एआइ पर वैश्विक संकल्प
बड़े बड़े खतरों पर पहले वैश्विक स्तर पर कई समझौते हो चुके हैं. ऐसे में एआइ पर नियमन के लिए अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए.
नयी दिल्ली में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक साझेदारी शिखर बैठक के बाद जारी घोषणा में कहा गया है कि सदस्य देश कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के एप्लिकेशन विकसित करने में परस्पर सहयोग करेंगे. इस साझेदारी में अभी 29 देश शामिल हैं. इन देशों के प्रतिनिधियों ने इस पर भी जोर दिया है कि एआइ के विकास में ग्लोबल साउथ की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. हाल के वर्षों में एआइ के क्षेत्र में तेज विकास हुआ है. इस विकास से एक ओर डिजिटल तकनीक में एक बड़ी क्रांति घटित हो रही है, वहीं इसके दुरुपयोग की आशंकाएं भी गहरी होती जा रही हैं. साथ ही, यह चिंता भी बढ़ रही है कि इसका नियंत्रण कुछ हाथों तक सीमित हो सकता है. इसीलिए नयी दिल्ली सम्मेलन की साझा घोषणा में एक वैश्विक फ्रेमवर्क बनाने पर सहमति बनी है ताकि एआइ के मामले में भरोसे और सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके. इसके फायदे सभी को मिले, इस पर भी रजामंदी बनी है. यदि एआइ कृषि उत्पादकता बढ़ाने तथा स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ एवं प्रभावी बनाने में मददगार होता है तथा इन क्षेत्रों से संबंधित एप्लिकेशन सभी देशों को उपलब्ध होते हैं, तो इससे वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा को बड़ा आधार मिलेगा तथा विकासशील देशों में बड़ी आबादी को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी.
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने रेखांकित किया है कि सम्मेलन में बनी साझेदारी एक समावेशी आंदोलन होगी, जिसका लाभ ग्लोबल साउथ के देशों के साथ-साथ पूरे विश्व को मिलेगा. इस सम्मेलन का भारत में आयोजित होना इस बात का प्रमाण है कि भारत डिजिटल तकनीक के वैश्विक सहकार के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. एआइ पर भारत की प्राथमिकता यह है कि इससे नवोन्मेष बढ़े तथा इसके नुकसान को यथासंभव सीमित किया जाए. ब्रिटेन में हुए एआइ सुरक्षा सम्मेलन में भी भारत ने एआइ के खतरों पर ठोस ध्यान देने की बात उठायी थी. भारत समेत अनेक देश हैकरों, साइबर अपराधियों तथा डाटा चोरी की चुनौतियों से जूझ रहे हैं. यदि इन अपराधों में एआइ के इस्तेमाल को न रोका गया, तो इनमें बढ़ोतरी भी होगी. दुनियाभर में सरकारें तकनीकी विकास में निजी उद्यमियों से पीछे रही हैं. वे समय रहते एआइ जैसे दोधारी तलवार पर नियमन करने में भी विफल रही हैं. ऐसे में एआइ का विकास अनियंत्रित ढंग से हुआ है. बड़े बड़े खतरों पर पहले वैश्विक स्तर पर कई समझौते हो चुके हैं. ऐसे में एआइ पर नियमन के लिए अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाना कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए.