भारत का एक बड़ा वर्ग (जिसमें मैं भी शामिल हूं) हार्दिक पंड्या की असफलता और उन्हें हूट किये जाने में एक तरह की खुशी का अनुभव कर रहा है. यह चकित करने वाली बात है. कई क्रिकेटरों और कमेंटेटरों ने इस बात के लिए फैंस की आलोचना की है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. क्रिकेटर आर अश्विन ने कहा कि सचिन, राहुल द्रविड़ आदि धोनी की कप्तानी में खेले हैं, तो हार्दिक की कप्तानी में रोहित का खेलना कोई बड़ी बात नहीं. पूर्व क्रिकेटर संजय मांजरेकर ने तो हूट कर रहे फैंस को व्यवहार ठीक करने की सलाह तक दे डाली. लेकिन सारे कमेंटेटर और हार्दिक को पसंद करने वाले एक बड़ी बात समझने में चूक रहे हैं. आम तौर पर भीड़ की बातों को गंभीरता से लेना नहीं चाहिए, मगर हार्दिक को स्टेडियम में हूट करने वाले लोग भीड़ नहीं हैं. यह मुंबई इंडियंस का फैन बेस है, जो पिछले दस-बारह साल में तैयार किया गया है.
गुजरात वालों का (गुजरात की टीम छोड़ी है पंड्या ने, जिसने उसे सबसे पहले कप्तान बनाया) हार्दिक पंड्या को हूट किया जाना समझ में आता है, लेकिन मुंबई वाले क्यों हूट कर रहे हैं! पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिद्धू ने इस मामले में नब्ज पर हाथ रखा है. उन्होंने कहा कि यह मसला दो कप्तानों का और सीनियर खिलाड़ियों का एक भारतीय कप्तान के तहत खेलना नहीं है, बल्कि मौजूदा भारतीय कप्तान (हर फॉर्मेट में) का एक जूनियर खिलाड़ी के तहत खेलना, वह भी आइपीएल में, समस्या की जड़ है. अगर कप्तान के रूप में रोहित असफल होते, तो भी यह बात शायद हजम हो जाती. तीन महीने बाद होने वाले टी-20 विश्व कप में वे भारतीय टीम के कप्तान होंगे, तो आइपीएल में उन्हें कप्तानी देने में क्या दिक्कत हो सकती थी?
मुंबई इंडियन कोई भारतीय टीम नहीं है कि एक साल देर से हार्दिक कप्तान बनते, तो आफत आ जाती. मुंबई इंडियंस के फैंस के अलावा और लोग भी नाराज हैं. इसका सामाजिक कारण यह हो सकता है कि हार्दिक पंड्या जैसे क्रिकेटर आज के युवा वर्ग के प्रतिनिधि हैं. यह भारतीय युवाओं के शार्टकट मारने का सबसे सुंदर प्रतीक बन कर उभरता है, जहां आप काम कम करते हैं और सिर्फ आपकी एक खूबी (आलराउंडर) के कारण आपको भारतीय टीम में जगह मिल जाती है. आज का युवा यही चाहता है कि उसे अपनी मनमानी करते हुए जीवन का हर सुख मिले. ऐसा नहीं होता तो हार्दिक टेस्ट मैचों में भी दिखाई देते.
भारतीय टीम में चुने जाने तक तो ठीक है, लेकिन हार्दिक का प्रदर्शन कोई खास नहीं रहता है. सूर्या, यशस्वी और कई लोग उनसे अच्छा प्रदर्शन लगातार कर रहे हैं. यहां तक भी ठीक है. फिर यह लड़का, जिसके पास अकूत प्रतिभा नहीं है, एक औसत से बेहतर क्रिकेटर है, वह आइपीएल भी जीत जाता है कप्तान बन कर, तो लोगों को यहां तक सब अच्छा लगता है. लेकिन क्या ऐसे खिलाड़ी को भारतीय कप्तान के ऊपर एक क्लब टीम में तरजीह दी जानी चाहिए? रोहित में क्लास है, उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता साबित की है, वहां हार्दिक को कप्तानी नहीं मिलनी चाहिए. फैंस का रोष इस बात को लेकर है. किसी भी बड़ी कंपनी को लगता है कि वह अपनी मनमानी कर सकती है. इस मामले में किसी ने यह नहीं कहा कि एक बड़ी कंपनी ने भारतीय कप्तान को कथित रूप से नेतृत्व विकास करने के नाम पर दरकिनार कर दिया है.
संभवत मुंबई इंडियंस को लगा होगा कि एकदिवसीय विश्व कप के बाद रोहित शायद टी-20 की टीम में न शामिल हों, तो ऐसे में हार्दिक बेहतर विकल्प थे क्योंकि वे टी-20 में भारत की कप्तानी कर चुके थे. बाद में बीसीसीआइ ने रोहित को कप्तान बना दिया, तो मुंबई इंडियंस के लिए दिक्कत हो गयी. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि अगर बीसीसीआइ ने रोहित को पहले ही टी-20 विश्व कप के लिए कप्तान चुन लिया होता, तो मुंबई इंडियन शायद ही हार्दिक को कप्तान बना कर गुजरात टाइटन से लेकर आती.
इसी साल आइपीएल का मेगा-ऑक्शन भी होना है यानी बड़ी संख्या में खिलाड़ी टीमें बदलेंगे. जो ज्यादा पैसा देगा, वहां चले जायेंगे. ऐसे में हार्दिक ने कप्तान बनने की शर्त रखकर अच्छी डील ले ली. उन्हें भी शायद अंदाजा नहीं होगा कि रोहित के लिए फैंस ऐसे हंगामा करेंगे. पिछले तीन मैचों में हार्दिक के अटपटे व्यवहार और बयानों ने आग में घी का ही काम किया है. मैदान पर उन्होंने जो फैसले किये, मसलन जसप्रीत बुमराह को पहला ओवर न देना और खुद पहला ओवर करना या फिर आखिरी मैच में पिच पर टिक जाने के बाद रन न बनाकर जल्दी आउट हो जाना फैंस को और अधिक नागवार गुजरा है. मुंबई इंडियंस के खिलाड़ियों में भी हार्दिक के प्रति सम्मान नहीं है. सूर्या और बुमराह के क्रिप्टिक ट्वीट इसकी गवाही देते हैं. रोहित के बाद, दोनों खिलाड़ी मुंबई की कप्तानी का दावा रखते थे. टीम में इस समय सिर्फ ईशान किशन ही हार्दिक के साथ दिखते हैं, जो अपने व्यवहार से बीसीसीआइ को भी नाराज कर चुके हैं. आइपीएल एक तमाशा है. हार्दिक उस तमाशे का छोटा सा हिस्सा है. फैंस ने इस बार इस तमाशे में बड़ा हिस्सा अपने नाम किया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)