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हेमा मालिनी : कला के लिए समर्पण की मिसाल

लोकप्रियता के शिखर पर पहुंची फिल्मी हस्तियों में विरले ही ऐसा देखने को मिलता है कि वे किसी शास्त्रीय कला के प्रति अपनी प्रतिबद्धता कायम रख पाएं, लेकिन हेमा मालिनी अब भी घंटों मंच पर अपने बैले की प्रस्तुति दे सकती हैं.

फिल्मी सितारों के साथ जुबली कुमार, सुपर स्टार, ही-मैन जैसे टाइटिल चस्पां होते रहे हैं और समय के साथ लोग उन्हें भूलते भी जाते हैं, लेकिन हेमा मालिनी अपवाद हैं. पहली ही फिल्म ‘सपनों का सौदागर’ से मिली ‘स्वप्न सुंदरी’ और फिर बाद में ‘ड्रीमगर्ल’ की पहचान उनके साथ ऐसी जुड़ी कि आज भी दर्शकों के लिए वह इन शब्दों का पर्याय के रूप में स्वीकार की जाती हैं. इसका कारण जितना उनका विलक्षण सौंदर्य है, उससे कहीं अधिक रहस्य का वह आवरण, जो उनके व्यक्तित्व से लिपटा रहा है. हेमा मालिनी काफी कम बोलने के लिए जानी जाती रही हैं. इसलिए शायद ही कभी उनके बारे में अधिकृत जानकारी मिल सकी, जिसकी भरपाई गॉसिप से होती रही. हेमा स्वीकार भी करती हैं कि उन्होंने परिवार से बाहर कभी मित्र की तलाश नहीं की.

राजनीति में आने के बाद भी उन्होंने रहस्य के आवरण को कमजोर नहीं होने दिया. शायद लोगों के बीच स्वप्न सुंदरी का सम्मोहन बरकरार रखने के लिए यह आवश्यक भी रहा होगा, लेकिन इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस आवरण का उनकी कार्यक्षमता पर कभी कोई प्रभाव नहीं पड़ा. चाहे सिनेमा हो, नृत्य हो या फिर राजनीति. अन्य फिल्मी सितारों की तरह राजनीति में वह कभी आधे मन से नहीं दिखीं. राज्यसभा में मनोनीत सदस्य के रूप में राजनीति की शुरुआत कर लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करना उनकी कार्यक्षमता को ही प्रदर्शित करता है. गुलजार कहते रहे हैं कि उनके अंदर जैसी एकाग्रता है, उसके लिए असाधारण अनुशासन और दृढ़ संकल्प की जरुरत होती है. कुछ हद तक इसका श्रेय उनकी मां जया चक्रवर्ती को दिया जा सकता है, जिन्होंने बचपन से ही उन्हें पूरे समर्पण के साथ लक्ष्य पर केंद्रित होने की शिक्षा दी.

जया स्वयं संगीत की गहन जानकार और लेखिका थीं. उन्होंने बचपन से ही हेमा को भरतनाट्यम की मंचीय प्रस्तुति देने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे हेमा के शौक को एक पहचान मिलने लगी. बाद के दिनों में हेमा ने कुचिपुड़ी और मोहिनीअट्टम में भी सिद्धहस्तता प्राप्त की. उन्होंने नृत्य के प्रति अपने समर्पण और लगाव को तमाम व्यस्तताओं के बीच भी कभी कम नहीं होने दिया. नृत्य उनके लिए भक्ति है. लोकप्रियता के शिखर पर पहुंची फिल्मी हस्तियों में विरले ही ऐसा देखने को मिलता है कि वे किसी शास्त्रीय कला के प्रति अपनी प्रतिबद्धता कायम रख पाएं, लेकिन हेमा मालिनी अब भी घंटों मंच पर अपने बैले की प्रस्तुति दे सकती हैं.

सिनेमा में भी हेमा मालिनी को शुरुआती मौके उनकी नृत्य प्रतिभा के कारण ही मिले, लेकिन वह दक्षिण भारतीय फिल्मों में छोटी भूमिकाओं के लिए बनी ही नहीं थीं. राज कपूर के साथ 1968 में ‘सपनों का सौदागर’ में मुख्य भूमिका मिलने के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. रेखा, जीनत अमान, परवीन बाबी के दौर में उनकी एक पारिवारिक स्वीकार्यता थी. देव आनंद, राजकुमार, राजेंद्र कुमार, शम्मी कपूर, मनोज कुमार से लेकर धर्मेंद्र, जीतेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और फिर रणधीर कपूर, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे तमाम सितारों के साथ हेमा मालिनी ने लगभग 20 वर्षों में 100 से अधिक फिल्में कीं. यह हेमा के अभिनय की असीमता ही मानी जा सकती है कि उन्होंने सीता और गीता, शोले जैसी फिल्म भी की और किनारा, रिहाई, खुशबू और मीरा जैसी फिल्म भी. हेमा मालिनी स्वाभाविक अभिनेत्री रही हैं. एक बातचीत में उन्होंने कहा था, ‘मैं समझ नहीं सकती कि कैसे कुछ अभिनेता एक ही पात्र को चार या पांच वर्षों तक जी सकते हैं. मैं तो इसे अव्यवहारिक मानती हूं.

आखिर अभिनय तो अभिनय ही है. यह जीवन नहीं हो सकता.’ वास्तव में 1978-79 में मीरा और रजिया सुल्तान दोनों फिल्मों की शूटिंग एक साथ हो रही थी. सुबह वह मीरा के सेट पर पहुंच जातीं, क्योंकि गुलजार काफी सुबह उठ जाते थे और शाम में रजिया सुल्तान के सेट पर, क्योंकि इसमें काफी ज्यादा लाइटिंग रहती थी. वह दोनों पात्र भिन्न युगों के थे, भिन्न स्वभाव के थे, दोनों की संस्कृति अलग थी, भाषा अलग थी, उच्चारण अलग थे, लेकिन हेमा ने दोनों ही भूमिकाओं के साथ न्याय ही नहीं किया, उन्हें कालजयी ऊंचाई भी दी. वास्तव में हेमा मालिनी में कला की एक भूख, एक ललक बचपन से ही दिखती है. सब कुछ सीख लेने की जिद ने ही शायद उन्हें निर्देशन के लिए प्रेरित किया होगा. उन्होंने 1992 में ‘दिल आशनां है’ निर्देशित की, जो शाहरुख खान की पहली फिल्म थी. उन्होंने 2011 में टेल मी ओ खुदा भी निर्देशित की. हेमा मालिनी आज 75 वर्ष की हो रही हैं. विश्वास है, हेमा मालिनी जैसे सक्रिय व्यक्तित्व के लिए यह एक नयी शुरुआत होगी. उनके प्रशंसकों के साथ हम भी कुछ नये बैले, कुछ नयी फिल्मों की प्रतीक्षा में रहेंगे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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