मयंका अंबाडे
असिस्टेंट प्रोफेसर, आइआइटी मंडी
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हाल ही में भारत में 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के बारे में एक अध्ययन की रिपोर्ट प्रकाशित हुई. प्रीवेंटिव मेडिसीन नामक जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लोगों पर अध्ययन किये गये उनमें कार्डियोवैस्कुलर बीमारी के कई कारण मौजूद थे, लेकिन उनमें सबसे ज्यादा प्रमुखता से दो बातें देखी गयीं. एक, कि उनके पेट के हिस्से पर काफी चर्बी थी जिसे सेंट्रल ऐडिपॉसिटी कहते हैं. और दूसरा, कि शारीरिक तौर पर वह सक्रिय नहीं थे. अध्ययन में शामिल लोगों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक मानक वेस्ट-हिप अनुपात के आधार पर मापा गया जो पुरुषों के लिए 0.90 से अधिक और महिलाओं के लिए 0.81 से अधिक तय है.
इस मानक के हिसाब से 77.2 प्रतिशत लोगों के पेट पर अत्यधिक चर्बी थी (चंडीगढ़ में 95.3 प्रतिशत से लेकर मिजोरम में 63 प्रतिशत तक). वहीं 73.9 फीसदी लोग बहुत कम शारीरिक क्रियाएं करते थे. इनकी तुलना में ओवरवेट और मोटे लोगों के लिए यह अनुपात क्रमशः 17.7 प्रतिशत और 6.8 प्रतिशत था, जो काफी कम था. ये एक बहुत ही महत्वपूर्ण खोज है क्योंकि शरीर के वजन का संबंध मुख्यतः कैलोरी की कुल मात्रा के सेवन से होता है, और इसमें बदलाव मुश्किल होता है क्योंकि इसके लिए खान-पान की आदतों में बुनियादी बदलाव करने की जरूरत होती है. वहीं दूसरी ओर, पेट की चर्बी से निबटना ज्यादा आसान है क्योंकि इसे सामान्य दैनिक व्यायाम से कम किया जा सकता है.
पेट की चर्बी का संबंध इंसुलिन रेसिस्टेंस या प्रतिरोध से होता है और इसका कई तरह की बीमारियों से संबंध होता है, जैसे उच्च रक्त चाप और डायबिटीज. इंसुलिन प्रतिरोध का मतलब शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ने पर प्रतिक्रिया के कमजोर होने से होता है, और हमारे विकास के इतिहास से इसकी उत्पत्ति का एक अंदाजा मिलता है. हमारा विकास एक ऐसे माहौल में हुआ, जहां भोजन और नमक की कमी थी, और हमलों से घायल होने और संक्रमित होने का खतरा ज्यादा था. ऐसे माहौल में, गर्भावस्था के दौरान, संक्रमण या सूजन और दूसरे प्रकार के तनावों के दौरान, जब रक्त में ग्लूकोज के उच्च स्तर को बनाये रखना जरूरी होता है, तब इंसुलिन के प्रतिरोध के लिए ढलना मददगार साबित हुआ. लेकिन, जब माहौल बदला और खाना व नमक मिलने लगे, तो इंसुलिन प्रतिरोध हमारे अस्तित्व के लिए मददगार साबित होने की जगह अनेक बीमारियों का कारण बन गया.
पेट की चर्बी अब इतनी आम हो चुकी है कि मान लिया जाता है कि बढ़ती उम्र में ऐसा होना सामान्य है. कुछ संस्कृतियों में तो इसे आकर्षक भी समझा जाता है, और इसे संपन्नता का एक प्रतीक मान लिया जाता है. लेकिन, अब ये स्पष्ट हो चुका है कि पेट की चर्बी का उच्च रक्तचाप, उच्च मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रोल स्तर से संबंध है. ये तीनों स्थितियां कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का सबसे बड़ा कारण होती हैं, और सामान्य वजन वाले लोगों को भी इनसे बीमारियों का खतरा होता है. ऐसे लोग जिनके पेट पर बहुत ज्यादा चर्बी है और जिनका ब्लड प्रेशर ज्यादा है, उन्हें डायबिटीज होने का जोखिम ज्यादा होता है. इससे उनका पाचन तंत्र प्रभावित हो सकता है, जिससे उन्हें सीने में जलन की शिकायत हो सकती है. इससे नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है और पीठ के निचले हिस्से में दर्द हो सकता है. कैंसर और डिप्रेशन होने का संबंध भी पेट की चर्बी से हो सकता है.
