जांच व इलाज जरूरी
उपराज्यपाल ने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) प्रमुख की हैसियत से निर्देश दिया है कि बाहरी राज्य के किसी व्यक्ति को इलाज से मना न किया जाये.
दिल्ली के कई अस्पतालों द्वारा कोविड-19 के इलाज से इनकार किये जाने के बाद एक 80 वर्षीय बुजुर्ग ने दिल्ली हाइकोर्ट में याचिका दायर कर दी. मामले की सुनवाई हो पाती है, इससे पहले ही उनका निधन हो गया. तेज बुखार और कोरोना संक्रमण से जूझ रहे अपने पिता के इलाज के लिए एक अन्य महिला एलएनजेपी अस्पताल के बाहर गुहार लगाती रह गयी. घंटे भर बाद पिता का शव लेकर उसे लौटना पड़ा. दिल्ली में कोरोना की जांच और इलाज के लिए निकले लोगों को ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ रहा है.
सरकार एवं स्वास्थ्य महकमे की उदासीनता और लापरवाही चिंताजनक है. दिल्ली में पिछले 10 दिनों से रोजाना संक्रमण के औसतन 1000 से अधिक मामले आये हैं. जांच के अनुपात में संक्रमितों की संख्या दिल्ली में सर्वाधिक हो चुकी है. इस बीच केजरीवाल सरकार ने कहा कि राज्य के सभी अस्पतालों में केवल दिल्लीवासियों का ही इलाज होगा. उनके मुताबिक बाहरी मरीजों के कारण अस्पतालों पर बोझ बढ़ रहा है.
हालांकि, सरकार के इस विवादास्पद और अतार्किक फैसले को उपराज्यपाल ने समय रहते बदल दिया है. उपराज्यपाल ने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) प्रमुख होने की हैसियत से निर्देश दिया है कि बाहरी राज्य के किसी व्यक्ति को इलाज से मना न किया जाये. वर्तमान में दिल्ली सरकार के पास आयुष अस्पतालों समेत कुल 38 स्वास्थ्य सुविधा केंद्र हैं, जिसकी संयुक्त बिस्तर क्षमता करीब 11,000 है. दिल्ली सरकार के कोविड-19 के चार विशेष अस्पतालों के 4176 बिस्तरों में से 2915 बिस्तर रविवार शाम तक रिक्त थे.
सरकारी और निजी अस्पतालों के 8,049 बिस्तरों में से 3799 खाली थे. केजरीवाल ने ही 18 मई को कहा था कि दिल्ली सरकार 50 हजार सक्रिय मामलों को संभालने में सक्षम है. दिल्ली-एनसीआर में प्रवासियों की बड़ी आबादी रहती है. हालांकि, तालाबंदी के कारण बेरोजगार हुए तीन लाख से अधिक कामगारों ने अपने घरों का रुख कर लिया है. दिल्ली सरकार के ही मुताबिक साढ़े चार लाख से अधिक प्रवासियों ने घर जाने के लिए पंजीकरण कराया है. मजदूरों के पलायन से उद्योगों का संकट गहरा रहा है.
दूसरी ओर, संक्रमण बढ़ रहा है और उससे अधिक लोगों में जांच व इलाज को लेकर असुरक्षा की भावना घर कर रही है. अभी जांच और इलाज को बढ़ाने के बजाय केजरीवाल सरकार आरोप-प्रत्यारोप में उलझी है. मरीज को इलाज से इनकार करना आपधारिक लापरवाही है. एक जनहित याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार और आइसीएमआर को जवाब-तलब किया है और जांच प्रक्रिया पर उठ रहे सवालों का स्पष्टीकरण मांगा है. महामारी के खिलाफ लड़ाई में स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करना होगा. कोशिशों से ही हालात सुधरेंगे, न कि सच्चाई से मुंह मोड़ने से.