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चीनी बैलून प्रकरण के मायने

एक बड़ी समस्या गुब्बारों की ऊंचाई को लेकर है. इस संबंध में उड्डयन के जो अंतरराष्ट्रीय नियम और समझौते हैं, उनमें बैलूनों को लेकर स्पष्टता नहीं है, लेकिन यह तो स्पष्ट है कि अगर किसी देश की कोई भी वस्तु किसी देश की वायु सीमा में बिना अनुमति के प्रवेश करती है

अमेरिकी वायु सीमा में चीन के एक विशाल बैलून को गिराये जाने की घटना ने स्वाभाविक रूप से दुनिया का ध्यान खींचा है. लंबे समय से अनेक कामों, जैसे- पर्यावरण और जलवायु संबंधी जानकारी जुटाने के लिए गुब्बारों का प्रयोग होता रहा है और सभी बड़े देशों ने ऐसा किया है. जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में बैलून का इस्तेमाल किया था. अमेरिका ने भी ऐसा किया है, लेकिन चीन ने जासूसी और सामरिक ठिकानों की जानकारी जुटाने के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है.

जब अमेरिका में चीनी गुब्बारे को देखा गया, तो कई दिन तक वहां भी असमंजस की स्थिति रही थी और बाद में उसे नष्ट किया गया. चीन ने भी इस संबंध में सही जानकारी नहीं दी. अगर हम चीन की बात सही भी मान लें कि इस बैलून का मकसद मौसम से जुड़ी सूचनाएं जमा करना था और यह रास्ता भटक गया था, तो उसे यह सब पहले ही अमेरिका और अन्य देशों को बता देना था, जहां इसे देखा गया. अब ऐसे बैलून अत्याधुनिक तकनीक से लैस होते हैं और रियल टाइम में अपने कंट्रोल सेंटर को सूचनाएं भेजते रहते हैं. कई देश ऐसे बैलूनों का उपयोग कर रहे हैं.

इस संबंध में एक बड़ी समस्या गुब्बारों की ऊंचाई को लेकर है. इस संबंध में उड्डयन के जो अंतरराष्ट्रीय नियम और समझौते हैं, उनमें बैलूनों को लेकर स्पष्टता नहीं है, लेकिन यह तो स्पष्ट है कि अगर किसी देश की कोई भी वस्तु किसी देश की वायु सीमा में बिना अनुमति के प्रवेश करती है, तो इसे उस देश की संप्रभुता का उल्लंघन माना जाता है. चीन ने कहा है कि बैलून अपने निर्धारित रास्ते से भटक गया था. ऐसा अगर होता है, तो उस देश को इस संबंध में सूचना तुरंत संबंधित देश को देनी चाहिए.

ऐसा नहीं हुआ, तो अमेरिका ने उसे मार गिराया. कनाडा ने भी यही कदम उठाया है. इस तरह की बातें कई महीने से सुनने में आ रही हैं. शायद एक चीनी गुब्बारा हमारे अंडमान और निकोबार क्षेत्र के ऊपर से भी गया था. यह हमें समझना होगा कि चीन कोई भी काम निर्दोष भावना से नहीं करता है. उसके पीछे एक योजना होती है. अगर चीन पर्यावरण और जलवायु से संबंधित कोई शोध कर रहा है, तो वह इसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग से भी कर सकता है, क्योंकि इससे पूरी दुनिया को लाभ हो सकता है. अमेरिका और चीन के बीच तनाव के बावजूद अनेक क्षेत्रों में सहयोग रहा है. उदाहरण के लिए वुहान प्रयोगशाला को लिया जा सकता है.

इस प्रकरण के समय को भी देखा जाना चाहिए. जब यह गुब्बारा अमेरिका वायु सीमा में देखा गया था, उसी दौरान अमेरिकी विदेश सचिव एंथोनी ब्लिंकेन को चीन की यात्रा करनी थी. इस मुद्दे के चलते उन्होंने यह दौरा रद्द कर दिया. मेरा मानना है कि चीन ऐसे में जान-बूझकर यह नहीं करता, क्योंकि वह चाहता था कि ब्लिंकेन की यात्रा हो. जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई थी, तो दोनों ने यह तय किया था किसी भी मसले को बातचीत से सुलझाया जायेगा,

