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प्लास्टिक की अनदेखी के खतरे

हम प्लास्टिक व पॉलिथीन इस्तेमाल को कुछ हद तक नियंत्रित करने में तो सफल रहे हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल को खत्म करने में कामयाबी नहीं मिली है. प्लास्टिक और पॉलिथीन पर प्रतिबंध के सफल न हो पाने का एक सबसे बड़ा कारण विकल्पों की कमी है. इस पर प्रतिबंध तभी प्रभावी हो सकता है, जब इसके विकल्प सुगम व सस्ते हों.

वैसे तो हर दिन कोई न कोई दिवस मनाया जाता है, लेकिन तीन जुलाई का दिन अहम है. इस दिन अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलाना है. प्लास्टिक मुक्त दिवस की शुरुआत यूरोप से हुई थी और अब यह एक वैश्विक पहल बन गयी है. दुनियाभर में प्लास्टिक के कचरे के ढेर लगातार बढ़ते जा रहे हैं. यह पर्यावरण से लेकर स्वास्थ्य हर चीज को नुकसान पहुंचा रहा है. बिगड़ते हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि माइक्रो प्लास्टिक के कण मानव शरीर में प्रवेश कर जा रहे हैं. हम इसके बारे में जागरूक नहीं हैं और अक्सर इसके दुष्परिणामों की अनदेखी कर दे रहे हैं. हमने लंबे समय से प्लास्टिक को हर रूप में अपनाया है. इसे 20वीं सदी में विज्ञान का चमत्कार माना जाता था, लेकिन 21वीं सदी आते-आते यह चमत्कार हमारे लिए अभिशाप बन गया.

दरअसल, सामान्य-सी दिखने वाली पॉलिथीन और प्लास्टिक हम सबके जी का जंजाल बन गयी है. प्लास्टिक का एक रूप पॉलिथीन भी है. सामान्य-सी दिखने वाली और बहुउपयोगी पॉलिथीन पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद खतरनाक है और इसमें जहर घोल रही है. इसने इंसान, जानवर और पेड़-पौधों, किसी को नहीं छोड़ा है. प्रकृति के लिए यह अत्यंत घातक है. माना जाता है कि पॉलिथीन अजर अमर है और इसको नष्ट होने में एक हजार साल लग जाते हैं. इसके नुकसान की लंबी-चौड़ी सूची है. जलाने पर इससे ऐसी गैस निकलती हैं, जो जानलेवा होती हैं. यह जल चक्र में बाधक बन कर बारिश को प्रभावित करती है. नदी-नालों को अवरुद्ध करती है. खेती की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करती है. पशु, खासकर गायें इसे खा जाती हैं और यह जाकर उनकी आंतों में अटक जाती है और उनकी मौत का कारण बनती है. और तो और, प्लास्टिक दूध और अन्य खाद्य पदार्थों के माध्यम से हमारे खून तक में पहुंचने लगा है.

विशेषज्ञों का आकलन है कि औसतन एक भारतीय हर साल करीब 10 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है. एक आकलन के अनुसार देश में हर साल लगभग 35 लाख टन घरेलू प्लास्टिक का कचरा पैदा हो रहा है. आप देखेंगे कि हर शहर में प्लास्टिक के कचरे का अंबार लगा रहता है. लाखों टन प्लास्टिक कचरे को खाली जगहों पर फेंक दिया जाता है, जहां वे छोटे माइक्रोप्लास्टिक में विघटित हो जाते हैं. इसके बाद यह सब्जियों व खाद्यान्नों के माध्यम से मानव खाद्य शृंखला में प्रवेश कर जाता है. पर्यावरणविदों का कहना है कि रोजाना कई माध्यमों, जैसे सांस, भोजन या फिर त्वचा के संपर्क से, प्लास्टिक के सूक्ष्म अंश हमारे संपर्क में पहुंच रहे हैं. हम रोजाना प्लास्टिक खा रहे हैं. यह हमारे खाने-पीने की वस्तुओं तक में प्रवेश कर गया है. यह जान लीजिए कि प्लास्टिक महज कूड़ा नहीं है, बल्कि यह एक जहरीला रसायन है, जो धीरे-धीरे खाने-पीने की वस्तुओं के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करता जा रहा है. हम लोग अक्सर खाने की वस्तुएं पॉलिथीन में रख लेते हैं, जिससे कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा बढ़ जाता है.

