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प्रदूषण का कहर

आज देश के 132 शहरों में हवा प्रदूषित है. इस सूची में पहले 102 शहर ही थे. इसका अर्थ यह है कि जहां अनेक शहरों में स्थिति में सुधार हुआ है, तो कई शहरों में हालात बिगड़ रहे हैं.

राजधानी दिल्ली 2022 में भी देश का सर्वाधिक प्रदूषित महानगर रहा. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के ट्रेकर के मुताबिक दिल्ली के साथ फरीदाबाद, गाजियाबाद, पटना, मुजफ्फरपुर, नोएडा, मेरठ, गोबिंदगढ़, गया और जोधपुर में वायु गुणवत्ता सबसे खराब रही है. उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकतर शहर सिंधु-गंगा मैदानों में स्थित हैं. वातावरण में वायु के राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के अनुसार, वातावरण की हवा में प्रदूषक तत्वों- पीएम2.5 और पीएम10- की मात्रा क्रमशः 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक ही होनी चाहिए.

ध्यान रहे, ये मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित स्तरों से अधिक हैं. इसका अर्थ यह है कि यदि किसी तरह में ऐसे तत्वों की मात्रा इस सीमा के आसपास है, तो हमें निश्चिंत नहीं होना चाहिए. इस मात्रा के बढ़ने के साथ प्रदूषित हवा में सांस लेना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह होता जाता है. चार वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी और इसमें देश भर के कई शहरों की लगातार निगरानी और वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक प्रयास को लेकर प्रावधान किये गये थे.

अब तक इस कार्यक्रम पर 6,897 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. फिर भी बंेगलुरु, मुंबई और चेन्नई जैसे अपेक्षाकृत अच्छी हवा वाले शहरों में प्रदूषणकारी तत्वों की मात्रा बढ़ना बड़ी चिंता की बात है. राष्ट्रीय कार्यक्रम निश्चित ही एक आवश्यक पहल है, पर आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि प्रदूषक तत्वों को 2024 तक निर्धारित सीमा से नीचे लाने का लक्ष्य पूरा कर पाना बेहद मुश्किल है. देश के 132 शहरों में हवा प्रदूषित है.

इस सूची में पहले 102 शहर ही थे. निगरानी की बेहतर व्यवस्था के कारण हमें पहले से कहीं अधिक सही जानकारी मिल रही है. अब बेहतरी के लिए गंभीर उपायों की आवश्यकता है. इन शहरों के आसपास के उपनगरों और गांवों में भी हवा प्रदूषित है. इस समस्या के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर अत्यंत गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं. दिल के दौरे, फेफड़े और दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों में एक-तिहाई हिस्से की वजह वायु प्रदूषण है.

मां के गर्भ में ही शिशु को इससे तकलीफें होने लगती हैं. बुजुर्गों और गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए तो यह जानलेवा है. इस दूसरे सबसे बड़े स्वास्थ्य जोखिम से हमारी अर्थव्यवस्था को हर साल 150 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है. सरकार, उद्योग जगत तथा नागरिकों को एकजुट होकर इस भारी चुनौती का सामना करना होगा.

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