जहर का कहर
शराब की लत भारत की प्रमुख सामाजिक और स्वास्थ्य समस्याओं में एक है. साल 2005 और 2016 के बीच हमारे देश में अल्कोहल का उपभोग दुगुना हो गया.
पंजाब में जहरीली शराब पीने से 86 लोगों की मौत ने एक बार इस भयावह समस्या की ओर देश का ध्यान खींचा है. आंध्र प्रदेश में भी 10 लोगों के मारे जाने की खबर आयी है. रिपोर्टों के अनुसार, जहां पंजाब में जानलेवा रसायनों की मिलावट से बनी शराब हादसे की वजह बनी है, वहीं आंध्र प्रदेश में सैनिटाइजर को पानी में मिला कर पीने से लोग मरे हैं. पिछले साल फरवरी में असम, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में सैकड़ों जानें गयी थीं. बीते सालों में पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश आदि कई राज्यों में जहरीली शराब जनसंहार का कारण बनी है.
जो लोग मिलावटी शराब पीकर गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं, उनकी जान तो बच जाती है, लेकिन उनमें से कई अपनी आंखें गंवा बैठते हैं और जीवनभर के लिए अनेक असाध्य रोगों से पीड़ित हो जाते हैं. हर बार की घटना की के बाद एक ही तरह की बातें सुनने को मिलती हैं कि बड़ी संख्या में गिरफ्तारी हुई है और पीड़ितों को मुआवजा दिया गया है. अनेक मामलों में स्थानीय पुलिसकर्मियों व प्रशासनिक कर्मचारियों को भी निलंबित किया जाता है. किंतु, इन हादसों की बारंबारता यह इंगित करती है कि राज्य सरकारों के पास अवैध शराब के कारोबार को रोकने की नीति और रणनीति का अभाव है. इसकी एक बड़ी वजह राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी है.
यह जगजाहिर तथ्य है कि अन्य संगठित अपराधों की तरह मिलावटी शराब बेचने का कारोबार भी बिना राजनीतिक, प्रशासनिक और पुलिस संरक्षण के बिना बड़े पैमाने पर संचालित नहीं किया जा सकता है. शायद ही कभी सुना गया हो कि ऐसे किसी हादसे में बड़े सरगना या संरक्षक को सजा मिली है. निलंबित सरकारी कर्मचारी भी कुछ समय बाद पदस्थापित हो जाते हैं. हमें यह भी समझना होगा कि शराब की लत भारत की प्रमुख सामाजिक और स्वास्थ्य समस्याओं में एक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 और 2016 के बीच हमारे देश में अल्कोहल का उपभोग दुगुना हो गया. साल 2005 में जहां प्रति व्यक्ति उपभोग 2.4 लीटर था, वह 2016 में 5.7 लीटर पहुंच गया.
अन्य कई अध्ययनों में पाया गया है कि शराब की लत के कारण औसतन 12.2 कार्य दिवसों का नुकसान होता है और करीब 60 फीसदी परिवारों को खर्च के लिए अन्य सदस्य पर निर्भर होना पड़ता है. घरेलू हिंसा, बच्चों के उत्पीड़न और कई अपराधों का मुख्य कारण शराब का नशा है. सड़क दुर्घटनाओं में करीब 28 फीसदी लोगों के घायल होने का सीधा संबंध अल्कोहल से है. शराबबंदी, निर्माण, खरीद-बिक्री व पीने के कड़े नियम, यातायात कानून में सख्ती आदि कदम उठाये जाते रहे हैं, पर उन्हें ठीक से लागू करने में कमी व चूक है. सरकार और समाज को लोगों में जागरूकता बढ़ाने तथा नशे के आदी लोगों के उपचार एवं पुनर्वास पर भी ध्यान देना चाहिए.