रक्षा उद्योग में वृद्धि
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित होने वाले इस बहुपयोगी हेलीकॉप्टर का डिजाइन और इसकी तकनीक देश में ही विकसित किये गये हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर निर्माण संयंत्र के उद्घाटन के साथ भारत ने रक्षा उद्योग के क्षेत्र में लंबी छलांग लगायी है. कर्नाटक के बंगलुरु के निकट स्थित इस संयंत्र में आगामी दो दशकों में एक हजार से अधिक हेलीकॉप्टरों का उत्पादन होगा. इस पूरे कारोबार का आकार चार लाख करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है. प्रधानमंत्री मोदी के आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प को साकार करने की दिशा में यह बहुत बड़ी पहल है.
उल्लेखनीय है कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित होने वाले इस बहुपयोगी हेलीकॉप्टर का डिजाइन और इसकी तकनीक देश में ही विकसित किये गये हैं. प्रारंभ में लगभग 30 हेलीकॉप्टर बनाये जायेंगे और चरणबद्ध तरीके से इनकी संख्या पहले 60 और फिर 90 के आसपास की जायेगी. पहले हेलीकॉप्टर का सफल परीक्षण भी किया जा चुका है. इस संयंत्र की आधारशिला 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने ही रखी थी.
जानकारों का मानना है कि महामारी की बाधा नहीं आती, तो इसे पहले ही शुरू किया जा सकता था. बीते कुछ वर्षों से केंद्र सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं में यह लक्ष्य भी शामिल है कि रक्षा उपकरणों के लिए दूसरे देशों से होने वाले आयात पर निर्भरता को घटाया जाए. इस क्षेत्र में निजी उपक्रमों की भागीदारी बढ़ाने के साथ विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उपक्रम लगाने एवं विदेशी निवेश लाने के लिए भी प्रयास हो रहे हैं.
रक्षा मंत्रालय ने सैकड़ों ऐसी वस्तुओं की सूची तैयार की है, जिनकी खरीद केवल देश में ही की जा सकती है. यह भी गौरव की बात है कि भारत हथियारों और सैन्य वस्तुओं का निर्यात भी व्यापक पैमाने पर कर रहा है. वर्ष 2017 और 2021 के बीच भारत का रक्षा निर्यात 1,520 करोड़ रुपये से बढ़कर 8,435 करोड़ रुपये हो गया.
इस क्षेत्र के विकास की गति का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2021-22 में निर्यात का आंकड़ा 14 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया. आत्मनिर्भर भारत बनाने के प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान में यह संकल्प भी निहित है कि देश की आवश्यकताओं के लिए तो देश में उत्पादन तो होगा ही, लेकिन इसके साथ ही गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उपलब्ध कराया जायेगा.
इससे आयात पर निर्भरता में कमी के साथ लागत का खर्च भी घटेगा. साथ ही, हम देश के सीमावर्ती क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति के अनुरूप हथियार बना पायेंगे. हल्के टैंकों और हेलीकॉप्टरों को नदी क्षेत्र तथा लद्दाख जैसे दुर्गम इलाकों में भी तैनात किया जा सकेगा.