इससे बेवजह दखल या मुश्किलों से बचा जा सकेगा और करदाता की ताकत में बढ़ोतरी होगी. मामूली हिसाब-किताब के लिए दफ्तरों का चक्कर नहीं लगाना पड़ेगा. पारदर्शिता और तकनीक के इस्तेमाल से भ्रष्टाचार और देरी जैसी परेशानियों का हल भी हो सकेगा. पिछले बजट में आयकर की दरों में बदलाव के साथ कर चुकाने की व्यवस्था को सरल बनाने की घोषणा हुई थी. पांच लाख रुपये की सालाना आमदनी को करमुक्त करना बड़ी पहल थी. वस्तु एवं सेवाकर के लागू होने से कारोबारियों को बड़ी राहत मिली है और राजस्व जुटाने में सरकार को भी सहूलियत हुई है. इतना ही नहीं, पिछले साल कॉर्पोरेट दर को 30 फीसदी से घटाकर 22 फीसदी कर दिया गया.
नये मैनुफैक्चरिंग इकाइयों के लिए यह दर 15 फीसदी निर्धारित की गयी है. सुधारों की वजह से कराधान प्रणाली की कार्यक्षमता भी बढ़ी है. बीते पांच सालों में चुकाये गये कर की जांच-पड़ताल के काम में बड़ी कमी आयी है. इसका एक कारण पारदर्शिता में वृद्धि भी है. दशकों से जटिलता, लालफीताशाही और लचर नियमों के चलते कर का निर्धारण, वसूली और चुकौती के कामों पर नकारात्मक असर पड़ता था. इससे एक तो कम राजस्व सरकार के पास आ पाता था, तो दूसरी ओर झंझट में पड़ने से बचने की कोशिश में कर चोरी और आमदनी छुपाने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही थी.
पिछले कुछ सालों से आयकर, कॉर्पोरेट टैक्स, जीएसटी और अन्य करों के बारे में जानकारी देनेवालों और करों को चुकानेवालों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. इससे साफ इंगित होता है कि अगर व्यवस्था दुरुस्त रहे और नियमन सरल हों, तो हर देशवासी अपने हिस्से का कर चुकाकर देश के विकास का सहभागी बनने के लिए तैयार है. पारदर्शिता और सरलता से कर चोरी को पकड़ने में भी मदद मिलती है तथा विभागीय भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगता है. आज जब हम कोरोना के संकट से जूझ रहे हैं और आर्थिकी को पटरी पर लाने की चुनौती हमारे सामने है, कराधान प्रणाली के सुधार हमारी कोशिशों को मजबूती देने की क्षमता रखते हैं.