शशांक, पूर्व विदेश सचिव
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लेह यात्रा का महत्व इसलिए ज्यादा है कि उनकी यात्रा से पहले रक्षा मंत्रालय द्वारा जरूरी अस्त्र-शस्त्र की खरीद के लिए बहुत बड़े पैकेज को स्वीकृति मिली थी. इससे पहले रक्षा मंत्री के लेह जाने की बात हो रही थी, लेकिन अचानक प्रधानमंत्री लेह चले गये. उनके यूं अचानक लेह जाने से सीमा पर तैनात हमारे सैनिकों और सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ेगा. प्रधानमंत्री की यह नीति रही है कि कितनी भी मुश्किल जगह क्यों न हो, वे समय मिलते ही सीधा उस जगह पहुंच जाते हैं. ग्यारह हजार फीट की उंचाई पर जाने के लिए उन्होंने कोई तैयारी नहीं की. वहां उन्होंने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों से मुलाकात की और अस्पताल में भर्ती घायल सैनिकों का हालचाल पूछा.
लेह में प्रधानमंत्री ने कहा कि विस्तारवाद की नीतियां अब नहीं चलेंगी, अब विकासवाद चलेगा. एक तरीके से चीन व पाकिस्तान जैसे हमारे पड़ोसी देशों, जो हमेशा अपनी सीमाओं का विस्तार करने की कोशिश में लगे रहते हैं, का नाम लिये बिना प्रधानमंत्री ने उन्हें एक सीधा संदेश दिया है. प्रधानमंत्री ने खासतौर से चीन के लिए यह संदेश दिया है कि वह अपने यहां मानवाधिकार की स्थिति सुधारे और अपनी जनता को ज्यादा सहूलियत दे, क्योंकि चीन से लगातार खबरें आती रहती हैं कि उसने अपने करीब दस लाख लोगों को डिटेंशन सेंटर में बंद कर रखा है.
इससे पूरे विश्व को यह संदेश जायेगा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जो हमेशा अपने पड़ोसी और सभी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाना और उनके साथ मिलजुल कर रहना चाहता है, लेकिन यदि विस्तारवादी नीतियों के तहत कोई देश उसके खिलाफ कदम उठाने की कोशिश करता है, तो भारत उसका जवाब देना भी जानता है. यह एक बहुत बड़ा संदेश है हमारी जनता के लिए भी, सैनिकों के लिए भी और विश्व के लिए भी.
चीन के साथ हमारी राजनयिक या सैन्य अधिकारी स्तर पर जो बैठकें होती हैं, उन पर रोक नहीं लगी है. वह प्रक्रिया जारी रहेगी, लेकिन यह भी दिखाना है कि भारत को चीन कमजोर न समझे, जैसा कि वह अब तक सोचता आया है कि भारत एक कमजोर देश है और आसपास के कमजोर देशों की तरह उसे भी दबाया जा सकता है. चीनी मीडिया बार-बार 1962 का हवाला देकर इसे ही जताने की कोशिश कर रहा था. इन अखबारों को देख कर ऐसा लगता था, जैसे चीन के लोग 1962 के बाद से आगे बढ़े ही नहीं हैं. विश्व के जो मौजूदा हालात हैं, उनका उन्होंने कभी अध्ययन ही नहीं किया है. इसलिए उन्हें अब की स्थितियों से अवगत कराना आवश्यक था.
प्रधानमंत्री के लेह जाने से यह संदेश गया है कि भारत कमजोर नहीं, बल्कि एक मजबूत देश है. वह विकास की नीति पर आगे बढ़ रहा है, आत्मनिर्भर बन रहा है. देश के विकास के लिए उसे जो भी कदम उठाना होगा, वह उठायेगा. प्रधानमंत्री ने अप्रत्यक्ष तौर पर यह भी कहा है कि भारत में चीन समेत दूसरे देशों से जो भी वस्तुएं आती थीं, उनके संबंध में यदि भारत कोई निर्णय लेता है, तो वह उसके विकास के लिए होगा. बातों-बातों में प्रधानमंत्री ने इसे भी न्यायोचित ठहरा दिया है.
इस यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि चीन को शीर्ष स्तर पर अनेक संकेत दिये गये हैं. चीन के लिए भी एक मौका है. वह इस बात को समझे कि भारत शीर्ष स्तर पर वर्तमान मामले का मूल्यांकन कर रहा है. इसलिए भारत के साथ उसकी जो भी तनातनी चल रही है, उसे वह खत्म करे. भारत ने संकेतों में चीन को यह भी इंगित करने का प्रयास किया है कि भारत के साथ जो उसकी वार्ता जारी है, वह अब वह शीर्ष स्तर पर पहुंच गयी है और अब चीन को भी शीर्ष स्तर पर निर्णय लेना होगा. भारत के साथ वह जो भी वादा करता है, उसे निभाना होगा और तनातनी को रोकना होगा.
भारत ने कह ही दिया है कि वह अच्छी तरह बात करता है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक मजबूत देश नहीं है. कई अहम देश एक-एक कर भारत के साथ जुड़ रहे हैं. भारत ने यह भी जता दिया है कि उसने शांति का जो रास्ता अपनाया है, उस पर वह प्रतिबद्धता के साथ अडिग है. वर्तमान तनाव के लिए चीन को जवाब देना होगा. अभी एक त्वरित प्रतिक्रिया चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की आयी है, लेकिन इस मामले को चीन को शीर्ष स्तर पर देखना चाहिए और अपने विचार सामने रखने चाहिए, भले ही वह कुछ समय बाद ऐसा करे.
जब चीन की तरफ से संदेश आयेगा, तभी हमें पता चलेगा कि उसका क्या रवैया है और आगे हमें क्या करना है. यह सच है कि चीन अपने सभी पड़ोसी देशों या पड़ोस में जहां-जहां उसके मतभेद हैं, उनके साथ सख्ती से निबटना चाहता है. पाकिस्तान और नेपाल को छोड़ दिया जाए, तो उसके संबंध सभी पड़ोसियों के साथ खराब ही हैं. ऐसे में उसे शीर्ष स्तर पर यह संदेश दिया गया है कि सख्ती से निबटनेवाली चीन की नीति भारत के साथ नहीं चलनेवाली है. अब यह देखना है कि चीन का रूख क्या होता है.
(बातचीत पर आधारित)