गर्मी, सड़क हादसे और हम
एक रिपोर्ट के अनुसार, 70 फीसदी हादसे ओवर स्पीडिंग और पांच प्रतिशत गलत दिशा में वाहन चलाने से होते हैं. ताज्जुब कि 72 फीसदी से अधिक हादसे धूप व साफ मौसम के बीच होते हैं!
यह तो अध्ययन का विषय है कि सड़क हादसों का मौसम से कोई संबंध होता है या नहीं, लेकिन हम अपने अनुभव से जानते हैं कि गर्मी में ये हादसे बढ़ जाते हैं. भले ही तब सड़कों पर जाड़े या बरसात जैसी कोहरे या जलभराव वगैरह की दुश्वारियां नहीं होतीं. मोटे तौर पर इसके जो कारण हमें पता हैं, उनमें से सड़कों पर ट्रैफिक का बढ़ जाना और चालकों का बारिश और कोहरे के दौर वाली सावधानियों के प्रति लापरवाह हो जाना.
एक रिपोर्ट के अनुसार, गर्मियों में बारिश की तुलना में 15 से 20 फीसदी और कोहरे की तुलना में दो से तीन फीसदी अधिक हादसे होते हैं. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के बरेली में एक एम्बुलेंस को निरापद रास्ता उपलब्ध कराने का कर्तव्य भूल कर एक ड्राइवर ने अपना ट्रक उससे ला भिड़ाया, जिससे कई लोगों की मौत हो गयी. बहराइच जिले में भी ऐसी एक घटना हुई.
ऐसे हादसों से गुजरने के बाद कोई भी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के उन आंकड़ों के राहत भरे संकेतों से आश्वस्त नहीं हो सकता है कि देश में धीरे-धीरे सड़क हादसे कम होने लगे हैं. साल 2017 में 4,64,910 हादसे हुए थे, 2018 में यह आंकड़ा बढकर 4,67,044 हो गया, जबकि 2019 में 4,49,002 और 2020 में 3,66,138 हादसे हुए. वर्ष 2021 के अधिकृत आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि उनमें संख्या 2020 से कम ही होगी.
दूसरे पहलू से देखें, तो 2020 में सड़क हादसों में आयी कमी का कारण कोरोना के कारण लगा देशव्यापी लॉकडाउन था. उसके बावजूद विश्व बैंक के एक अध्ययन से निकला यह तथ्य भी अभी तक अपरिवर्तित है कि देश में वाहन तो दुनिया के सिर्फ एक फीसदी हैं, लेकिन सड़क हादसों में दुनियाभर में होनेवाली मौतों में भारत का हिस्सा 11 प्रतिशत है.
इनमें 76.2 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 से 45 साल के बीच होती है यानी वे कामकाजी आयु वर्ग के होते हैं और उनकी प्राण रक्षा हो पाए, तो वे देश की आर्थिक प्रगति की संभावनाओं के नये द्वार खोलने में भूमिका निभा सकते हैं. बड़ी संख्या में हादसों में घायल लोग विकलांग व पराश्रित हो जाते हैं. इससे भी सामाजिक व आर्थिक क्षतियां होती हैं.
पिछले एक दशक में देश में लगभग 14 लाख लोग सड़क हादसों में मारे गये हैं और अब भी हम हर साल सड़क हादसों में उतने लोगों को गंवा रहे हैं, जितने अब तक के किसी युद्ध में सैनिक नहीं गंवाये. संभवतः इस सबके मद्देनजर ही सड़क, परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल में कहा था कि अभी देश में सड़क हादसों में रोजाना 415 लोग मारे जा रहे हैं. अगर हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे, तो 2030 तक 6-7 लाख और लोग बलि चढ़ जायेंगे.
उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि उनके मंत्रालय ने केंद्र व राज्यों के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों के साथ मिलकर एक महत्वाकांक्षी कार्ययोजना बनायी है, जिसमें सड़क हादसों की संख्या को चरणबद्ध ढंग से घटाते हुए 2025 तक आधी और 2030 तक एकदम खत्म कर देना है.
हम जानते हैं कि सड़कों पर हादसों के कारणों को दूर करने को लेकर आम लोगों में जागरूकता तथा सरकारी अमले में कर्तव्यनिष्ठा का अभाव है, अन्यथा सड़कों पर गड्ढों के कारण ही रोजाना दस लोगों को जान नहीं गंवानी पड़ती.
सड़क हादसों के अन्य कई कारण भी हैं, मसलन- तय गति सीमा का उल्लंघन, ड्राइविंग के वक्त मोबाइल का उपयोग या शराब वगैरह का नशा, ओवरलोडिंग, वाहनों की खस्ताहाली, सड़कों पर रौशनी की खराब स्थिति, ओवरटेक करना, नियम-कायदों की उपेक्षा, मौसम की स्थिति, मानवीय भूल-चूक वगैरह. एक रिपोर्ट के अनुसार, 70 फीसदी हादसे ओवर स्पीडिंग और पांच प्रतिशत गलत दिशा में वाहन चलाने से होते हैं. ताज्जुब कि 72 फीसदी से अधिक हादसे धूप व साफ मौसम के बीच होते हैं!
यह तथ्य भी गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर राज्यीय राजमार्गों के मुकाबले अधिक हादसे होते हैं. तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक की सड़कों पर सबसे ज्यादा हादसे होते हैं. संभवतः इसलिए कि सामंती मूल्यों की वह जकड़न इन्हीं प्रदेशों में सबसे ज्यादा है, जिसके तहत नियमों के पालन की बजाय उन्हें तोड़ने में ज्यादा शान समझी जाती है. इससे गैरजिम्मेदार ढंग से चलने की प्रवृत्ति बढ़ती है, जो हादसों का कारण बनती है.
यहां नितिन गडकरी से सहमत हुआ जा सकता है कि यह स्थिति तभी बदलेगी, जब 2030 तक हादसों के उन्मूलन के लिए बनी कार्ययोजना पर ठीक से अमल हो और हादसों के कारण समाप्त करने में किसी भी स्तर पर कोताही न बरती जाए.
यह अच्छी बात है कि सड़क हादसों को घटाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग पर भी विचार किया जा रहा है, ताकि हादसों में मानवीय भूलों की भूमिका घटायी जा सके. निस्संदेह, टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग की मदद से सड़क सुरक्षा की चुनौती का बेहतर मुकाबला किया जा सकता है, लेकिन यह इस सवाल से नजरें चुराकर कतई संभव नहीं कि हम इस चुनौती को लेकर वास्तव में कितने गंभीर हैं. हर वर्ष 11 से 17 जनवरी तक सड़क सुरक्षा दिवस, सप्ताह या माह मनाकर साल भर सारे एहतियात भूले रहने की हमारी आदत से तो किसी गंभीरता के दर्शन नहीं होते.