भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात में जो जीत हासिल की है, उसका महत्व इस कारण भी है कि उसने माधव सिंह सोलंकी के दौर के कांग्रेस के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. इससे साबित होता है कि मतदाताओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत पकड़ है तथा भाजपा का संगठन बेहतर ढंग से सक्रिय है. मुझे लगता है कि कांग्रेस ने न केवल चुनाव प्रचार बहुत अनमने ढंग से किया, बल्कि शायद पार्टी के भीतर जीतने की आकांक्षा भी नहीं रही है. गांधी परिवार का चुनाव अभियान से अलग रहना इस बात का स्पष्ट संकेत देता है.
यह बात जमीनी स्तर के कांग्रेस नेता भी स्वीकार करते रहे हैं तथा कार्यकर्ताओं में भी कोई उत्साह नहीं दिख रहा था. निश्चित रूप से कांग्रेस का बेहद निराशाजनक प्रदर्शन उसे और अधिक हतोत्साहित कर सकता है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का जीतना पार्टी के लिए महत्वपूर्ण संजीवनी है. अब यही उम्मीद की जा सकती है कि पार्टी गंभीरतापूर्वक इन नतीजों का विश्लेषण करे तथा अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करे.
यह अहम सवाल है कि क्या कांग्रेस ऐसा करेगी. गुजरात की जीत से भाजपा के लिए 2024 के लिए उत्साह मिलेगा. यह उनके नेताओं के बयानों से भी इंगित हो रहा है. बीते कुछ समय के चुनावों को देखें, तो चाहे जीत हो या हार हो, कांग्रेस नेतृत्व ने उन परिणामों की समुचित समीक्षा कभी नहीं की और न ही पार्टी की ओर से कोई ठोस रणनीति हमें देखने को मिली है. इस तरह के रवैये से पार्टी 2024 में भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती है.
हिमाचल प्रदेश की जीत को उसे कुछ राहत के तौर पर ही देखना चाहिए क्योंकि भाजपा की आंतरिक स्थिति, लोगों में असंतोष तथा कांग्रेस के कुछ मुद्दों को लेकर लोगों में सकारात्मकता जैसे कारकों से यह जीत मिली है. राजा वीरभद्र सिंह के दौर में पार्टी का संगठन बेहतर स्थिति में था. अब उनकी पत्नी पार्टी की प्रमुख हैं तथा उनके बेटे भी विधायक हैं. अब इनके नेतृत्व में पार्टी और नयी सरकार क्या कर पाती हैं, यह अभी देखा जाना है.
हालांकि प्रियंका गांधी हिमाचल प्रदेश में बहुत सक्रिय रहीं, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना सही नहीं होगा कि उनका असर अन्य राज्यों में भी दिखेगा. कांग्रेस को याद रखना होगा कि 2024 के चुनाव से पहले जो विधानसभा चुनाव होंगे, उनमें भी पार्टी को अच्छा प्रदर्शन करना होगा.
हालांकि हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी को सीटें नहीं मिली हैं, पर उनके उम्मीदवार मैदान में थे. गुजरात में उन्हें संतोषजनक मत प्रतिशत भी मिला है और कुछ सीटें भी आयी हैं. दिल्ली नगर निगम चुनाव की जीत से भी अरविंद केजरीवाल और आप आदमी पार्टी उत्साहित हैं. जो मतदाता गुजरात में बदलाव के आकांक्षी थे या किन्हीं कारणों से भाजपा से नाराज थे, वे कांग्रेस की ओर न देखकर आप की ओर देख रहे थे.
यह अनायास नहीं है कि आप पार्टी अपने को कांग्रेस के विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिए प्रयासरत है. यह भी कांग्रेस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए. वह पंजाब और दिल्ली में कांग्रेस को अपदस्थ कर चुकी है. गुजरात में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है. ऐसे में वह हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्यों में भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी रहेगी.
केजरीवाल 2024 के लिए नहीं, 2029 के लिए तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में उनके पास समय भी है और स्थितियों के अनुसार रणनीति बनाने की गुंजाइश भी. गुजरात में भाजपा को भी यह याद है कि कैसे पंजाब में पहले भाजपा ने लोकसभा में और फिर विधानसभा में उपस्थिति बनायी और फिर सरकार भी बना लिया.
गुजरात और हिमाचल के चुनाव को 2024 में विपक्ष की स्थिति के संदर्भ में भी देखना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता बनी हुई है तथा भाजपा के पास बड़ा संगठन और संसाधन हैं. लेकिन विपक्ष निराश भी है और बिखरा हुआ भी. यह कहने की बात नहीं है कि उन्हें अगर सचमुच मोदी सरकार को हटाना है, तो उन्हें एकजुट होना पड़ेगा. ऐसी एकजुटता आसान नहीं है.
आपस में विपक्षी दलों में भी टकराव है तथा अनेक राज्य ऐसे हैं, जहां एक से अधिक विपक्षी दल दौड़ में हैं. इस स्थिति में यह भी संभव नहीं प्रतीत होता है कि किसी एक नेता या पार्टी के नेतृत्व में समूचा विपक्ष एक बैनर के नीचे जमा होगा. रणनीति के हिसाब से देखें, तो उन्हें क्षेत्रीय स्तर पर सीटों के हिसाब से साझेदारी कर मुकाबला करना होगा. मेरा अनुमान है कि ऐसी किसी समझदारी में भी अरविंद केजरीवाल शामिल नहीं होंगे.
विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों में भाजपा को सीधे चुनौती देने का दम-खम है. लेकिन भाजपा जिस लगन से चुनावों की तैयारी में जुटी रहती है, सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करती है, वैसा तेवर विपक्ष दिखा सकेगा या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में हैं. हमें यह भी समझना होगा कि भाजपा या भाजपा सरकारों की गलतियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता छुपा भी ले जाती है. (बातचीत पर आधारित).