देश के कई हिस्सों में कमजोर मानसून के कारण खरीफ फसलों की कम बुवाई हुई है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने जानकारी दी है कि पांच अगस्त तक 274.30 लाख हेक्टेयर में खरीफ की बुवाई हुई है, जो पिछले साल इसी अवधि में हुई बुवाई से 13 प्रतिशत कम है. इस कमी का एक चिंताजनक पहलू यह है कि यह गिरावट उन राज्यों में आयी है, जो चावल का सबसे अधिक उत्पादन करते हैं. इनमें पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना शामिल हैं.
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के शुरू में जाड़े के मौसम में तापमान ऐतिहासिक रूप से अधिक रहने के कारण गेहूं का उत्पादन कम हुआ है. अब चावल का उत्पादन घटने की चिंता पैदा हो गयी है. यह प्रभाव जलवायु परिवर्तन का सीधा परिणाम है. एक ओर देश में कुछ जगहों पर अपेक्षित मात्रा में बारिश नहीं हो रही है, वहीं अनेक स्थानों पर अतिवृष्टि हो रही है. बादल फटने, अचानक बहुत अधिक पानी बरसने तथा भूजल के स्तर में गिरावट जैसे कारक भी खेती को प्रभावित कर रहे हैं. कई महीनों से अनाज समेत कई चीजों के दाम लगातार बढ़े हैं और आगामी महीनों में मुद्रास्फीति से राहत की उम्मीद भी नहीं है.
पहले माना जा रहा था कि अच्छा मानसून महंगाई की रोकथाम में सहायक होगा, लेकिन अब ऐसा होने की संभावना क्षीण हो गयी है. मुद्रास्फीति का एक बड़ा कारण रूस-यूक्रेन युद्ध और आपूर्ति शृंखला में अवरोध है. दुनिया के कई हिस्सों में अनाज न केवल बहुत महंगा है, बल्कि अनेक देशों में खाद्य संकट की आशंका भी गहराती जा रही है. हमारे देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ही मई में गेहूं के निर्यात पर रोक लगायी गयी थी. यदि चावल के उत्पादन में भी कमी आयेगी, तो यह रोक चावल पर भी लगानी पड़ सकती है.
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हमारा देश चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है और वैश्विक चावल बाजार में हमारी हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है. भारत में उत्पादन घटने से वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न की और अधिक कमी हो सकती है. उल्लेखनीय है कि महामारी के दौरान अस्सी करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है. इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत भी राशन मुहैया कराया जा रहा है. बाजार में अनाज की कीमतें नियंत्रण में रहें, इसके लिए भी जरूरी है कि समुचित आपूर्ति बनी रहे. ऐसे में खरीफ की कम बुवाई चिंता का बड़ा कारण है.
इससे किसानों की आमदनी पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किलें पैदा होंगी. चावल उत्पादक राज्यों में बारिश में कमी औसतन 40 प्रतिशत के आसपास है. फसल पर असर के साथ यह कमी भूजल के स्तर को भी प्रभावित करेगी क्योंकि उनका समुचित रिचार्ज नहीं होगा और साथ ही अधिक दोहन भी होगा. आगामी दिनों में खाद्यान्न को लेकर जो भी स्थिति बने, उससे निपटने की तैयारी अभी से करनी होगी.