ऐसे कम-से-कम 21 देश हैं, जो अपने कर्ज के किस्तों को या तो चुका पाने में असमर्थ हो रहे हैं या फिर उन कर्जों को फिर से तय करने का आग्रह कर रहे हैं, ताकि फिलहाल उन्हें कुछ राहत मिल सके. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि जी-20 समूह के अध्यक्ष होने के नाते भारत की यह मुख्य प्राथमिकता होगी कि इस ऋण संकट का ठोस समाधान निकले. यह बात उन्होंने अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में इस मुद्दे पर हुई बैठक के सह-प्रमुख के रूप में कही.
बैठक के अन्य दो सह-प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के मुखिया थे. उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले भारत में हुई जी-20 समूह के वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में भी इस मसले पर चर्चा हुई थी. हाल के समय में कोरोना महामारी से उत्पन्न चुनौतियों, आपूर्ति शृंखला में अवरोध, विभिन्न भू-राजनीतिक संकट तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए खाद्य एवं ऊर्जा संकट ने वैश्विक संप्रभु ऋण की समस्या को गंभीर बना दिया है.
बीते सप्ताह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जियेवा ने जानकारी दी थी कि 15 प्रतिशत निम्न आय वाले देश कर्ज के बोझ से दब चुके हैं और उन्हें तत्काल राहत मुहैया कराने की जरूरत है. ऐसे अन्य 45 प्रतिशत देश संकट के कगार पर हैं तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं में एक-चौथाई देशों के सामने खतरा गंभीर होता जा रहा है. ऐसी स्थिति में स्वाभाविक रूप से बहुत से देश आगामी दिनों में कर्जों की पुनर्संरचना की मांग कर सकते हैं क्योंकि उनके लिए किस्तों को तय समय पर चुका पाना मुश्किल होता जा रहा है.
पहले से ही राहत के अनेक आवेदन वैश्विक संस्थाओं तथा बड़े देनदार देशों के सामने लंबित हैं. उनके निपटारे में हो रही देरी से उन देशों की हालत और खराब हो रही है. अपने आर्थिक संकट से उबरने की कोशिश में वैसे देशों को या तो अनुदान मांगना पड़ रहा है या नये कर्ज हासिल करने की जुगत लगानी पड़ रही है. चूंकि उनकी हालत ठीक नहीं है, तो उनके लिए नये ऋण मिलना भी मुश्किल है. उदाहरण के लिए, हम अपने दो पड़ोसी देशों- श्रीलंका और पाकिस्तान- को देख सकते हैं.