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सिमट रही है इमरान खान की पारी

पाकिस्तान में सरकार और सेना, दोनों के खिलाफ विपक्षी पार्टियां लामबंद हो गयी हैं. माना जा रहा है कि जनवरी तक वहां कोई बड़ा उलटफेर हो सकता है.

आशुतोष चतुर्वेदी, प्रधान संपादक, प्रभात खबर

ashutosh.chaturvedi@prabhatkhabar.in

पाकिस्तान में इन दिनों सियासी उथल-पथल मची हुई है. पाक प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए हालात ठीक नजर नहीं आ रहे हैं और संकेत हैं कि उनकी राजनीतिक पारी समाप्ति की ओर है. पाकिस्तान में सरकार और सेना दोनों के खिलाफ विपक्षी पार्टियां लामबंद हो गयी हैं और उन्हें भारी जनसमर्थन हासिल हो रहा है. पाकिस्तान में सेना का इतना खौफ रहा है कि राजनेता सेना पर सवाल उठाने से डरते हैं, लेकिन पाक इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब विपक्षी नेता खुलेआम सेना प्रमुख जनरल बाजवा को चुनौती देते नजर आ रहे हैं. राजनेता साफ तौर से कह रहे हैं कि देश के राजनीतिक और सरकारी मामलों में सेना का दखल बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. वे 2018 में हुए आम चुनावों में धांधली के लिए सेना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. 11 विपक्षी पार्टियों ने पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट का गठन किया है.

इसमें पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल-एन और बिलावल भुट्‌टो-जरदारी की पार्टी पीपीपी भी शामिल हैं और इस मोर्चे का नेतृत्व दक्षिणपंथी दल जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख फजलुर रहमान कर रहे हैं. ये पार्टियां इमरान सरकार से इस्तीफे की मांग कर रही हैं. मोर्चे के नेता फजलुर रहमान का कहना है कि इमरान सरकार के दिन लद चुके हैं. यह साल खत्म होते-होते सरकार गिर जायेगी. विपक्ष की इस महारैली में जुटी भारी भीड़ निश्चित रूप से प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल बाजवा के लिए खतरे की घंटी है. विशेषज्ञों का मानना है कि इमरान की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है और जनवरी तक कोई बड़ा उलटफेर हो सकता है.

इस महारैली को नवाज शरीफ ने लंदन से वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित किया. उन्होंने सेना पर सीधे निशाना साधा और सेना प्रमुख जनरल बाजवा पर 2017 में उनकी सरकार का तख्ता पलटने और उसके बाद इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई इमरान खान से नहीं है, बल्कि उनसे है, जिन्होंने चुनाव में धांधली कर इमरान खान जैसे नाकाबिल शख्स को कुर्सी पर बैठाया और मुल्क को बर्बाद कर दिया. उन्होंने कहा, इमरान सरकार इलेक्टेड नहीं, सलेक्टेड सरकार है. विपक्ष की प्राथमिकता इस सलेक्टेड सरकार को हटाना है. समानांतर सरकार हमारी सारी बुराइयों और परेशानियों की जड़ है.

यह बहुत जरूरी है कि हमारी सेना हमारी सरकार से दूर रहे. सरकार संविधान के अनुसार चले और सेना लोगों की पसंद में दखल न दे. नवाज शरीफ जब प्रधानमंत्री थे, तो उन्होंने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान में आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. उनका बयान सार्वजनिक होने के बाद पाक सेना उनके खिलाफ हो गयी थी और उसने उन्हें जेल तक पहुंचा दिया गया था. नवाज शरीफ को 2017 में पाक सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त कर दिया था और उन पर देश द्रोह का मामला भी चल रहा है. वे इलाज के लिए पिछले साल नवंबर से लंदन में हैं.

इमरान खान को सत्ता में आये दो साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन वे हर मोर्च पर पूरी तरह नाकाम रहे हैं. उनके कार्यकाल में पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खस्ता हो गयी है. पाकिस्तान में सेना का सत्ता पर नियंत्रण कोई नयी बात नहीं है. वहां सेना का साम्राज्य चलता है. वह उद्योग धंधे चलाती है. प्रोपर्टी के धंधे में उसकी खासी दिलचस्पी है. उसकी अपनी अलग अदालतें हैं. सेना का एक फौजी ट्रस्ट है, जिसके पास करोड़ों की संपदा है. सेना के सारे काम-धंधों को जांच पड़ताल के दायरे से बाहर रखा गया है. कोई उन पर सवाल नहीं उठा सकता है. इधर कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट का फायदा उठाते हुए पाक सेना ने सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया है.