पेट की चर्बी की चुनौती का सामना करने के लिए, इसके कारणों की पड़ताल करना जरूरी है. इसका संबंध ज्यादा कैलोरी वाला खाना और अपर्याप्त व्यायाम से हो सकता है. हालांकि, साधारण व्यायाम से भी, पूरे शरीर का वजन घटाने की तुलना में, पेट की चर्बी को कम करना ज्यादा आसान होता है. लेकिन लोगों को कम खाना खाने और ज्यादा व्यायाम के लिए समझाने में मुश्किल से ही सफलता मिलती है. चीनी और चर्बी की कीमत बढ़ाने से कैलोरी उपभोग के स्तर में प्रभावी तरीके से कमी आती है और इसे कई देशों में आजमाया गया है. लेकिन, भारत में इसी तरह के बदलावों को लागू करने में राजनीतिक और नीतिगत चुनौतियां इतनी ज्यादा बड़ी हैं, कि शायद उनको दूर कर पाना मुश्किल है.
व्यायाम का स्तर बढ़ाने के लिए, पार्कों की संख्या बढ़ाने और शहरों को इनसे आकर्षक बनाने की कोशिशों का ज्यादा असर नहीं हुआ है. इसके बदले, सार्वजनिक परिवहन की ऐसी व्यवस्थाएं बनाने से, जिसमें लोगों को बस स्टॉप और ट्रेन स्टेशन तक पहुंचने के लिए अपने घरों से अच्छे, सुरक्षित रास्तों से होकर जाने की सुविधा मिलती हो, उनके जरिए लोगों का रोजाना अच्छा-खासा शारीरिक व्यायाम हो जाता है. विकसित देशों में लंदन और न्यूयॉर्क, तथा विकासशील देशों में अदीस अबाबा जैसे शहरों में इस सोच को अपनाया गया है. इन शहरों में सोच-समझकर ऐसी शहरी योजना बनायी गयी है जिससे कि लोगों को रोज थोड़ा व्यायाम करवाया जा सके. भारत में औपचारिक तौर पर शहरीकरण का प्रतिशत 30 है, जिसे अभी भी कम माना जाता है, लेकिन उपग्रहों से लिए गये नाइट-लाइट्स डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि हमारी अधिकतर आबादी ऐसी घनी बस्तियों में रहती है कि बहुत से देशों में उन्हें शहरी आबादी घोषित कर दिया जाएगा.
ये बस्तियां जब आगे चलकर औपचारिक शहरों में बदल जाएंगी, और ऐसे में इन जगहों को ऐसा ढाला जा सकता है जहां लोगों को टहलने की सुविधा मिल सके. इन विकसित होते शहरी क्षेत्रों में ऐसे भी सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में निवेश करने की जरूरत है, ताकि शहरी आबादी बिना निजी वाहनों के इस्तेमाल के आवागमन कर सके, जिनके लिए महंगी सड़कों की जरूरत होती है और जिनका परिणाम प्रदूषण में वृद्धि और दुर्घटनाओं में नजर आता है. शहरों में वॉकिंग के रास्तों को जनपरिवहन के तंत्र से जोड़ने से लोगों के पेट की चर्बी घटेगी और इसका सीधा संबंध कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों पर पड़ेगा. आज डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर देश के स्वास्थ्य के लिए शायद सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहे हैं. विकसित देशों की अपेक्षा हमारे देश में औसत कैलोरी उपभोग और उससे जोड़े मोटापे के स्तर का कम होना, कम-से-कम अभी के लिए हमारे लिए अच्छी खबर है. इसके अलावा, यह खबर भी चिंताजनक होने के बावजूद अच्छी है कि हमारे देश में 75 फीसदी से ज्यादा लोगों के पेट पर चर्बी है और वह व्यायाम नहीं करते. इससे यह उम्मीद जगती है कि व्यायाम से इसे नियंत्रित करने का रास्ता मौजूद है.
(ये लेखकों के निजी विचार हैं)