बढ़ता जलवायु जोखिम
जलवायु परिवर्तन की चुनौती ऐसी ही बनी रही, तो भारत के 14 राज्यों में 2050 तक प्राकृतिक आपदाओं का संकट बहुत अधिक बढ़ जायेगा.
हाल के वर्षों में धरती के तापमान में वृद्धि और गंभीर होते जलवायु संकट से वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ती जा रही है. भारत उन देशों में है, जहां ऐसी स्थिति अपेक्षाकृत अधिक चिंताजनक है. ऑस्ट्रेलिया स्थित क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती ऐसी ही बनी रही, तो भारत के 14 राज्यों में 2050 तक प्राकृतिक आपदाओं का संकट बहुत अधिक बढ़ जायेगा. इस रिपोर्ट में विश्व के सबसे अधिक जोखिम वाले 100 राज्यों को चिह्नित किया गया है,
जिनमें हमारे देश के इन राज्यों को शामिल किया गया है- बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश. ये राज्य या तो अधिक आबादी के हैं या जनसंख्या घनत्व अधिक है, इनमें अनेक औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं. खेती के लिहाज से तो सभी अहम हैं. आपदाओं में सबसे अधिक आशंका बाढ़ को लेकर है.
बीते वर्षों में अचानक तेज बारिश और बेमौसम की बरसात की घटनाएं बढ़ी हैं. कई शहरों को भारी बाढ़ का सामना करना पड़ा है. पिछले एक-डेढ़ दशक में कई ऐसे वर्ष रहे हैं, जब औसत तापमान ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर रहा है. इस वर्ष फरवरी में हिमालयी क्षेत्रों से लेकर समुद्र के किनारे बसे मुंबई तक में पारा सामान्य से अधिक ऊपर रहा है. पिछले साल भी ऐसी ही हालत थी, जिसका असर गेहूं की पैदावार पर पड़ा था.
इस वर्ष भी इसी तरह की चिंता जतायी जा रही है. सरकार ने इस असर के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन भी किया है. जोखिम वाले राज्यों की संख्या के हिसाब से भारत से आगे केवल चीन ही है. सूची के शीर्षस्थ सौ राज्यों में आधे से अधिक चीन, भारत और अमेरिका के हैं. यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जनसंख्या के पैमाने पर हमारे राज्य कई देशों से बड़े हैं या कमोबेश बराबर हैं. क्षेत्रफल के हिसाब से भी बहुत से देश हमारे राज्यों से छोटे हैं. रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि जिस राज्य में विभिन्न प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर अपेक्षाकृत अधिक विकसित हैं, वहां जोखिम भी अधिक है.
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, इसलिए उसका समाधान भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सहभागिता से ही किया जा सकता है. जलवायु सम्मेलनों और समझौतों के माध्यम से इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास हुए हैं, पर कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए अपेक्षित गति का अभाव है. भारत और वैश्विक समुदाय को अधिक गंभीर होने की आवश्यकता है.