इमरान खान पहले कठपुतली प्रधानमंत्री थे और अब वे मात्र मुखौटा प्रधानमंत्री रह गये हैं. पाकिस्तान में सेना इतनी ताकतवर है कि वहां अदालतें सेना के इशारे पर फैसले सुनाती हैं, अन्यथा जजों को ही रुखसत कर दिया जाता है. अब तक पाकिस्तान में जितने भी तख्ता पलट हुए हैं, उन सभी को वहां के सुप्रीम कोर्ट ने उचित ठहराया है. कुछ समय पहले अमेरिकी मीडिया एजेंसी ब्लूमबर्ग ने पाकिस्तान के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि सेना के वफादार माने जाने वाले दर्जनभर लोग इमरान खान सरकार में प्रमुख पदों पर काबिज हो गये हैं.

इनमें से अधिकांश पूर्व सैन्य अधिकारी हैं. ये उड्डयन, बिजली और स्वास्थ्य जैसे अहम विभागों में नियुक्त किये गये हैं. इनमें से कई परवेज मुशर्रफ की सरकार के भी हिस्सा थे. हालांकि इमरान खान बार-बार सफाई दे रहे हैं कि सत्ता उनके पास है और सेना उनके साथ खड़ी है, लेकिन हकीकत यह है कि वे केवल मुखौटा भर रह गये हैं. दरअसल, कोरोनो के कारण पाकिस्तान में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है. पाकिस्तान में आर्थिक विकास दर शून्य से नीचे पहुंच गयी है. कोरोना के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं. दक्षिण एशिया में भारत के बाद सबसे अधिक कोरोना संक्रमित पाकिस्तान में हैं.

इस संकट का सेना ने भरपूर फायदा उठाया है. हालांकि पाकिस्तान के लिए ऐसी परिस्थिति कोई नयी नहीं है. वहां प्रधानमंत्री आते-जाते रहते हैं. अक्सर तख्ता पलट सेना करती आयी है. सेना प्रमुख तख्ता पलट करने के बाद नयी पार्टी गठित कर अपने आप पर लोकतांत्रिक मुलम्मा चढ़ा लेते हैं. आपने गौर किया हो, जब भी किसी राजनेता ने भारत के साथ रिश्ते सामान्य करने की कोशिश की है, सेना ने उसमें हमेशा पलीता लगाया है. पाकिस्तान में सेना आतंकवादियों को नियंत्रित करती है और ऐसे मौकों पर वह उनका इस्तेमाल करती है ताकि ऐसी कोई पहल कामयाब न हो पाए.

यह तथ्य जगजाहिर है कि पिछले आम चुनाव में पाकिस्तानी सेना ने पूरी ताकत लगाकर इमरान खान को जितवाया था. चुनाव प्रचार से लेकर मतदान और मतगणना तक सारी व्यवस्था को सेना ने अपने नियंत्रण में रखा था. पाक सुरक्षा एजेंसियां ने चुनावी कवरेज को प्रभावित करने के लिए लगातार अभियान चलाया. जो भी पत्रकार, चैनल अथवा अखबार नवाज शरीफ के पक्ष में खड़ा नजर आया, खुफिया एजेंसियां ने उन्हें निशाना बनाया था.

पाकिस्तान के सबसे बड़े टीवी प्रसारक जियो टीवी को हफ्तों तक आंशिक रूप से ऑफ एयर रहना पड़ा था. पाकिस्तान के जाने माने अखबार डॉन का अरसे तक प्रसार प्रभावित रहा, क्योंकि उसने नवाज शरीफ का पक्ष लिया था. चुनाव से ठीक पहले भ्रष्ट्राचार के एक मामले में नवाज शरीफ को 10 साल की जेल की सजा सुना दी गयी थी, ताकि इमरान खान सत्ता के मजबूत दावेदार बनकर उभर सकें. मौजूदा संक्रमण काल में पाकिस्तान का घटनाक्रम चिंतित करने वाला है. पुरानी कहावत है कि आप अपना मित्र बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं. पाकिस्तान हमारा पड़ोसी मुल्क है. इसलिए न चाहते हुए भी वहां का घटनाक्रम हमें प्रभावित करता है.

Posted by : Pritish Sahay

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