अपने देश में स्वच्छता और प्रदूषण का परिदृश्य वर्षों से निराशाजनक रहा है. इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नहीं है. बिहार और झारखंड के कई शहरों में हालात उपयुक्त नहीं हैं. बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में पॉलिथीन पर प्रतिबंध है. एक जुलाई, 2022 से देशभर में एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लागू है. एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर लगा राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध, दो दशक के लंबे प्रयास के बाद लग पाया है. जैसा कि नाम से जाहिर है, यह प्रतिबंध उन प्लास्टिक उत्पादों पर है, जो एक बार उपयोग किये जाते हैं और फेंक दिये जाते हैं. वैसे तो देश में हर प्रतिबंध पिछले की तुलना में अधिक कठोर रहा है, लेकिन पिछले दो दशकों के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं. हम प्लास्टिक व पॉलिथीन इस्तेमाल को कुछ हद तक नियंत्रित करने में तो सफल रहे हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल को खत्म करने में कामयाबी नहीं मिली है. प्लास्टिक और पॉलिथीन पर प्रतिबंध के सफल न हो पाने का एक सबसे बड़ा कारण विकल्पों की कमी है. इस पर प्रतिबंध तभी प्रभावी हो सकता है, जब इसके विकल्प सुगम व सस्ते हों. यह अपने आप में बड़ी चुनौती है.

बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक काफी महंगा है. सड़क किनारे समान बेचने वालों के लिए यह महंगा सौदा है. इससे उनकी लागत काफी बढ़ जाती है. इसके अलावा इसमें गर्म खाना और पेय पदार्थ परोसा नहीं जा सकता है. कागज से तैयार होने वाले अधिकांश उत्पादों की कीमत प्लास्टिक से कहीं अधिक है. साथ ही कागज से बने सामान पर्यावरण पर और अधिक बोझ डालते हैं. अधिकांश पेपर कप की मजबूती के लिए उसके साथ प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है. इस वजह से इसका कचरा नॉन-रीसाइकिलेबल हो जाता है.

एकल उपयोग प्लास्टिक के खिलाफ जंग को सफल बनाने के लिए हम सबको आगे आना होगा और यह तय करना होगा कि पॉलिथीन व एकल प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करेंगे, तभी यह प्रतिबंध प्रभावी होगा. यह सच्चाई है कि इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नजर नहीं आती है, लेकिन अब समय आ गया है कि जब हम इस विषय में संजीदा हों, लेकिन समाज में भी इसको लेकर कोई विमर्श नहीं हो रहा है. कोई चिंता नहीं जतायी जा रही है. हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने की स्थिति किसी भी देश के लिए बेहद चिंताजनक हैं. यह जान लीजिए कि जब तक राज्य के लोग साफ-सफाई और पर्यावरण के प्रति चेतन नहीं होंगे, तब तक कोई उपाय कारगर साबित नहीं होने वाला है. कूड़े का उदाहरण हमारे सामने है.

हम रास्ता चलते कूड़ा सड़क पर फेंक देते हैं. उसे कूड़ेदान तक नहीं पहुंचाते. आज समय की मांग है कि हम इस विषय में संजीदा हों. केवल नगर निगमों के सहारे यह काम नहीं छोड़ा जा सकता है. कई राज्यों में प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन जब तक जनता पॉलिथीन मुक्त मुहिम से नहीं जुड़ी, तब तक योजना सफल नहीं हुई. अपने पर्यावरण को बचाना एक सामूहिक जिम्मेदारी है. इसकी अनदेखी की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. हमें पॉलिथीन और एकल इस्तेमाल की प्लास्टिक को नियंत्रित करने के प्रयासों में योगदान करना होगा, तभी स्थितियों में सुधार लाया जा सकता है.

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