दुनियाभर में कोरोना के अलावा कल जो चर्चा थी, तो वह यह थी कि तेल अबपानी से भी सस्ता हो गया है. आज स्थिति यह है कि तेल की थोक बिक्रीकरनेवाली अमेरिकी कंपनियां खरीदारों को मुफ्त में तेल तो देने का ऑफर करही रही हैं, उसके साथ ढुलाई और भंडारण का खर्च भी उठाने की पेशकश कर रहीहैं. कच्चे तेल की कीमतों में अलग-अलग कारणों से उतार-चढ़ाव का सिलसिलाबहुत पुराना है, लेकिन ऐसा इतिहास में पहली बार है कि दाम शून्य से भीनीचे चले गये हैं. माना जा रहा है कि आगामी कुछ महीनों तक ऐसी स्थिति रहसकती है क्योंकि दुनिया का बहुत बड़ा हिस्सा कोरोना वायरस के संक्रमण सेबचाव के लिए लॉकडाउन में है और औद्योगिक गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं.
जहां लॉकडाउन नहीं है, वहां लोगों के बीच दूरी रखने के निर्देशों के कारणकारोबार मंदा है. विकसित, विकासशील और अविकसित देश एक-समान रूप सेसंक्रमण के फैलाव को रोकने तथा संक्रमितों के उपचार पर पूरा ध्यानकेंद्रित कर रहे हैं. औद्योगिक गतिविधियां थमने का एक कारण यह भी है किकोविड-19 के कहर का सबसे ज्यादा असर शहरी, खासकर बड़े व्यापारिककेंद्रों, क्षेत्रों पर पड़ा है. ऐसे में यह आशंका स्वाभाविक है कि कुछसमय में अगर वायरस पर काबू भी पा लिया जाता है, तब भी काफी देर तकसावधानी बरतने की जरूरत होगी. सामान्य जीवन के अस्त-व्यस्त हो जाने कीवजह से उद्योगों और अन्य कारोबारों को पहले की तरह चला पाना तुरंत संभवनहीं हो सकेगा.
बेरोजगारी, पूंजी डूबने, संरक्षणवादी नीतियों, असुरक्षाका बोध जैसे कारक भी अर्थव्यवस्थाओं के लिए बड़ी चुनौती बन चुके हैं. यहभी ध्यान रखा जाना चाहिए कि तेल के दाम में ऐसी गिरावट की बड़ी मार भलेही अमेरिकी विक्रेता कंपनियों पर पड़ी है, लेकिन इससे तेल उत्पादक देशोंऔर कंपनियों का कारोबार भी फिलहाल चौपट हो गया है. कोरोना वायरस के फैलनेसे पहले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही थी और संक्रमण केअंतरराष्ट्रीय प्रसार के शुरुआती दिनों में सऊदी अरब और रूस की आपसीतनातनी ने तेल की कीमतों को बहुत कम कर दिया था. जब तक इन दोनों समेत तेलउत्पादक देशों के बीच कुछ सहमति बनी, तब तक कोरोना संकट विकराल हो चुकाथा.
भारत समेत कई अर्थव्यवस्थाएं तेल पर टिकी हैं. अनेक देश ऐसे हैं, जोतेल के उत्पादन और बिक्री पर निर्भर हैं. ऐसे में सबके लाभ के लिए क्यास्थितियां बन सकेंगी, अभी यह बड़ा सवाल है. यह भी आशा जतायी जा रही है किवैकल्पिक ऊर्जा का उत्पादन बढ़ेगा और तेल की खपत में धीरे-धीरे कमीआयेगी. ऐसा होता है, तो हमारे दौर की सबसे भयावह समस्या जलवायु परिवर्तनसे निपटने में बड़ी मदद मिल सकती है. पर, इसका एक आयाम यह भी है किविकासशील देशों की वृद्धि दर पर कुछ समय के लिए प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकताहै.