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प्रवासियों को शहरों से कितना लाभ

मलिन बस्तियों में रहनेवालों को तमाम दुश्वारियों का सामना करना होता है, क्योंकि मूलभूत सार्वजनिक सुविधाओं का वहां अभाव होता है.

डॉ इरोल डिसूजा, डायरेक्टर, आइआइएम, अहमदाबाद

editor@thebillionpress.org

क्याग्रामीण प्रवासियों का शहरी इलाकों में प्रवास फायदेमंद है? महामारी की आफत में प्रवासियों का अपने गांवों की तरफ जनसैलाब उमड़ पड़ा. ऐसे में मौका है कि हम इस प्रश्न पर विचार करें. आमतौर पर मान लिया जाता है कि गांवों की गरीबी दूर करने में शहरों की बड़ी भूमिका होती है. लेकिन, वंचित और शोषित प्रवासियों के साथ काम करने का मेरा सीमित अनुभव बताता है कि शहर उन्हें विफल कर देते हैं. शहर उन्हें आमदनी के अवसर तो देते हैं, लेकिन अकुशल प्रवासियों के पीढ़ियों के अतीत से छुटकारा नहीं दिला पाते. ऐसे अधिकांश परिवारों के जीवन स्तर में सुधार नगण्य ही हो पाता है.

यहां तक कि जब जातीय आधार पर उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जाते हैं, तो वह हमेशा सामाजिक या भौगोलिक बदलाव करने में सफल नहीं होते हैं. सामाजिक पृष्ठभूमि, जिसमें धार्मिक और भाषाई आधार भी शामिल है, शहरों में गुणवत्तापूर्ण आवास और स्थान हासिल में करने में अहम होती है. हमारे पास गुजरात और अन्य राज्यों का उदाहरण है, जहां वंचित जातियों या धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपार्टमेंट खरीदने या किराये पर देने से इनकार कर दिया जाता है या उनसे अधिक दाम और किराया वसूला जाता है.

दुनियाभर में शहर कारखानों और औद्योगिकीकरण के केंद्र थे. जैसे-जैसे सड़क नेटवर्क, प्रचालन तंत्र और मालढुलाई का काम आसान हुआ, सामानों और लोगों के परिवहन की लागत कम हो गयी. इससे उद्योगों ने शहरी केंद्रों को खाली करना शुरू कर दिया. वैश्वीकरण ने आपूर्ति शृंखला का भौगोलिक विस्तार किया, जिससे कम लागत में उत्पादन वृद्धि हुई. साथ ही उत्पादों का उत्पादन चक्र छोटा हो गया.

कंपनियों ने प्रतिस्पर्धा के प्रभाव को कम करने के लिए अपने उत्पादों की कार्यप्रणाली में मामूली परिवर्तन करना शुरू दिया. साथ ही उपभोक्ताओं की मांग तेजी से पूरी करने लगे. जिन नौकरियों को स्वचालित (ऑटोमेटेड) किया जा सकता था, वे शहरों में कम होती गयीं और उत्पादन चक्र समय को कम करके आपूर्ति शृंखला के अनुकूल बनाया गया.

ग्राहकों को सुपुर्दगी की गति तेज कर दी गयी. जो नौकरियां शहरी क्षेत्रों में बची रह गयीं, उनके लिए अनस्ट्रक्चर्ड कॉग्निटिव एक्टिविटीज या अनस्ट्रक्चर्ड फिजिकल एक्टिविटीज की जरूरत है. जिन कार्यों के लिए अनस्ट्रक्चर्ड कॉग्निटिव एक्टिविटीज की जरूरत है, जिसमें समस्या समाधान क्षमता, रचनात्मकता तथा अनुभव जैसे कि पेशेवर योग्यता (अकाउंटेंट, बैंकर्स, वकील आदि) और तकनीकी कार्य, वहां उसका ऑटोमेशन करना मुश्किल है.

जो लोग यह कार्य कर रहे हैं, उन्हें शहरों में अच्छा भुगतान मिल रहा है. इसी तरह, जिन कार्यों के लिए अनस्ट्रक्चर्ड फिजिकल एक्टिविटीज जैसे विजुअल तथा भाषा की पहचान, स्थितिजन्य अनुकूलन क्षमता और शारीरिक श्रम जैसे- भोजन बनाने, सर्विस जॉब, आतिथ्य, सफाई कार्य, स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षा से जुड़ी नौकरियां हैं, वहां भी ऑटोमेशन मुश्किल है. ये नौकरियों शहरों में बहुत कम पगार पर चल रही हैं.

