आप तब तक जीवित हैं, जब तक आपके जीवन में एक उच्च उद्देश्य है. हम जीवन में उद्देश्य लाएं, जीवन में हमें क्या चाहिए यह निश्चित करें और उस उद्देश्य को पूरा करें. एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा- गुरुदेव क्या मैं जीवित हूं? गुरु ने प्रसन्नता से उत्तर दिया- तुम सचमुच भाग्यशाली हो कि तुम्हारे मन में यह प्रश्न तो उठा. क्योंकि अज्ञानी के मन में ऐसा प्रश्न ही नहीं उठता.
उसे यह भी संदेह नहीं होता कि वह मरा हुआ है या जीवित है. क्योंकि वह सांस ले सकता है, खा सकता है, इच्छा कर सकता है और अपनी इच्छा पूरी करने के लिए परिश्रम कर सकता है, इसलिए उसे लगता है कि वह जीवित है. यदि केवल सांस लेना ही जीना है, तो आप में और गोभी में क्या अंतर है? वे भी सांस ले सकते हैं. यदि आप यह कहें कि मैं तो इच्छा कर सकता हूं और अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मेहनत भी कर सकता हूं, तो आप में और जानवरों में क्या अंतर है?
उनके मन में भी इच्छाएं पैदा होती हैं, वे भी अपनी वृत्तियों को पूरा करने का प्रयास करते हैं और अपने तरीके से संतुष्टि प्राप्त कर लेते हैं. केवल सांस लेना और खाना ही मानव जीवन नहीं हो सकता, वह शायद वनस्पति या पशु का जीवन हो सकता है. मानव जीवन इससे कहीं अधिक है. चैतन्य, जो जन्म से पहले मौजूद था और मृत्यु के बाद भी मौजूद रहेगा, इस मूल तत्व को जानने में ही मानव जीवन की पूर्णता है.
क्या मैं जो जीवन जी रहा हूं उसे सही अर्थ में मानव जीवन कहा जा सकता है? मन में इस प्रश्न का उठना अध्यात्म की शुरुआत है. यह प्रकाश की पहली किरण है, जिसके बिना आपके जीवन में ज्ञान का सूर्य उदित नहीं हो सकता. इस प्रश्न के साथ आपका एक नया जन्म हुआ है. इस नये जीवन का आपको वरदान मिला है. यह आपका वास्तविक जन्म है. यह आपके जीवन की सही शुरुआत है. धन्य है वह, जिसके मन में यह प्रश्न उठा है. एक बार भी अगर यह प्रश्न उठा, तो उसके पश्चात वह अज्ञानता की निद्रा में अधिक समय नहीं रह सकता.