महंगाई की उच्चतर दरें लोगों के रोजाना के जीवन पर असर डाल रही हैं. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट दर्शाती है कि बीते वर्ष की तुलना में मार्च, 2022 में वैश्विक मुद्रास्फीति दर में लगभग तीन गुने की वृद्धि हुई है. कोविड-19 के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान से उत्पन्न हुई यह समस्या यूक्रेन में जारी लड़ाई के कारण और भी गंभीर हो गयी है. इससे आवश्यक सामानों, ईंधनों और खाद्यान्नों की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़त हुई है.
हालांकि, महंगाई का असर एक समान नहीं होता, क्योंकि जीवनशैली, उपभोग आदतें और वित्तीय स्थिति सबकी एक जैसी नहीं होती. विश्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, कम आमदनी वाले परिवारों पर महंगाई की चोट ज्यादा होती है, वहीं इससे संपत्ति मालिकों को फायदा हो सकता है. इसी तरह हर आयु वर्ग पर इसका अलग-अलग असर होता है.
उम्रदराज, विशेषकर अपनी बचत या मामूली पेंशन पर आश्रित लोगों के लिए यह आफत से कम नहीं है. पेंशन पर निर्भर कम लोग ही अपने स्वास्थ्य देखभाल का खर्च उठा पाते हैं, जबकि 60 साल या उससे ऊपर के लगभग 1.6 करोड़ लोग, जो इस आयु वर्ग की आबादी का 10 प्रतिशत हैं, उनके पास आवास जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं है. अप्रैल में भारत की हेडलाइन मुद्रास्फीति आठ साल के उच्चतम स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गयी.
गेहूं, खाद्य तेलों, सब्जियों, फलों, मीट, चाय आदि की कीमतें बीते एक वर्ष में 10 से 25 प्रतिशत तक बढ़ गयी हैं. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इन खाद्य वस्तुओं की लगभग आधी हिस्सेदारी है. वहीं रसोई गैस और पेट्रोल के दामों में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इस बढ़ोतरी के असर से अब कोई अछूता नहीं है. देश में 60 वर्ष और उससे ऊपर की लगभग 13.8 करोड़ आबादी में करीब नौ करोड़ लोग ऐसे हैं, जो जीवनयापन के लिए काम करने को विवश हैं.
महंगाई के मिजाज को देखते हुए केंद्रीय बैंक ने सितंबर तक इसके बने रहने का अनुमान जताया है. इससे बिना आमदनी या कमतर आय वाले लोगों की मुश्किलें और बढ़ेंगी. सेवानिवृत्त लोग अपनी दशकों की बचत गंवाने को मजबूर हैं. दीर्घावधि जमा पर औसत ब्याज दर बीते तीन वर्षों में 8.5 प्रतिशत से गिरकर छह प्रतिशत पर आ गयी है, यानी यह हेडलाइन मुद्रास्फीति से नीचे है.
बचत की चिंताओं को देखते हुए कुछ पेंशनभोगियों ने इक्विटी और म्युचुअल फंड जैसे जोखिम भरे निवेश का भी रुख किया है, लेकिन, दो वर्षों के अच्छे रिटर्न के बाद स्टॉक बेंचमार्क इंडेक्स जूझ रहे हैं, जो इस साल छह प्रतिशत से नीचे हैं. महामारी से राहत पहुंचाने के लिए सरकार मुफ्त अनाज जैसे कार्यक्रम चला रही है. साथ ही, रसोई गैस और डीजल-पेट्रोल के करों में कटौती भी की जा रही है, लेकिन ऐसे उपायों से कितनी राहत मिल पायेगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है.