पर कुछ लोग मानते हैं कि चीन इस दौरे को स्थगित करना चाहता था, लेकिन यह गुब्बारा तो कई दिनों से इधर-उधर घूम रहा था. जिस तरह से कई दिनों के बाद इसे गिराया गया और मामले को तूल दिया गया, उससे एक और बात निकलती है. राष्ट्रपति बाइडेन का ‘स्टेट ऑफ यूनियन’ संबोधन भी बीते दिनों हुआ. पूरे भाषण में मुख्य रूप से देश के विकास के बारे में बोला गया और चीन एवं रूस को लेकर चंद बातें ही कही गयीं. चीन के संबंध में उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका की संप्रभुता पर हमला हुआ, तो उसका जोरदार जवाब दिया जायेगा. इसके लिए गुब्बारा एक मददगार कारक बना.

इसी प्रकार चीन ने भी शुरू में बहुत धीमे अंदाज में प्रतिक्रिया दी. उसने कहा कि बैलून को गिराकर अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया गया. उसने यह नहीं कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों की अवहेलना की गयी, क्योंकि उसे पता है कि कोई भी संप्रभुता की रक्षा के लिए ऐसी कार्रवाई कर सकता है. मेरा मानना है कि दोनों देशों के बीच आपसी भरोसे की बड़ी कमी है और प्रतिस्पर्द्धा तो है ही. मुख्य बात यह है कि अमेरिका चाहता है कि चीन खुले तौर पर रूस की मदद न करे.

इसीलिए वह चीन से बात करना चाहता है. साथ ही, वह यह भी चाहता है कि चीन इधर-उधर फंसा भी रहे. बहरहाल, अमेरिका और चीन के बीच जो भी स्थिति हो, भारत को इस प्रकरण को पैनी निगाह से देखना चाहिए. मेरा हमेशा से मानना रहा है कि चीन भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है और रहेगा. हालांकि दोनों देश संवाद और कूटनीति की बात करते हैं और यह ठीक भी है, लेकिन चीनी चुनौती को लेकर हमें सचेत रहना होगा. अंडमान के ऊपर बैलून दिखना, कुछ समय पहले भारत के समुद्री तटों के निकट से उसके जासूसी जहाजों का गुजरना, पाकिस्तान की ओर से ड्रोन आना आदि घटनाएं हमें आगाह करती हैं.

हम किसी भी स्तर पर अपनी सुरक्षा और सजगता को लेकर निश्चिंत नहीं रह सकते हैं. ये बैलून एक प्रकार के सैटेलाइट हैं. अंडमान में हमने अपना संयुक्त सैन्य कमान बनाया है. उसके ऊपर से बैलून का गुजरना निश्चित ही एक गंभीर मामला है और चीन ऐसी हरकतें करता रहेगा. जहां तक अमेरिका और चीन की बात है, तो दोनों देश आपसी तनाव को फिलहाल एक सीमा से आगे नहीं बढ़ने देंगे. वे संघर्ष की स्थिति नहीं बनने देंगे. यह दोनों देशों की समझ का नहीं, बल्कि मजबूरी का मामला है.

अभी कुछ दिन से खबरें आ रही हैं कि अमेरिका में तीन-चार अनआइडेंटिफाइड ऑब्जेक्ट गिराये गये हैं. चीन के ऊपर भी ऐसी चीज दिखने की बातें हैं. जिस तरह अमेरिका ने प्रतिक्रिया देने में देरी की है, उसे उनकी सुरक्षा की कमी भी कही जा सकती है. अब देखना यह है कि अमेरिकी विदेश सचिव ब्लिंकेन कब चीन जाते हैं और दोनों देशों के बीच क्या बात होती है,

लेकिन दुनिया को इस पूरे प्रकरण को ऐसे भी देखना चाहिए कि इस संबंध में एक ठोस अंतरराष्ट्रीय समझदारी बने तथा उड्डयन से संबंधित कानूनों में अत्याधुनिक तकनीक से लैस सैटेलाइट जैसे गुब्बारों के लिए भी स्पष्ट प्रावधान हों, लेकिन यहां यह सवाल है कि क्या ताकतवर देश इसके लिए तैयार होंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि इस प्रकरण के बाद इस संबंध में चर्चाएं जरूर शुरू होंगी और अगर इनकी पुनरावृत्ति होती है, तो कुछ कदम उठाना ही होगा.

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