एक हद तक ऑटोमेशन कम कौशल वाली नौकरियों का विकल्प होता है. इससे कम कौशल और अधिक शारीरिक श्रम वाली नौकरियों में तनख्वाह कम हो रही है. जबकि कुशल श्रम, जिसमें संज्ञानात्मक गतिविधियां हैं, उनके वेतन में बढ़ोतरी हो रही है. कुशल कामगारों की आमदनी उनकी मजबूत आय की प्रोफाइल बनाती है. उभरते और समृद्ध शहरों ने सेवा वाली औद्योगिकी नौकरियों को खत्म कर दिया और वे उन नौकरियों के लिए अधिक भुगतान कर रहे हैं, जहां स्किल की आवश्यकता है.

स्किल वाले लोगों की अधिक तनख्वाह की वजह से शहरी रीयल एस्टेट के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं, क्योंकि रोजाना लंबे आवागमन से बचने और बेहतर शहरी सुविधाओं की मांग की वजह से वह शहर के केंद्रों में रहना चाहते हैं. अकुशल लोग जो अधिक किराये का भुगतान नहीं कर सकते हैं, उन्हें कहीं और जाना पड़ता है. वे झुग्गियों में या बदतर सड़कों और फुटपाथों पर रहना पर शुरू कर देते हैं. उनकी आय आवासीय किरायों या रीयल एस्टेट कीमतों की बढ़ोतरी के सापेक्ष कम रहती है.

शहरों में जगह और ढांचागत सुविधाओं के सीमित होने से शहरी जमीनों और मकानों की कीमतें अकुशल श्रमिकों की आमदनी के मुकाबले तेजी से बढ़ी हैं. प्रवासियों और जनसंख्या बढ़ोतरी के कारण शहरों की आबादी में वृद्धि हुई है. जनांकिकी बदलाव का पहला चरण वह होता है, जब मृत्युदर में कमी आने से स्वाभाविक तौर पर शहरी आबादी में वृद्धि होती है. वृद्धि का दूसरा कारण प्रवासियों का आगमन है.

व्यापक टीकाकरण, कई गंभीर बीमारियों के लिए एंटीबॉयटिक की खोज और मेडिकल सेवाओं की सुलभता के कारण विकासशील देशों के मृत्युदर आंकड़ों में तेजी से कमी आयी है. दुनियाभर में देखा गया है कि मलिन बस्तियों में मृत्युदर अन्य जगहों की तरह ही कम हुई है, लेकिन मलिन बस्तियों में जन्मदर में तेज वृद्धि हुई है, जो बढ़ती आबादी का स्वाभाविक कारण है. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं से उच्च जीवन प्रत्याशा ही मलिन बस्तियों की बढ़ोतरी और सघनता का कारण बन रही है.

मलिन बस्तियों में रहनेवालों को तमाम दुश्वारियों का सामना करना होता है, क्योंकि मूलभूत सार्वजनिक सुविधाओं का वहां अभाव होता है. खराब आवासीय स्थिति के कारण जीवनयापन मुश्किलों से घिरा होता है, इससे पड़ोस और वह स्थान भी अव्यवस्थित हो जाता है. यार्ड टैप से पाइपलाइन वाले पानी की व्यवस्था या घर में कनेक्शन, व्यक्तिगत शौचालय, आवागमन के लिए पक्की सड़कें, जलनिकासी की व्यवस्था, मकान की बाहरी दीवार व फर्श, जमीन हड़पने वाले माफियाओं से सुरक्षा और कार्यस्थल तक पहुंचने में लगनेवाले समय तथा खर्च आदि बातों का भी लोगों पर असर पड़ता है.

इन तमाम असुविधाओं के साथ-साथ कई व्यक्तियों को एक ही स्थान को साझा करना होता है. गरीबों के लिए किराया अधिक है और जिन हालात में वे रहते हैं उसके लिए उन्हें अधिकतम भुगतान करना पड़ता है. जो लोग इस भुगतान को कर पाने में भी सक्षम नहीं हैं, वे खुले आसमान के नीचे फुटपाथों पर शरण लेते हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)अगले अंक में जारी…

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