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अशांत मणिपुर में स्वास्थ्य संकट का खतरा

शिविरों में बिना पर्याप्त सुविधा के बच्चों का जन्म हो रहा है. गंभीर रोगियों को अस्पताल ले जाना मुश्किल है. रोजगार बंद होने की वजह से लोग बाहर से दवाएं नहीं खरीद पा रहे.

डॉ आनंद जकरिया,

प्रोफेसर

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर

डॉ रमणी अटकुरी,

मध्य भारत में आदिवासियों और ग्रामीणों के बीच सक्रिय कार्यकर्ता

मणिपुर में हिंसा और अशांति की वजह से बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं और वे अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं, घाटी में भी और पहाड़ियों में भी. यह शिविर स्कूलों, होस्टलों, गोदामों, उपासना-स्थलों या सामुदायिक केंद्रों जैसी जगहों पर लगाये गये हैं. अनेक प्रभावित लोग नागालैंड, असम, मिजोरम जैसे पड़ोसी राज्यों या देश के दूसरे शहरों में चले गये हैं. ऐसा अनुमान है कि वहां अभी तक 70 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं, 142 लोगों की मौत हुई है और लगभग 6,000 लोग घायल हुए हैं.

मानवीय राहत संस्थाओं के एक राष्ट्रीय संयोजक, स्फेयर इंडिया, के आंकड़ों के अनुसार मणिपुर के विस्थापित लोगों ने वहां के 10 जिलों में फैले 253 शिविरों में शरण ली हुई है. वहां काम कर रहे या जा चुके डॉक्टरों के अनुसार, इन शिविरों में स्वास्थ्य की स्थिति गंभीर है. वहां बहुत भीड़ है और सैनिटेशन की व्यवस्था अपर्याप्त है. पानी बाहर स्थित किसी नल या बोरवेल से लाकर बड़े प्लास्टिक टैंकों में रखा जा रहा है, मगर उसे पीने योग्य सुरक्षित नहीं किया जा रहा. गंदे पानी के ड्रेनेज की व्यवस्था भी नाकाफी है और मानसून की वजह से स्थिति और गंभीर होती जा रही है. इन हालात में वहां महामारी का खतरा पैदा हो गया है.

खाने में लोगों को दोनों वक्त दाल-भात, और कभी-कभार बहुत थोड़ी सब्जी और मांस मिल पा रहा है. छोटे बच्चों, गर्भवती माताओं, नयी माताओं और वृद्ध लोगों का ठीक से ध्यान नहीं रखा जा रहा. नवजात शिशुओं की देखभाल और उनके टीकाकरण की सेवाएं बाधित हुई हैं. हाइपरटेंशन और डायबिटीज की जरूरी दवाओं की सप्लाई पर असर पड़ा है. शिविरों में ही बिना पर्याप्त सुविधा के बच्चों का जन्म हो रहा है. गंभीर रोगियों को अस्पताल ले जाना मुश्किल है. विकलांग लोगों के लिए कोई सुविधा नहीं है.

रोजगार बंद होने की वजह से लोग बाहर से दवाएं नहीं खरीद पा रहे. अधिकतर बड़े अस्पताल और शिक्षण संस्थान घाटी में केंद्रित हैं और पहाड़ी क्षेत्रों पर शिविरों में रह रहे लोगों के लिए वहां जाना मुश्किल है. पहाड़ी इलाकों में अन्य सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में घाटी की तुलना में कर्मचारियों के बहुत सारे पद रिक्त हैं. हाल की हिंसा से वहां की पहले से ही बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और कमजोर हो गयी है. मणिपुर में शिशु मृत्यु दर, गर्भवती मृत्यु दर और पांच वर्ष से कम के बच्चों के कुपोषण की स्थिति भारत की औसत दर से बेहतर है, लेकिन अशांति जारी रहने पर स्थिति बिगड़ सकती है.

ठसाठस भरे शिविरों में तीन महीने से रहने से लोगों में तनाव बढ़ रहा है. संघर्षरत दोनों ही समुदायों में एक-दूसरे के प्रति नाराजगी और असंतोष है. विस्थापन और माता-पिता या किसी भाई-बहन के हिंसा में मारे जाने से बच्चों को सदमा लगा है. भविष्य की अनिश्चितता से मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं. अशांति से स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी तथा दूसरे कोर्स कर रहे छात्रों की पढ़ाई पर असर पड़ा है. कुकी छात्र घाटी में स्थित कॉलेजों में जाने से डर रहे हैं.

सरकार सुविधाएं प्रदान करने की कोशिश कर रही है, लेकिन विस्थापित लोगों की दशा देखते हुए मेडिकल और जन स्वास्थ्य समुदाय से जुड़े लोगों को मदद के लिए आगे आना महत्वपूर्ण हो गया है. अभी सबसे पहले वहां मेडिकल सामग्रियां और चिकित्साकर्मियों की जरूरत है. वहां खास तौर पर गर्भवती माताओं, छोटे बच्चों, बूढ़ों और क्रोनिक बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की देखभाल के लिए चिकित्साकर्मियों और वॉलंटियरों की जरूरत है.

ऐसे स्वयंसेवकों की भी आवश्यकता है, जो लोगों को सदमे से राहत दिला सकें और स्थानीय लोगों को इसकी ट्रेनिंग दे सकें. वॉलंटियरों को स्वास्थ्य सामग्रियों के साथ ट्रेनिंग देने की आवश्यकता है, जिससे वह सामान्य बीमारियों में मदद कर सकें, प्राथमिक चिकित्सा कर सकें और रोगियों का ध्यान रख सकें. जहां तक सरकार का प्रश्न है, तो उसे बिना किसी पक्षपात के राहत और पुनर्वास को सुनिश्चित करना चाहिए.

सरकार को हर शिविर के संचालन की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए तथा वहां अन्य कार्यों के साथ पोषण, पीने के स्वच्छ जल और सैनिटेशन की व्यवस्था करनी चाहिए. सरकार को इन शिविरों में स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करना चाहिए. उसे ग्रामीण इलाकों में जन स्वास्थ्य केंद्रों को सशक्त करना चाहिए. महिलाओं की सुरक्षा, यौन दुर्व्यवहार की रोकथाम और यौन हिंसा के मामलों में त्वरित कार्रवाई का प्रबंध करना चाहिए.

मरीजों तथा स्वास्थ्य केंद्रों तक चिकित्साकर्मियों और स्वास्थ्य सामग्रियों की सप्लाई के लिए सुरक्षा का प्रबंध होना चाहिए. मेडिकल, नर्सिंग या अन्य स्वास्थ्य विज्ञान के छात्रों की पढ़ाई राज्य में या राज्य के बाहर बहाल करवाने की व्यवस्था की जानी चाहिए. साथ ही, प्रभावित लोगों के जल्द-से-जल्द पुनर्वास की व्यवस्था होनी चाहिए. संघर्ष का समाधान राजनीतिक प्रयासों तथा समुदायों के बीच सुलह के सतत प्रयासों से निकल सकता है, लेकिन शांति बहाल होने तक मेडिकल जगत को भी मणिपुर के हिंसा प्रभावित लोगों की मुसीबतों को कम करने का प्रयास करना चाहिए.

( ये लेखकों के निजी विचार हैं)

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