब 40 प्रतिशत तक है.

प्रधानमंत्री द्वारा इस कार्यक्रम में आमूलचूल परिवर्तन किया गया. इसे संगठित व्यवस्था, जन सहभागिता और समुदाय संचालित कार्यक्रम से जोड़ा गया. व्यवहार परिवर्तन को इस कार्यक्रम का मूल मंत्र बनाया गया. प्रशिक्षण द्वारा समाज के कई वर्गां को जोड़ा गया. इसे सफल बनाने हेतु हर घर में शौचालय को आधार बनाया गया और समुचित राशि की उपलब्धता भी सुनिश्चित की गयी. उन्होंने आह्वान किया कि देश को खुले में शौच से मुक्त बना कर और संपूर्ण स्वच्छता से हम गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं और उन्होंने यह कर के दिखाया.

हम गर्व से कह सकते हैं कि हम खुले में शौच मुक्त देश में रह रहे हैं, पर हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, क्योंकि इसे बनाये रखना बड़ी चुनौती है. व्यवहार परिवर्तन एक निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है और इसको कायम रखना हम सबका का दायित्व है. अभी हर घर को जल और स्वस्थ भारत मिशन-दो का कार्यक्रम चल रहा है तथा यह आश्वासन प्राप्त है कि 2024 तक देश के सभी घरों में नल से जल उपलब्ध कराया जायेगा. स्वच्छ भारत मिशन में रिट्रोफिटिंग, व्यवहार परिवर्तन, सामुदायिक शौचालय, गंदे पानी का सदुपयोग एवं शौचालय के निरंतर उपयोग पर जोर है. सहभागिता और जिम्मेवारी का वहन करके ही हम देश को स्वच्छ और समृद्ध बना सकते हैं.

(ये लेखक के निजी िवचार हैं)

Posted by : Pritish sahay

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें